Move to Jagran APP

आइए जानें ...बिहार की 700 साल पुरानी लिपि 'कैथी' के बारे में

कैथी एक ऐतिहासिक लिपि है जिसे मध्यकालीन भारत में प्रमुख रूप से उत्तर-पूर्व और उत्तर भारत में काफी बृहत रूप से प्रयोग किया जाता था। खासकर आज के उत्तर प्रदेश एवं बिहार के क्षेत्रों में इस लिपि में वैधानिक एवं प्रशासनिक कार्य किये जाने के भी प्रमाण पाये जाते हैं।

By Kajal KumariEdited By: Published: Mon, 25 Jan 2016 10:41 AM (IST)Updated: Mon, 25 Jan 2016 12:27 PM (IST)
आइए जानें ...बिहार की 700 साल पुरानी लिपि 'कैथी' के बारे में

पटना [सुमिता जायसवाल] । कैथी एक ऐतिहासिक लिपि है जिसे मध्यकालीन भारत में प्रमुख रूप से उत्तर-पूर्व और उत्तर भारत में काफी बृहत रूप से प्रयोग किया जाता था। खासकर आज के उत्तर प्रदेश एवं बिहार के क्षेत्रों में इस लिपि में वैधानिक एवं प्रशासनिक कार्य किये जाने के भी प्रमाण पाये जाते हैं।

loksabha election banner

पूर्ववर्ती उत्तर-पश्चिम प्रांत, मिथिला, बंगाल, उड़ीसा और अवध में। इसका प्रयोग खासकर न्यायिक, प्रशासनिक एवं निजी आँकड़ों के संग्रहण में किया जाता था।

कैथी एक पुरानी लिपि है जिसका प्रयोग कम से कम 16 वी सदी मे धड़ल्ले से होता था। मुगल सल्तनत के दौरान इसका प्रयोग काफी व्यापक था। 1880 के दशक में ब्रिटिश राज के दौरान इसे प्राचीन बिहार के न्यायलयों में आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया गया था। इसे खगड़िया जिले के न्यायालय में वैधानिक लिपि का दर्ज़ा दिया गया था।

बिहार की करीब 700 साल पुरानी जनलिपि 'कैथी' को संरक्षित करने के साथ ही युवाओं मेंं इस लिपि के बारे में जागरूकता लाने का प्रयास नालंदा खुला विश्वविद्यालय कर रहा है।

विश्वविद्यालय इस लिपि में उपलब्ध स्टोन स्क्रिप्ट, लेख, महापुरुषों के पत्र और डायरी सहित अन्य पांडुलिपियों को लाइब्रेरी में संरक्षित किया जाएगा।

विवि के सामाजिक उत्तरदायित्व के तहत इस लिपि में उपलब्ध साहित्य को डिजीटाइजेशन कर संरक्षित किया जाएगा। इसके अलावा कैथी लिपि की के अक्षर माला प्रकाशित की जाएगी, जिससे युवा पीढ़ी इस लिपि को पढऩा-लिखना सीख सकें।

एनओयू ने सामाजिक दायित्व के तहत की पहल

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रास बिहारी सिंह ने बताया कि विवि का काम सिर्फ परीक्षा लेना नहीं है। विवि को समाज से जुडऩा चाहिए। हमने सामाजिक दायित्व के तहत कैथी लिपि को डिजिटाइज्ड कर संरक्षित करने का निश्चय किया है। इसके तहत विवि में युवाओं के लिए एक कार्यशाला भी आयोजित की गई।

ऐसा कार्यशाला नियमित अंतराल पर आयोजित की जाएगी। कार्यशाला में इस लिपि के जानकार डॉ भवनाथ झा और डॉ मो. हबीबुल्लाह अंसारी ने कैथी के इतिहास पर प्रकाश डाला। ऐसी पहल बिहार के किसी भी विश्वविद्यालय में नहीं हुई है।

सरकारी दस्तावेज भी कैथी में

गौरतलब है कि कैथी लिपि बिहार की अपनी लिपि है। करीब 700 साल पहले से ब्रिटिश काल तक सरकारी कामकाज और जमीन के दस्तावेज भी इसी लिपि में लिखे जाते थे। अब इस लिपि के जानकार बहुत ही कम लोग रह गए हैं।

इस लिपि के जानकार भैरवलाल दास बताते हैं कि गुप्त काल के शासकीय अभिलेख कैथी लिपि में लिखे जाने का प्रमाण मिला है। पटना म्यूजियम में भी कैथी लिपि में एक स्टोन स्क्रिप्ट संरक्षित की गई है। चंपारण आंदोलन के लिए महात्मा गांधी को बिहार लानेवाले महापुरुष की डायरी भी कैथी लिपि में मिली है। जिसका अनुवाद उन्होंने किया है।

कैथी थी जनलिपि

भैरवलाल कहते हैं कि बिहार में अंगिका, बज्जिका, मगही, मैथिली और भोजपुरी भाषाओं के भी साहित्य को कैथी में लिपिबद्ध किया गया है। कैथी जनलिपि थी। बिहार से लेकर उत्तरप्रदेश तक में आम जनों, महिलाओं और कम शिक्षित वर्ग भी कैथी में ही अपनी अभिव्यक्ति लिखते थें।

कैथी लिखने में आसान होने के कारण जनलिपि थी। जब देवनागरी प्रचलित नहीं थी, तब कैथी में ही साहित्य, कविता, नाटक, उपन्यास लिखा जाता था। यहां तक की कोई 50-60 साल पहले भी जमीन के दस्तावेज इस लिपि में लिखे जाते थे। थानों में एफआइआर भी कैथी लिपि में लिखे जाने के प्रमाण मिले हैं। कैथी को महाजनी लिपि भी कहते है क्योंकि सैकड़ों साल से महाजन इस लिपि में बही खाता लिखते थे।

शेरशाह ने दिया था संरक्षण

शासकीय वर्ग में सर्वप्रथम शेरशाह ने 1540 में इस लिपि को अपने कोर्ट में शामिल किया। उस वक्त कारकुन कैथी और फारसी में सरकारी दस्तावेज लिखा करते थे। शेरशाह ने अपनी मुहरें भी फारसी के साथ कैथी लिपि में बनवाई थीं।

कैथी में लिपिबद्ध कई धार्मिक ग्रंथ भी प्राप्त हुए हैं। मगही अकादमी के अध्यक्ष उदय शंकर शर्मा ने बताया कि मगही के कई नाटक और अन्य साहित्य कैथी में उपलब्ध है। अकादमी द्वारा इनके संरक्षण का प्रयास किया जा रहा है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.