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    भगवान बुद्ध का इतिहास समेटे वैशाली का कोटिग्राम, विलक्षण है यहां का गुप्तकालीन सहस्त्र लिंगम मंदिर

    By Amit AlokEdited By:
    Updated: Fri, 11 Sep 2020 09:59 AM (IST)

    बिहार के वैशाली के कष्‍टहरिया में प्राचीन सहस्त्र लिंगम मंदिर है। कभी गुप्‍त काल का गारव रहा यह मंदिर आज उपेक्षित पड़ा है। वैशाली जाने के क्रम में इस जगह भगवान बुद्ध भी आए थे।

    भगवान बुद्ध का इतिहास समेटे वैशाली का कोटिग्राम, विलक्षण है यहां का गुप्तकालीन सहस्त्र लिंगम मंदिर

    वैशाली, राजेश। बिहारा के बिदुपुर प्रखंड का कष्टहरिया कभी प्राचीन भारत के इतिहास का सुनहरा अध्याय हुआ करता था, लेकिन आज यह स्थान इस कदर उपेक्षित है कि इतिहास पर गर्व करने वाले को रोना आ जाए। इस स्थल से होकर भगवान बुद्ध वैशाली गए थे। कभी यहां का गौरव रहा गुप्तकालीन सहस्त्र लिंगम मंदिर वर्तमान में उपेक्षा का शिकार है। वैशाली का यह गौरवशाली इतिहास पर आंसू बहाने को मजबूर है।

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    वैशाली जाने के क्रम में भगवान बुद्ध के पड़े थे चरण

    बताते चलें कि भगवान बुद्ध के काल में राघोपुर क्षेत्र कोटिग्राम के नाम से चर्चित था। राजगीर से वैशाली जाने के क्रम में भगवान बुद्ध के चरण यहां पड़े थे। यहां के लिच्छवी भगवान बुद्ध को राजकीय सम्मान के साथ वैशाली ले गए थे। यह भी सर्वविदित है कि कोटिग्राम का अपभ्रंश ही कष्टहरिया है।

    बुद्ध के शिष्‍य आनन्द ने कोटिग्राम में ली थी जल समाधि

    बुद्ध के निर्वाण के बाद उनके शिष्य आनन्द भी निर्वाण लेना चाहते थे। वैशाली के लोगों ने आनन्द से वैशाली आने का आग्रह किया था। आनन्द ने कोटिग्राम में ही गंगा-गंडक नदी के संगम पर जल समाधि ली थी। उसी के साक्ष्य के रूप में मधुरापुर भिंडा है।

    कष्टहरिया के पास गुप्तकालीन सहस्त्र लिंगम मंदिर

    कष्टहरिया के आसपास नवग्रह का प्लेट, रिंग बेल्ट तथा गुप्तकालीन सहस्त्र लिंगम मंदिर स्थित है। सहस्त्रलिंगम सदियों से पूजित है। पांच-छह साल पहले तक गंगा की धार मंदिर के बगल से बहती थी, लेकिन अब गर्मी के दिनों में करीब तीन किलोमीटर दक्षिण चली जाती है। हालांकि, बरसात के दिनों में धार मंदिर के बगल में आ जाती है। सहस्त्रलिंगम में पार्वती की मुखाकृति उभरी हुई है।

    यहां मिले हैं नवपाषाण, गुप्त व पाल कालीन साक्ष्य

    पटना की ओर से पूर्व में गंगा नदी एवं महात्मा गांधी सेतु निर्माण से पूर्व कष्टहरिया के समीप गंडक नदी बहती थी। बीच का दियारा भाग कोटिग्राम था जो अब राघोपुर का भाग है। इस क्षेत्र में इतिहासकार डॉ. योगेंद्र मिश्र ने इसपर काफी शोध किया था तथा 'श्वेतपुर की खोज' नामक पुस्तक लिखी थी। उसी आधार पर भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा यहां चार बार खुदाई की गई, जिसमें नवपाषाण कालीन, गुप्तकालीन, पाल कालीन संस्कृति एवं कृषि सम्बंधित विकसित साक्ष्य पाए गए हैं।

    सीएम नीतीश के निर्देश के बावजूद स्‍थल उपेक्षित

    वर्ष 2013-14 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा सहस्त्र लिंगम मंदिर, मधुरापुर भिंडा, चेचर, बाजितपुर सैदात भिंडा आदि का निरीक्षण किया गया था। उन्होंने निरीक्षण के दौरान अधिकारियों को योजना बनाकर इन स्थलों के विकास एवं सौंदर्यीकरण करने का निर्देश दिया था, परन्तु आज तक यह स्थल उपेक्षित ही है। वर्ष 2018 में इस इलाके में आयोजित एक धार्मिक अनुष्ठान में आए अयोध्या सीताराम निवास जानकी घाट के महंत आचार्य भूषण महाराज अैर आचार्य सतीश तिवारी ने सहस्त्रलिंगम में रुद्राभिषेक कराते हुए कहा था कि इस तरह का शिवलिंग बिरले ही कहीं दिखता है।