बिहार में अधिग्रहीत जमीन के मुआवजा मामलों से राजस्व विभाग ने खुद को किया अलग
अधिग्रहीत जमीन के मुआवजे से जुड़े विवादों से राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग ने खुद को अलग कर लिया है। अधिग्रहण और मुआवजे की प्रक्रिया एनएच एक्ट 1956 और रेलवे संशोधन अधिनियम 2008 के प्रविधानों के तहत होती है।

राज्य ब्यूरो, पटना: रेलवे और एनएच के लिए राज्य में अधिग्रहीत जमीन के मुआवजे से जुड़े विवादों से राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग ने खुद को अलग कर लिया है। उसका कहना है कि अधिग्रहण और मुआवजे की प्रक्रिया एनएच एक्ट 1956 और रेलवे संशोधन अधिनियम 2008 के प्रविधानों के तहत होती है। इन दोनों अधिनियमों में राज्य सरकार को किसी भी तरह की शक्ति हासिल नहीं है। भू अर्जन निदेशक सुशील कुमार की ओर से जिलाधिकारियों को लिखे पत्र में यह विवरण दिया गया है। इसकी प्रति एनएचएआई के लिए सक्षम प्राधिकार घोषित किए गए जिला भू अर्जन पदाधिकारियों को भी दी गई है।
राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग ने यह पत्र जिलों से मांगे गए दिशा निर्देश के जवाब में जारी किया है। दिशा निर्देश इस मुद्दे पर मांगा गया था कि विभिन्न व्यवहार न्यायालयों में जमा मुआवजे की राशि का क्या किया जाए। उसे संबंधित इकाइयों-रेलवे और एनएचएआई को वापस किया जाए या नहीं। राजस्व विभाग ने यह कह कर इस विषय से खुद को अलग कर लिया कि रेलवे और एनएचआई के मुआवजा संबंधी मामलों में दखल देने का उसके पास कोई अधिकार नहीं है। विभाग ने इस संदर्भ में पूर्व में जारी किए गए तीन आदेशों को भी निरस्त कर दिया, जिसमें मुआवजा के बारे में निर्देश दिया गया था।
क्यों जमा होती है राशि
रेलवे और एनएच के लिए राज्य सरकार भूमि अधिग्रहण करती है। मुआवजे की राशि को कम बता कर कुछ रैयत इसे लेने से इनकार कर देते हैं। इस मामले में न्यायिक प्राधिकार के तौर पर जिलों के व्यवहार न्यायालयों को अधिकृत किया गया है। मुआवजे की रकम न लेने वाले रैयतों के नाम से आवंटित राशि व्यवहार न्यायालय के माध्यम से बैंकों में जमा कर दी जाती है। विवाद सलटने पर रैयत उसे हासिल करते हैं। लेकिन, राज्य में कई ऐसे भी रैयत हैं जो न्यायालय के आदेश के बाद भी राशि नहीं ले रहे हैं। भू अर्जन निदेशक का पत्र उसी संदर्भ में है।
विवाद का एक कारण यह भी
एक ही जमीन के कई दावेदार सामने आ जाते हैं। मामला व्यवहार न्यायालय में जाता है। रेलवे या एनएचएआई मुआवजे की रकम न्यायालय के जरिए बैंक में जमा करा देता है। कहीं-कहीं तो विवाद के कारण वर्षों तक निर्माण भी बाधित होता है। राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग पर इन मामलों में दबाव इसलिए रहता है, क्योंकि जमीन अधिग्रहण की पूरी प्रक्रिया उसी के माध्यम से पूरी होती है। रैयत सबसे पहले उसी से सवाल करते हैं।
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