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    'आपके दम पर है पार्टी, किसी नेता का पांव न छूएं'- JDU अध्यक्ष ललन सिंह की कार्यकर्ताओं को सलाह

    By Arun AsheshEdited By: Yogesh Sahu
    Updated: Tue, 27 Dec 2022 09:04 PM (IST)

    दैनिक जागरण से बातचीत में ललन सिंह ने कहा कि हमारे दल में कार्यकर्ताओं का स्थान सर्वोच्च है। उनकी मेहनत से ही पार्टी का आधार है। चुनावों में भी जीत होती है। अच्छा नहीं लगता कि जिलों से आए कार्यकर्ता या नेता मुख्यालय में बैठे लोगों के पैर छूएं। ।

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    'आपके दम पर है पार्टी, किसी नेता का पांव न छूएं'- JDU अध्यक्ष ललन सिंह की कार्यकर्ताओं को सलाह

    पटना, राज्य ब्यूरो। बड़े नेताओं के पांव छूकर कुछ हासिल करना कम से कम अब जदयू में आसान नहीं होगा। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं सांसद राजीव रंजन सिंह ऊर्फ ललन सिंह ने मंगलवार को कार्यकर्ताओं को साफ-साफ कहा कि वे पांव छूने से परहेज करें। यह सामंती व्यवहार का अंग है। हम समाजवादी हैं। यहां पांव छूने से बचना चाहिए। उन्होंने कहा कि संगठन में काम करने वालों को वरीयता मिलती रही है। पांव छूकर पद लेने की परिपाटी जदयू में नहीं हैं। हां, कुछ दूसरी पार्टियों में यह संस्कृति है।

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    सिंह ने दैनिक जागरण से बातचीत में कहा कि हमारे दल में कार्यकर्ताओं का स्थान सर्वोच्च है। गांव-टोले में उनकी मेहनत से ही पार्टी का आधार बना है। उनकी मेहनत से ही चुनावों में जीत होती है। यह अच्छा नहीं लगता है कि जिलों से आए कार्यकर्ता या नेता मुख्यालय में बैठे नेताओं के पांव छूएं। उनसे याचना करें। उन्होंने स्वीकार किया कि कई बार अधिक उम्र के कार्यकर्ता भी कम उम्र के पदधारकों के पांव छू लेते हैं। इससे हास्यास्पद स्थिति उत्पन्न हो जाती है। जदयू में काम के आधार पर कार्यकर्ताओं को सम्मानित किया जाता है। विधानसभा, लोकसभा, राज्यसभा और विधान परिषद में सबसे अधिक कार्यकर्ताओं को जदयू ने ही भेजा है।

    सभी दलों में है यह चलन

    बिहार के सभी दलों में पांव छूने का पुराना चलन है। कई राजनेता तो अपना पांव टेबुल पर ही रखते हैं, ताकि कार्यकर्ता-नेता या अधिकारी को पांव छूने के लिए अधिक न झुकना पड़े। मोटे लोगों को झुकने में परेशानी होती है। पांव छूने के फेर में कभी कभी अप्रिय दृश्य उपस्थित हो जाता है। महिला कार्यकर्ताओं की परेशानी अलग है। ऐसा नहीं है कि पांव छूना हमेशा असफल ही हो जाता है।कई लोग इसी माध्यम से सांसद, विधायक और मंत्री बने हुए हैं। बोर्ड और निकायों के अध्यक्षों और सदस्यों के पद भी इस आधार पर मिलते रहे हैं।