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    कारगिल दिवस विशेष: सेना ने मान लिया था शहीद, 11 दिनों बाद जिंदा लौटा सैनिक

    By Kajal KumariEdited By:
    Updated: Wed, 26 Jul 2017 11:09 PM (IST)

    कारगिल युद्ध में 11 दिनों तक पाकिस्तानी गोलीबारी के बीच जिंदगी और मौत से जूझने वाले सैनिक शत्रुघ्न सिंह, जिन्हें सेना ने मृत घोषित कर दिया था, वह मौत से जीतकर जिंदा वापस आए।

    कारगिल दिवस विशेष: सेना ने मान लिया था शहीद, 11 दिनों बाद जिंदा लौटा सैनिक

    पटना [जितेंद्र कुमार]। युद्ध कारगिल का था मगर उसने जीत मौत पर पाई थी। सेना ने भी उसे शहीद बता दिया मगर वह 11 दिनों तक पाकिस्तानी गोलीबारी के बीच जिंदगी और मौत से लड़ता रहा। कभी बर्फ को कपड़े से भिगोकर सूखते हलक को तर करता तो कभी पैर में गोली लगने के बाद बने घाव को अपने पेशाब से भरने की कोशिश करता।

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    11 दिनों के बाद जब वह जिंदा वापस भारतीय कैंप में लौटा तो सेना ने उसे वीर चक्र देकर सम्मानित किया। बिहार रेजिमेंट के इस जवान का नाम है शत्रुघ्न सिंह। वे मूल रूप से बलिया जिले के दुधौला गांव के निवासी हैं। शत्रुघ्न अब सेना में सूबेदार हैं और फिलहाल अरुणाचल के एलांग में चीन से सटे बॉर्डर पर तैनात हैं। 

    कारगिल युद्ध के दौरान शत्रुघ्न की ड्यूटी लेह में थी। 17 मई 1999 को वह छुट्टी लेकर घर लौट रहे थे। वे अभी श्रीनगर ही पहुंचे थे कि सूचना मिली कि कारगिल में पाक सैनिकों ने घुसपैठ कर ली है और उनकी यूनिट लड़ाई में जा रही है।

     

    शत्रुघ्न वापस लौटे। यूनिट कमांडर कर्नल ओपी यादव से मिलकर छुट्टी रद कराई और लड़ाई में जाने का प्रस्ताव दिया। प्रस्ताव मंजूर हो गया और 21 मई को कारगिल के बटालिक सेक्टर में पाक सैनिकों पर हमले की योजना बनी।

     

    मेजर एम. सर्वाणन के नेतृत्व में नायक शत्रुघ्न सिंह, गणेश प्रसाद यादव, सिपाही प्रमोद कुमार और ओमप्रकाश गुप्ता रेकी पर निकल गए। 27 मई की रात में हमला करना था लेकिन किसी कारण ये टल गया। 28 मई को बटालिक पोस्ट पर कब्जे के लिए दल ने कूच किया ही था कि गोलीबारी शुरू हो गई।

     

    इस लड़ाई में मेजर एम. सर्वाणन, नायक गणेश प्रसाद यादव, सिपाही प्रमोद कुमार और ओम प्रकाश गुप्ता शहीद हो गए। शत्रुघ्न को भी दाएं पैर में गोली लगी और वह बेहोश हो गए। भारतीय सेना को बाकी शहीदों के शव मिले लेकिन शत्रुघ्न का अता-पता नहीं चला। सेना की ओर से शहीदों की पहली सूची में शत्रुघ्न के नाम की घोषणा कर दी गई। श्रद्धांजलि भी दे दी गई मगर नियति को कुछ और मंजूर था। 

     

    चाकू से निकाली गोली, बर्फ से बुझाई प्यास

    बर्फीली चोटी पर जहां हर सकेंड गोली और बम की आवाजें दिल दहला रही थीं, शत्रुघ्न लगभग बेहोशी की हालत में पड़े रहे। अगले दिन होश आया तो खुद को भारतीय और पाकिस्तानी सेना के बीच बर्फ में फंसा हुआ पाया। उन्होंने पैर में लगी गोली को चाकू से निकाला और खून रोकने के लिए कपड़ा बांध दिया।

     

    पास के किट बैग में थोड़े ड्राई फ्रूट्स और चॉकलेट थे जिसके सहारे वह भूख से लड़ते रहे। प्यास लगी तो कपड़े को बर्फ से भिगो दिया और उसे चूसकर गला तर किया। 

     

    तीन किलोमीटर रेंगकर लौटे कैम्प

    इस बीच तीन दिन बीत गए। पाक सैनिक उनके करीब पहुंच रहे थे। शत्रुघ्न सिंह ने अपनी मशीन गन से गोलियों की बौछार कर दी जिसमें पाकिस्तानी सैनिक अब्दुल्ला अयूब मारा गया। इसने शत्रुघ्न को हिम्मत दी और उन्होंने वापस भारतीय कैम्प में लौटने का फैसला लिया।

     

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    बर्फ और पत्थरों पर करीब तीन किलोमीटर तक रेंगते हुए वह 11 दिनों बाद भारतीय सेना के पोस्ट पर वापस लौट आए। सेना ने हेलीकॉप्टर से उन्हें अस्पताल पहुंचाया। शत्रुघ्न सिंह को नायक से सूबेदार में प्रोन्नति दी गई। राष्ट्रपति ने वीर चक्र से सम्मानित किया। 

     

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