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    लालू और नीतीश पहली बार गुरुजी के आशीर्वाद से ही बने थे मुख्यमंत्री

    Updated: Mon, 04 Aug 2025 03:19 PM (IST)

    मार्च 1990 के पहले सप्ताह में पटना में कुछ अधिक ही राजनीतिक गहमागहमी थी। लालू प्रसाद जनता दल विधायक दल के नेता चुन लिए गए थे। लेकिन उनके पास पर्याप्त बहुमत नहीं था। 324 सदस्यीय तत्कालीन बिहार विधानसभा की 122 सीटों पर जनता दल की जीत हुई थी। सरकार बनाने के लिए कम से कम 163 विधायकों का समर्थन चाहिए था।

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    लालू और नीतीश पहली बार गुरुजी के आशीवाद से ही बने थे मुख्यमंत्री

    अरुण अशेष, पटना। अब यह बिहार और झारखंड के साझा इतिहास का एक अध्याय है। बिहार में लालू प्रसाद और नीतीश कुमार के 35 वर्षों के शासन का जो कालखंड है, उसकी आधारशिला गुरुजी ने रखी थी। उस समय की राजनीतिक स्थिति ऐसी थी कि बिना दिशोम गुरु यानी शिबू सोरेन की मदद के दोनों सरकारें नहीं बन सकती थीं।

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    मार्च 1990 के पहले सप्ताह में पटना में कुछ अधिक ही राजनीतिक गहमागहमी थी। लालू प्रसाद जनता दल विधायक दल के नेता चुन लिए गए थे। लेकिन, उनके पास पर्याप्त बहुमत नहीं था। 324 सदस्यीय तत्कालीन बिहार विधानसभा की 122 सीटों पर जनता दल की जीत हुई थी। सरकार बनाने के लिए कम से कम 163 विधायकों का समर्थन चाहिए था।

    वाम दलों में भाकपा-माकपा के 29 सदस्यों ने लालू को बिना शर्त समर्थन दिया। तीसरे वाम दल उस समय के इंडियन पीपुल्स फ्रंट के सात विधायकों ने मजबूरी में समर्थन देने का निर्णय किया। भाजपा के 39 विधायकों के समर्थन के लिए लालू प्रसाद को कड़ी मेहनत करनी पड़ी।

    झामुमो के 19 विधायकों ने समर्थन कर लालू प्रसाद के लिए सरकार के गठन की राह आसान कर दी। उस समय तो झामुमो के समर्थन का मोल नहीं पता चला। लेकिन, अयोध्या प्रकरण और लालकृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद जब भाजपा ने केंद्र और राज्य सरकार से समर्थन वापस लिया, झामुमो के इन्हीं विधायकों के बल पर सरकार टिकी रही।

    हालांकि बाद में लालू प्रसाद ने भाजपा के 39 में से 13 विधायकों को तोड़ कर संपूर्ण क्रांति दल का गठन करा दिया। उनके कई नेताओं को मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया। लेकिन, यह कल्पना करना कठिन है कि भाजपा की तरह झामुमो अगर सरकार से समर्थन वापस ले लेता तो 15 साल तक के लालू-राबड़ी शासन का रिकार्ड कैसे बन पाता।

    गिरते-लड़खड़ाते लालू प्रसाद 1995 के विधानसभा चुनाव में अपराजेय याेद्धा बन कर उभरे। अकेले जनता दल को 167 सीटों पर सफलता मिली। उधर झामुमो 1990 के 19 से घटकर 10 पर आ गया। उस दौर में झामुमो और लालू प्रसाद के रिश्ते कुछ दिनों के लिए बिगड़े। लेकिन, दोनों की दोस्ती का वह दौर भी था, जब लालू प्रसाद कहते थे कि उस समय के दक्षिण बिहार के मुख्यमंत्री तो गुरुजी ही हैं।

    2000 में नीतीश को ताज

    20 वर्षों से बिहार में सरकार चला रहे नीतीश कुमार भले ही रिकार्ड पर रिकार्ड बना रहे हों, लेकिन, वह गुरुजी की भूमिका के बिना संभव नहीं था। बाद में 2000 में बहुमत के दावे के आधार पर राज्यपाल ने नीतीश कुमार को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया। उनका शपथ ग्रहण भी हो गया। समर्थन करने वाले विधायकों की जो सूची सौंपी गई थी, उसमें झामुमो के 12 सदस्यों का नाम और हस्ताक्षर था।

    हालांकि नीतीश कुमार ने बहुमत साबित करने से पहले त्याग पत्र दे दिया। लेकिन, उनके लंबे शासन के इतिहास की बुनियाद में गुरुजी का नाम तो रहेगा ही। नीतीश कुमार ने उनके इस योगदान को हमेशा याद रखा। एकबार उन्होंने अपने विधायकों के माध्यम से गुरुजी को सरकार बनाने में भी मदद की।

    शिबू सोरेन के निधन पर मुख्यमंत्री ने जताई गहरी शोक-संवेदना 

    मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के निधन पर गहरी शोक संवेदना व्यक्त की है।

    मुख्यमंत्री ने अपने शोक संदेश में कहा है कि स्व. शिबू सोरेन एक प्रख्यात राजनेता थे। वे तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रहे थे। झारखंड की राजनीति में उनका अहम योगदान रहा है। उनके निधन से न केवल झारखंड बल्कि पूरे देश के राजनीतिक एवं सामाजिक क्षेत्र में अपूरणीय क्षति हुई है।

    मुख्यमंत्री ने दिवंगत आत्मा की चिर-शान्ति तथा उनके परिजनों एवं प्रशंसकों को दुःख की इस घड़ी में धैर्य धारण करने की शक्ति प्रदान करने की ईश्वर से प्रार्थना की है।