जिया हो बिहार के लाला....जानिए अॉलराउंडर बिहारी मनोज तिवारी 'मृदुल' को
बिहार के कैमूर जिले में जन्मे प्रतिभाओं के धनी एक्टर, सिंगर, फिल्म डायरेक्टर और राजनेता मनोज तिवारी का दिल बिहार में ही बसता है। भोजपुरी के लिए उनका य ...और पढ़ें

पटना [काजल]। एक्टर, क्रिकेटर, सिंगर, फिल्म निर्देशक और राजनेता...और भी जाने क्या-क्या? इतनी ढेर सारी प्रतिभाएं एक ही इंसान में...जी हां, हम बात कर रहे हैं भोजपुरी फिल्मों के अमिताभ बच्चन कहे जाने व के बिहार के लाल मनोज तिवारी 'मृदुल' की ।
कैमूर जिले के छोटे से गांव अतरवलिया में 1 फ़रवरी 1971 को जन्मे मनोज तिवारी के लिए यह सब किसी उपलब्धि से कम नहीं है। मनोज तिवारी के पिता चंद्रदेव तिवारी शास्त्रीय गायक थे और गायन मनोज तिवारी को विरासत में मिली। आज भी जब वक्त मिलता है वो रियाज करना नहीं भूलते।
बड़े भाई की ख्वाहिश थी - मनोज गायक बनें
मनोज के बड़े भैया साधु सरण तिवारी की ख्वाहिश थी कि उनका भाई भी गायक बने। मनोज तिवारी ने अपने एक इंटरव्यू के दौरान बताया था कि ‘‘भैया ने एक बार मुझे रामलीला में गाते हुए सुना था, तभी उन्हें विश्वास हो गया था कि मैं अच्छा सिंगर बन सकता हूं। उन्होंने ही 1992 में मेरा पहला एलबम राम भजन निकलवाया था और पहला स्टेज शो भी करवाया था।’’

बचपन से ही एक्टिंग किया करते थे
मनोज तिवारी बचपन में स्कूल की सांस्कृतिक गतिविधियों में सक्रिय थे। वे अपने गांव की रामलीला में हिस्सा लेते थे। वे दुर्गा पूजा के दौरान खुद ड्रामा लिखते थे और उनमें अभिनय भी किया करते थे। बचपन में उनका मन क्रिकेट खेलने में भी खूब लगता था, मगर इनमें से किसी भी क्षेत्र में उन्होंने करियर बनाने के बारे में कभी नहीं सोचा था।
संघर्ष भरा रहा कैरियर
अपने कैरियर के लिए मनोज तिवारी ने कड़ा संघर्ष किया है, तब कहीं जाकर यह मुकाम हासिल हो सका है।मनोज बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (वाराणसी) से ग्रेजुएशन के पश्चात वे नौकरी की तलाश में जुट गए थे। उनके भैया ओएनजीसी में नौकरी करते थे। उन्होंने कोशिश की कि उसी कंपनी में स्पोर्ट्स कोटे में नौकरी मिल जाए लेकिन नहीं मिली। ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने बीपीएड (बैचलर ऑफ फिजीकल एजुकेशन) किया और टीचर की नौकरी खोजने लगे लेकिन उन्हें कहीं नौकरी नहीं मिली।
उन दिनों मनोज तिवारी ने अपने बड़े भाई के प्रयास से शुरूआती 2-3 म्यूजिक एलबम में गाना गाया लेकिन वे एलबम नहीं चले जिससे उन्हें निराशा हाथ लगी। उसे मनोज ने चुनौती के रूप में लिया और 1995 में उन्होंने भैया के साथ मिलकर खुद एक म्यूजिक एलबम बनाया, जिसके गीत, संगीत और गायन की जिम्मेदारी उन्होंने स्वयं संभाली।1996 में टी-सीरीज ने उनके एलबम मैया के महिमा को रिलीज किया और वह एलबम खूब चला और मनोज तिवारी उस वक्त के स्थापित भोजपुरी गायकों भरत शर्मा और मुन्ना शर्मा के लिए चुनौती बनकर उभरे।

अभिनय की शुरूआत
2003 में मनोज तिवारी के पास ससुरा बड़ा पइसावाला फिल्म में अभिनय करने का प्रस्ताव आया। उसे उन्होंने गंभीरता से नहीं लिया, क्योंकि भोजपुरी फिल्मों का बाजार ना के बराबर था। निर्माता-निर्देशक की बारंबार विनती के बाद उन्होंने अनमने ढंग से वह फिल्म साइन की। उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी कि एक शानदार करियर उनका इंतजार कर रहा है।
'ससुरा बड़ा पैसा वाला' मनोरंजन और आर्थिक दृष्टि से बहुत सफल फिल्म साबित हुयी और माना जाने लगा की भोजपुरी फिल्मों का नया मोड़ शुरू हो चुका है। इसके बाद उन्होने दो और फिल्मों 'दारोगा बाबू आई लव यू' और 'बंधन टूटे ना'नामक फिल्मों में अभिनय किया। तिवारी ने 2011 में हिन्दी फिल्म 'हैलो डार्लिंग' में बतौर निर्देशक कार्य किया है। इसके अलावा तिवारी ने भोजपुरी फिल्मों के गानो में संगीतकर और गीतकार की भूमिका भी निभाई है।

मनोज तिवारी और श्वेता तिवारी 'कब अइबू अंगनवा हमार' और 'ए भौजी के सिस्टर' नामक फिल्मों में साथ-साथ कार्य कर चुके हैं। सन 2011 में मनोज और उनकी पत्नी रानी में अलगाव हो गया। मनोज तिवारी ने नयी धुनें,गाने और अल्बम बनाना जारी रखा। उन्होने अनुराग कश्यप द्वारा निर्देशित फिल्म 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' के लिए एक लोकप्रिय गीत 'जिय हो बिहार के लाला' भी गाया, जो काफी लोकप्रिय हुआ। सन 2010 में मनोज तिवारी ने प्रतिभागी के तौर पर रियलिटी शो 'बिग बॉस' में हिस्सा लिया।
राजनीतिक जीवन
सन 2009 में मनोज तिवारी ने गोरखपुर लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र से 15वीं लोकसभा चुनाव में बतौर समाजवादी पार्टी उम्मीदवार हिस्सा लिया किन्तु भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार योगी आदित्यनाथ से चुनाव हार गए। मनोज तिवारी सन 2011 में बाबा रामदेव द्वारा रामलीला मैदान पर शुरू किए गए भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन और अन्ना आंदोलन में सक्रिय रहे।मनोज तिवारी अगस्त महीने में अन्ना हज़ारे द्वारा शुरू किए गए भ्रष्टाचार विरोधी अभियान में भी सक्रिय रहे।

उसके बाद सन 2014 के आम चुनावों में मनोज तिवारी उत्तर पूर्वी दिल्ली लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार घोषित किए गए और चुनाव जीत गए ।
क्रिकेटर भी रहे
मनोज तिवारी क्रिकेट के समर्थक हैं और इन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की ओर से खेला भी है। अपने गृह-क्षेत्र में क्रिकेट को बढ़ावा देने के लिए तिवारी ने इंडियन प्रीमियर लीग में अपनी टोली बनाने की भी कोशिश की। वो बिहार क्रिकेट की कीर्ति आजाद एसोसिएशन से भी सम्बद्ध रहे हैं। उन्होंने बिहार में क्रिकेट को पहचान दिलाने के लिए अपने गृह नगर के कैमूर जिले में एक विश्व स्तर के क्रिकेट स्टेडियम का निर्माण कराने की योजना बना रहे हैं।

व्यक्तिगत जीवन भी विवादों में रहा
1998 में मनोज तिवारी की रानी से अरेंज मैरिज हुई थी, लेकिन व्यक्तिगत कारणों से मनोज तिवारी ने पत्नी को तलाक दे दिया। तलाक के बाद मनोज ने कहा कि यह मेरे जीवन का बहुत बड़ा झटका है। मैं तलाक नहीं देना चाहता था, लेकिन मजबूरन मुझे तलाक देना पड़ा।’’ अपनी पत्नी की खुशी के लिए मैंने उन्हें तलाक दे दिया। 7 फरवरी को कोर्ट ने हमारे तलाक को मंजूरी दे दी।’’
मनोज तिवारी के दिल में बसता है बिहार
मनोज तिवारी भले ही मुंबई जैसे अत्याधुनिक मेट्रो शहर में रहते हैं, लेकिन उनके बंगले में दाखिल होने के बाद आपको यूपी-बिहार के किसी घर में होने का एहसास होगा। हॉल की दीवारें फिल्मों के मंढे हुए फोटोग्राफ्स से सजी हैं। मेज देश-विदेश के पुरस्कारों से पटे पड़े हैं। अगर आप शाम को उनके घर में हैं तो सत्तू आपको नाश्ते में मिलेगा।
नीदरलैंड ने जारी किया था डाक-टिकट
भोजपुरी गायक मनोज तिवारी के सुनने वालों के लिए एक बड़ी और अच्छी खबर है। क्योंकि लोकप्रिय गायक मनोज तिवारी के ऊपर डाक टिकट जारी किया गया है वो भी नीदरलैंड में। वहां की सरकार का कहना है कि यहां के लोगों में मनोज तिवारी बहुत ज्यादा लोकप्रिय हैं। इसी बात को ध्यान में रखते हुए नीदरलैंड ने मनोज तिवारी के ऊपर डाक टिकट जारी किया है। जिसकी कीमत भारतीय मुद्रा में 45 रूपये है, जबकि कनाडा की मुद्रा में 44 यूरो सेंट है। डाक टिकट पर मनोज तिवारी एक पगड़ी बांधे हुए दिख रहे हैं।
भोजपुरी को दिलायी पहचान
आपको बता दें भोजपुरी गायिकी और फिल्म को एक विश्वस्तरीय पहचान दिलाने का पूरा श्रेय केवल मनोज तिवारी मृदुल को जाता है। उनकी गायिकी और अभिनय के बदौलत आज लोगों के दिलों में भोजपुरी बसने लगी है। मनोज तिवारी को भोजपुरी का अमिताभ कहते हैं।मनोज तिवारी ने जो भी कमाया है, अपनी मेहनत और अपनी काबिलियत के बूते कमाया है। गांव देहात के रीति रिवाज वो अब भी मानते हैं, बड़ों को पैलगी करना और सम्मान करना इस कलाकार की सबसे बड़ी खूबी है।हमेशा चेहरे पर प्यारी मुस्कान और लोगों से तहे दिल से मिलने वाले खुशमिजाज इंसान हैं मनोज तिवारी 'मृदुल'।

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