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    वसीयत प्रमाण पत्र और प्रशासन पत्र पर लागू होगी समय सीमा, पटना हाई कोर्ट ने सुनाया फैसला

    Updated: Sat, 20 Dec 2025 07:05 PM (IST)

    पटना हाई कोर्ट ने भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के तहत वसीयत प्रमाण पत्र और प्रशासन पत्र से जुड़े मामलों में लिमिटेशन अधिनियम की धारा 137 की प्रयोज्यता प ...और पढ़ें

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    पटना हाई कोर्ट ने सुनाया फैसला। (जागरण)

    जागरण संवाददाता, पटना। पटना हाई कोर्ट ने भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के तहत वसीयत प्रमाण पत्र (प्रोबेट) और प्रशासन पत्र (लेटर्स आफ एडमिनिस्ट्रेशन) से जुड़े मामलों में लिमिटेशन अधिनियम की धारा 137 की प्रयोज्यता पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है।

    न्यायाधीश बिबेक चौधरी और न्यायाधीश डॉ. अंशुमान की खंडपीठ ने कहा है कि लिमिटेशन एक्ट, 1963 की अनुच्छेद 137 प्रोबेट/लेटर आफ एडमिनिस्ट्रेशन जारी करने की याचिकाओं के साथ-साथ उनके निरस्तीकरण (रिवोकेशन) की याचिकाओं पर भी लागू होगी।

    अदालत ने अपने विस्तृत निर्णय में यह महत्वपूर्ण अंतर रेखांकित किया कि प्रोबेट या लेटर आफ एडमिनिस्ट्रेशन प्राप्त करना एक निरंतर अधिकार है। इसे वसीयतकर्ता की मृत्यु के बाद किसी भी समय प्रयोग किया जा सकता है।

    हालांकि, मृत्यु के तीन वर्ष से अधिक समय बाद दायर याचिका संदेह को जन्म देती है और ऐसे विलंब का समुचित एवं संतोषजनक स्पष्टीकरण आवश्यक होगा। मात्र देरी के आधार पर ऐसी याचिका स्वतः खारिज नहीं की जा सकती।

    इसके विपरीत, प्रोबेट या लेटर ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन के निरस्तीकरण की याचिकाओं को लेकर कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह अधिकार सीमित अवधि के भीतर ही प्रयोग किया जा सकता है। ऐसी याचिकाओं पर तीन वर्ष की लिमिटेशन लागू होगी, जिसकी गणना प्रोबेट के अनुदान की तिथि से की जाएगी।

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    खंडपीठ ने प्रथम दो अपीलों में अपीलकर्ता की ओर से पेश हुए अधिवक्ता विश्वजीत कुमार मिश्रा के निष्पक्ष और ईमानदार रवैये की खुले शब्दों में सराहना की। जबकि इस मामले में प्रतिवादियों की ओर से वरीय अधिवक्ता शशि शेखर द्विवेदी और अधिवक्ता पार्थ गौरव पक्ष रखा।

    अदालत ने कहा कि प्रोबेट न केवल पक्षकारों बल्कि सम्पूर्ण विश्व पर प्रभावी होता है। अतः निर्धारित अवधि के बाद दायर निरस्तीकरण याचिका समय-सीमा से बाधित मानी जाएगी।

    खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट की तीन-न्यायाधीशीय पीठ के निर्णयों का विस्तृत विश्लेषण करते हुए संदर्भ प्रश्न का उत्तर दिया और निर्देश दिया कि अब संबंधित सभी प्रथम अपीलों को गुण-दोष के आधार पर सुनवाई के लिए उपयुक्त पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए।