Bihar Politics: जीतन राम मांझी ने फरवरी में खाई नीतीश कुमार से 'वफादारी' की कसम... जून में ही टूट गई!
Bihar Politics मांझी का महागठबंधन से मोह भंग एक दिन की बात नहीं है। इसकी शुरुआत महागठबंधन की सरकार के साथ ही हो गई थी। राजग सरकार में दो मंत्री का पोर्टफोलियो रखने वाले संतोष सुमन से लघु जल संसाधन का मंत्रालय छीन लिया गया।

कुमार रजत, पटना: राजनीति में कसमें नहीं खाई जातीं। जो खाते हैं, वह भी नहीं बता सकते कि कब तक निभा पाएंगे। पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने भी नीतीश कुमार के प्रति वफादारी साबित करने के लिए फरवरी में कसम खाई थी।
विधानमंडल दल की बैठक में कहा था- कसम खाकर कहता हूं, नीतीश का साथ छोड़कर नहीं जाऊंगा। बीच-बीच में कभी सरकार की आलोचना करते या नाराजगी दिखाते भी तो यह जरूर कहते कि वह नीतीश कुमार के साथ हैं और रहेंगे। मगर ऐसा हो न सका। आखिरकार, जून में मांझी की कसम टूट गई! विपक्षी एकता से पहले महागठबंधन की एकता में दरार आ गई।
मांझी का महागठबंधन से मोह टूटना एक दिन की बात नहीं है। इसकी शुरुआत महागठबंधन की सरकार के साथ ही हो गई थी। राजग सरकार में दो मंत्री का पोर्टफोलियो रखने वाले संतोष सुमन से लघु जल संसाधन का मंत्रालय छीन लिया गया।
जिस राजद की बेरुखी से मांझी पाला छोड़कर जदयू के साथ आए थे, वहां फिर से राजद बड़े भाई की हैसियत में था। मांझी कहते भी रहे कि महागठबंधन में उनका गठबंधन जदयू से है।
बेटे को बताया था सीएम के लायक
फरवरी में मांझी ने तेजस्वी या चिराग का नाम लिए बिना कहा था कि मेरा बेटा संतोष युवा है और अच्छी तरह से शिक्षित है। जिन लोगों का नाम सीएम पद के लिए आया है, उनसे मेरा बेटा ज्यादा योग्य है। वह प्रोफेसर है और ऐसे लोगों को पढ़ा सकता है।
शराबबंदी को लेकर रहे मुखर
शराबबंदी को लेकर जीतन राम मांझी पहले दिन से मुखर रहे हैं। स्पष्ट कह चुके हैं कि सिर्फ गरीब और कमजोरों को ही पुलिस पकड़ती है। लगातार शराबबंदी की समीक्षा की अपील करते रहे। को-आर्डिनेशन कमेटी की उनकी मांग की भी अनदेखी हुई।
अप्रैल में अमित शाह से मिले
मांझी नई दिल्ली में 13 अप्रैल को गृह मंत्री अमित शाह से मिले। पूछने पर बताया गया कि पहाड़ काटने वाले दशरथ मांझी को भारत रत्न देने की मांग को लेकर मुलाकात हुई मगर बंद कमरे में दोनों नेताओं की मुलाकात के राजनीतिक मायने निकाले गए।
सात को सीएम, आठ को राज्यपाल से मिले
जून आते-आते मांझी की अकुलाहट दिखने लगी। सात जून को वह विधायकों के साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलने पहुंचे। मिलकर लौटे तो फिर नीतीश के साथ रहने की बात दोहराई। हालांकि यह भी कहा कि विपक्षी एकता की बैठक में नहीं बुलाया गया।इसके अगले ही दिन आठ जून को वह राजभवन जाकर राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर से मिले।
लोकसभा की सीट बनी अंतिम फांस
जदयू और हम के रिश्तों के बीच लोकसभा की सीट पर जिच अंतिम फांस बनी। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और मांझी के बेटे संतोष कुमार सुमन ने पांच सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कहकर जदयू को संकेत दे दिया। मांझी भी कहते रहे कि पार्टी का जनाधार बढ़ा है और कार्यकर्ताओं का भी ख्याल रखना है।
गरीब संपर्क यात्रा निकालकर ताकत भी दिखाई। हालांकि बात बनी नहीं। नतीजा, 12 जून को मांझी ने बयान दिया कि वह एक भी लोकसभा सीट पर चुनाव नहीं लड़ेंगे। उनकी नाराजगी यह बता रही थी कि महागठबंधन में हम अब चंद दिनों की मेहमान है।

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