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    मध्यकाल में मंदिर तोड़े गए, उन घटनाओं पर पश्चाताप करना चाहिए: केके मोहम्मद

    Updated: Tue, 22 Apr 2025 03:10 PM (IST)

    केके मोहम्मद पद्मश्री से सम्मानित पुरातत्वविद् मध्यकाल में मंदिरों के विध्वंस पर पश्चाताप करने का आह्वान करते हैं। उनका मानना है कि मुसलमानों को उदारता दिखानी चाहिए और भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करने में कोई बाधा नहीं थी। उन्होंने यह भी दावा किया कि इतिहास का सच है कि मध्यकाल में तमाम मंदिर तोड़े गए उन घटनाओं पर पश्चाताप करना चाहिए।

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    मध्यकाल में मंदिर तोड़े गए, उन घटनाओं पर पश्चाताप करना चाहिए: केके मोहम्मद (फाइल फोटो)

    सुविज्ञ दुबे, पटना। अयोध्या में खोदाई, राम मंदिर के साक्ष्यों को सामने लाने और बिहार में अनेक पुरातात्विक स्थलों का अन्वेषण करने वाले पद्मश्री से अलंकृत केके मोहम्मद बिहार में चार वर्ष एएसआइ (आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया) के सुपरिंटेंडेंट आर्कियोलॉजिस्ट का दायित्व निभा चुके हैं।

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    विश्व के सबसे बड़े बौद्ध स्तूप केसरिया की खोज का भी श्रेय उन्हें जाता है। राजगीर के समीप बुद्ध अस्थिकलश (कास्केट) की खोज भी उन्होंने ही की थी। यह बुद्ध के अबतक मिले सभी अस्थिकलश में सबसे बड़ा है।

    विशेष बातचीत में केके मोहम्मद ने कहा कि इतिहास का सच है कि मध्यकाल में तमाम मंदिर तोड़े गए, उन घटनाओं पर पश्चाताप करना चाहिए। मुसलमानों चाहिए कि वे उदारता दिखाएं। इससे पूरी दुनिया में बेहद अच्छा संदेश जाएगा। आजादी के बाद भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करने में कहीं कोई अड़चन नहीं थी। हिंदू बहुल आबादी होने की वजह से ही यह सेक्युलर राष्ट्र बना।

    'पुरातात्विक साक्ष्य हमें सच्चाई के समीप ले जाते हैं'

    अयोध्या में हुए पुरातात्विक उत्खनन में एसएसआई को मौके पर मंदिर होने के साक्ष्य मिले। इन ठोस सबूतों को न्यायालय ने भी माना और इसपर मुहर लगाई। कई बार ऐसा होता है कि सच्चाई आमतौर पर प्रचलित बातों से अलग होती है। हमें बगैर किसी पूर्वाग्रह के काम करना होता है। हमें अपने अतीत को सामने लाना ही होगा।

    'रोचक है राजगीर में अस्थिकलश मिलने की कहानी'

    इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि बुद्ध के अस्थि अवशेष आठ स्थलों पर संरक्षित किए गए थे। इनमें राजगीर के पास मिला अस्थिकलश काफी बड़ा है। सम्राट अजातशत्रु ने राजगीर के निकट इसे रखा था, पर इसका पता नहीं चल रहा था। इसके सामने आने की कहानी काफी रोचक है। राजगीर में रेलवे लाइन बिछाई जा रही थी। इसका एक हिस्सा संरक्षित स्थल से होकर गुजर रहा था तो मेरे पास इसकी अनुमति के लिए पत्र आया।

    रेलवे अधिकारी एलाइनमेंट बदलने को तैयार नहीं थे। काफी दबाव था। तब मैंने एएसआइ की तरफ से तत्काल वहां मौजूद एक टीले की खोदाई शुरू करा दी गई। यहीं खोदाई के दौरान बुद्ध के अस्थि अवशेषों का सबसे बड़ा कास्केट मिला। हालांकि, यह साबूत नहीं था।

    खजाने की लालच में लोगों ने इस पूरी जगह को खोद डाला था। इसी दौरान उन्होंने बुद्ध के अस्थि अवशेष के कास्केट को भी क्षतिग्रस्त कर दिया था। इसके बावजूद यह बहुत बड़ी उपलब्धि थी।

    'आर्थिकी में बड़ा सहयोग कर सकते हैं बिहार के पुरातात्विक स्थल'

    मिस्र जैसे देश जिनके पास प्राचीन धरोहरें हैं, उन्होंने उसका काफी बेहतर ढंग से प्रबंधन व उपयोग किया है। सीमित धरोहरों वाले छोटे-छोटे देश इनकी बेहतर देखरेख करते हैं। बिहार में कदम-कदम पर पुरातात्विक स्थल हैं। खासतौर पर बौद्ध धरोहरों के मामले में बिहार बहुत समृद्ध है।

    दुनिया में दर्जन भर देश ऐसे हैं, जहां बौद्धधर्म के अनुयायी बहुतायत में हैं। इन देशों से आने वाले पर्यटकों को यदि हम बिहार में बेहतर सुविधाएं देकर प्रवास के लिए रोक सकें तो वे बिहार की आर्थिकी में बड़ा सहयोग कर सकते हैं।

    'तमिल के अलावा हिंदी सीखी तो बिहार का इतिहास जान सका'

    ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ पढ़कर मेरी रुचि इतिहास में जगी। मुझे उस समय तमिल छोड़कर कोई भाषा नहीं आती थी। मैंने इस पुस्तक का तमिल अनुवाद पढ़ा था। इसी क्रम में मुझे नालंदा के बारे में एक पुस्तक पढ़ने को मिली। इससे मुझे बिहार में रुचि जगी। मुझे लगा कि आगे पढ़ने के लिए अंग्रेजी या हिंदी सीखना होगा तो मैं अलीगढ़ चला गया। वहां हिंदी के अध्ययन से मुझे बड़ा लाभ यह हुआ कि मैं बिहार के इतिहास को जान सका।

    यहां सत्तर किलोमीटर के दायरे में तमाम ऐतिहासिक स्थल हैं। मैं इन सभी जगहों पर गया और मैंने इनके बारे में जानना शुरू किया। इसके बाद मैंने एएसआइ ज्वाइन किया और पूरे देश में पुरातात्विक स्थलों का अध्ययन और इनकी खोज की।