Lok Sabha Election से पहले बिहार में कांग्रेस नेताओं की 'पलटी' की लग सकती है झड़ी, कतार में कई विधायक
लोकसभा चुनाव से पहले शुरुआत बेशक दो विधायकों (मुरारी गौतम व सिद्धार्थ सौरव) से हुई है लेकिन कतार में अभी कुछ और हैं। अपने व स्वजनों के लिए राजनीतिक भविष्य की गारंटी में वे पहले से ही कांग्रेस का मोह छोड़ चुके हैं। उचित अवसर की तलाश है। एक अवसर विश्वास-मत के दौरान भी बना था। तब छह-सात विधायकों का मन डोल रहा था।
राज्य ब्यूरो, पटना। लोकसभा चुनाव से पहले शुरुआत बेशक दो विधायकों (मुरारी गौतम व सिद्धार्थ सौरव) से हुई है, लेकिन कतार में अभी कुछ और हैं। अपने व स्वजनों के लिए राजनीतिक भविष्य की गारंटी में वे पहले से ही कांग्रेस का मोह छोड़ चुके हैं। उचित अवसर की तलाश है।
एक अवसर विश्वास-मत के दौरान भी बना था। तब छह-सात विधायकों का मन डोल रहा था। आलाकमान और प्रदेश नेतृत्व ने उस समय तो उन्हें सहेज-संभाल लिया, लेकिन इस बार भनक तक नहीं लगी। भाजपा कुछ ऐसे ही ऑपरेशन करती है, जिसका खतरा आगे भी बना हुआ है। अभी साथ छोड़ने वाले कांग्रेस के दोनों विधायकों के भाजपा में जाने की चर्चा है।
महागठबंधन को उल्टा पड़ रहा 'खेला'
इस वर्ष 27 जनवरी को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर भाजपा के साथ हो लिए। उसके बाद तो महागठबंधन ने 'खेला' का दावा शुरू कर दिया था। 12 फरवरी को विश्वास-मत के दिन भाजपा-जदयू को अपने विधायकों को समेटने में पसीने तो बहाने पड़े, लेकिन ऐन मौके पर राजद को उसके तीन विधायकों (चेतन आनंद, प्रह्लाद यादव और नीलम देवी) ने दगा दे दिया।
तब अपने 19 विधायकों को एकजुट रहने का हवाला देते कांग्रेस फूले नहीं समा रही थी। हालांकि, सत्तारूढ़ राजग ने तब भी कहा था कि अभी तो खेल की शुरुआत हुई है। नाम नहीं छापने की शर्त पर कांग्रेस के एक पुराने दिग्गज ने बताया कि डोरे तो महागठबंधन की ओर से भी डाले गए थे। कांग्रेस के ही एक कद्दावर ने कुछ मामलों में कमान संभाल रखी थी। तब दांव राजद को उल्टा पड़ा था और इस बार कांग्रेस भी लपेटे में आ गई है।
सत्तारूढ़ राजग फरवरी के पहले सप्ताह में ही कांग्रेस विधायकों को अपने पाले में करने वाला था। बैठक के बहाने दिल्ली बुलाए गए तमाम विधायकों को हैदराबाद के निकट एक रिजॉर्ट में शिफ्ट कर दिया गया। तब भी चार-पांच विधायक बिहार में ही रह गए थे।
उनमें से एक बिक्रम के विधायक सिद्धार्थ सौरव भी थे। क्षेत्र में उपस्थिति आवश्यक बताकर वे हैदराबाद नहीं गए थे और कांग्रेस के साथ रहने की प्रतिबद्धता जताई थी। वह कसम अब टूट गई है।
राहुल की यात्रा में नहीं होने दिया एहसास
अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित चेनारी के विधायक मुरारी गौतम तो राजी-खुशी हैदराबाद गए थे। तब जिन विधायकों के टूटने की चर्चा थी, उसमें उनका नाम तक नहीं लिया जा रहा था।
15-16 फरवरी को राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान औरंगाबाद से लेकर कैमूर तक अपनी भाव-भंगिमा से उन्होंने इसका आभास तक नहीं होने दिया था। अचानक चलते बने। बताते हैं कि टिकारी की किसान पंचायत में राहुल के साथ मंच पर मीरा कुमार की उपस्थिति सासाराम से एक बार फिर उनके प्रत्याशी बनने का संकेत देने वाली थी।
मुरारी का दिल इसी कारण टूटा है। विधायक लगातार दूसरी बार चुने गए और मंत्री का पद अब रहा नहीं। मोहनियां विधानसभा क्षेत्र की तरह सासाराम लोकसभा क्षेत्र भी तो सुरक्षित ही है। मीरा लड़ सकती हैं तो मुरारी क्यों नहीं!
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