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लालू यादव तो नहीं बन गए बिहार में RJD की हार की वजह, किस वजह से फेल हुआ तेजस्‍वी का दांव

Bihar Politics तेजस्वी भांप नहीं पाए मतदाताओं का मूड या लालू का जादू नहीं चला दो सीटों के परिणाम आने के बाद हो रही हार की वजह की व्याख्या कांग्रेस से किनारा व लालू की मौजूदगी को बताया जा रहा जिम्मेदार

By Shubh Narayan PathakEdited By: Published: Wed, 03 Nov 2021 09:07 AM (IST)Updated: Wed, 03 Nov 2021 11:04 AM (IST)
लालू यादव और तेजस्‍वी यादव। फाइल फोटो

पटना, अरविंद शर्मा। तेजस्वी यादव का परिश्रम, लालू प्रसाद का प्रचार और महंगाई के मुद्दे से सत्ता पक्ष पर आक्रमण सबके सब फेल हो गए। सीधी टक्कर में जदयू से राजद के प्रत्याशी पार नहीं पा सके। अब हार की वजहों की व्याख्या की जा रही है कि तेजस्वी से कामयाबी कैसे दूर रह गई और लालू का जादू क्यों फेल कर गया? इसके कारण भी गिनाए जा रहे। महागठबंधन का टूटना और लालू की मौजूदगी को जिम्मेदार बताया जा रहा है। कांग्रेस को भले ही सम्मान बचाने लायक वोट नहीं मिला, लेकिन इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि विकल्प के अभाव में उसके वोट बैंक में बिखराव हुआ है, जिसका सीधा फायदा जदयू को मिला। तेजस्वी से यही चूक हुई।

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राजद से डरता है वोटरों का बड़ा वर्ग

बिहार में वोटरों का एक वर्ग अभी भी ऐसा है, जो राजद से दूरी बनाए रखना चाहता है। कुशेश्वरस्थान में ऐसे वोटरों को कांग्रेस का विकल्प मिला होता तो लड़ाई एकतरफा नहीं होती। महागठबंधन जरूर कड़ी टक्कर देने की स्थिति में होता। जैसा राजद ने तारापुर में किया। राजद ने वैश्य प्रत्याशी उतारकर अच्छी किलेबंदी की थी। रणविजय साहू के नेतृत्व में राजद के वैश्य विधायकों को मैदान में उतारकर माहौल भी बनाया। अंत-अंत तक मुकाबला किया। हारकर भी तारीफ के हकदार बना।

लालू की मौजूदगी को भी बताया जा रहा कारण

राजनीतिक हलकों में राजद की हार की दूसरी अहम वजह लालू प्रसाद की मौजूदगी को बताया जा रहा है। तर्क है कि विधानसभा के आम चुनाव में तेजस्वी ने जब लालू-राबड़ी की शासन शैली से पीछा छुड़ा लिया था और उन्हें पार्टी के पोस्टरों से भी दूर कर दिया था तो अपने बूते राजद को नंबर एक पर ले आए थे। सत्ता पक्ष को इस बार भी ऐसा ही लग लग रहा था। किंतु जब लालू के आने की खबर आई तो मंत्री संजय कुमार झा का बयान आया कि अब डेढ़ दशक पहले के जंगलराज को याद दिलाने की जरूरत नहीं रहेगी। प्रचार में लालू के आते ही सबको अपने आप अहसास हो जाएगा कि 2005 के पहले का शासन कैसा था।

कन्हैया का स्टारडम भी फेल

उपचुनाव की घोषणा के बाद भाकपा को अलविदा कहकर कांग्रेस का हाथ थामने वाले कन्हैया कुमार भी बिहार के मोर्चे पर फेल साबित हुए। लोकसभा चुनाव के बाद उनकी लगातार दूसरी असफलता है। कांग्रेस को उनसे नाक बचाने भर भी मदद नहीं मिली। हालांकि उन्हें ऐसे नतीजे का अहसास पहले ही हो गया था। इसीलिए जाते वक्त चुपके से निकल गए, जबकि आए थे तो पटना में लालू प्रसाद पर खूब गरजे-बरसे थे। उनके दो अन्य साथियों जिग्नेश मेवानी और हार्दिक पटेल का तो अता-पता भी नहीं चला। कांग्रेस के कई नेताओं को भी नहीं पता कि कब आए और कब चले गए।


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