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    Jagran Exclusive Interview: भगवान के आगे किसी की नहीं चलती, व्यवधान उत्पन्न करने वाले और टालने वाले भी परमात्मा ही हैं: आगमानंद

    Updated: Thu, 10 Jul 2025 04:45 PM (IST)

    परमात्मा की प्राप्ति का मार्ग गुरु बताते हैं। गुरु के द्वारा दी गई शिक्षा कभी बंट नहीं सकती कभी नष्ट नहीं हो सकती इसे आत्मसात करने की जरूरत है।अंतर मन में बसी बातें अनायास ही निकल जाती है श्रद्धा से लिया गया नाम सदा कल्याणकारी होता है। इसलिए गुरु के पास जरूर जाना चाहिए।

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    पीठाधीश्वर परमहंस स्वामी आगमानंद जी महाराज अपने शिष्य के साथ शिक्षा देते हुए

    राधा कृष्ण, पटना। भारतीय संस्कृति में सदगुरु को सर्वोच्च प्रदान किया गया है प्रभु कि सत्ता का ज्ञान, उनकी उपासना एवं उनके प्रेम की अनुभूती और सीख सदगुरु से ही मिलती है। गुरु पूर्णिमा के दिन गेट लाइब्रेरी में पटना पहुंचे श्री उत्तरतोताद्री मठ, विभीषण कुण्ड, अयोध्या के उत्तराधिकारी और श्री  शिवशक्ति योगपीठ, नवगछिया भागलपुर के पीठाधीश्वर परमहंस स्वामी आगमानंद जी महाराज ने गुरु की महत्ता पर प्रकाश डाला

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    सवाल: महाराज आपके गुरु कौन थे?

    जवाब: वस्तुत: गुरुतत्व गुरु शब्द अनंत है, इसकी कोई सीमा है नहीं वैसे हमारे प्रथम दीक्षा गुरुदेव पीठाधिश्व  स्वामी अनीताचार्य महाराज जी थे। साधना उपासना के क्रम में मैं मानता हूं कि जिनसे कुछ ज्ञान मिला वो गुरु है जैसे की माता-पिता भी गुरु है। गुरुतत्व जिसमें है उन सब को हम गुरु मानते है। 

    सवाल: महाराज आप किसी चेहरा और परिचय के मोहताज नहीं हैं फिर भी हम आपका एक संक्षिप्त परिचय चाहते हैं।

    जवाब: अपना परिचय तो व्यक्ति को खुद नहीं देना चाहिए इससे अहम भाव आता है, मेरा परिचय इतना ही है कि जनमानस की सेवा के लिए भगवान ने हमें भेजा है।

    सवाल: आमतौर पर सबका जन्म परिवार के बीच गृहस्थ आश्रम में होता है आपका भी हुआ होगा, फिर संत कैसे और क्यों बने? 

    जवाब: इसके एक कारण नहीं अनेक कारण हैं। इनमें मूल कारण है, पूर्व जन्म का संस्कार जो अनायास ही व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। अनेक संयोग बनते हैं फिर परमात्मा की इच्छा होती है और हम संत की राह में निकल पड़ते हैं।

    सवाल: संत बनने में व्यवधान भी बहुत आये होंगे।

    जवाब: किसी भी अच्छे कार्य में व्यवधान जरूर आता है, पर भगवान की इच्छा के आगे किसी की नहीं चलती, व्यवधान उत्पन्न करने वाले और टालने वाले भी परमात्मा ही हैं।

    सवाल: आपकी लिखी कई पुस्तकें हैं, इनमें सबसे चर्चित कौन सी है?

    जवाब: मेरी सबसे प्रिय और श्रेष्ठ रचना श्री दुर्गा चरित मानस है। दुर्गा उपासना के दौरान इसकी रचना की गई है, इसे बहुत ही सरल ढंग से तैयार किया गया है। इस पर शोध भी  जारी है। 

    सवाल: श्री दुर्गा चरित मानस और दुर्गा सप्तशती में क्या अंतर है?

    जवाब: अंतर कुछ खास नहीं है, दुर्गा सप्तशती के सामासिक शब्दों को हमने उच्चारण के ख्याल से तोड़कर अलग किया है। जो लोग उच्चारण नहीं कर पाते हैं उनके लिए यह पुस्तक उपयोगी है। 

    सवाल: गुरु पूर्णिमा पर क्या कहना चाहेंगे?

    जवाब: सनातन धर्म के अनुसार यह तिथि सबसे ज्यादा श्रेष्ठ है। इस दिन सभी दर्शन का समाधान होता है।

    सवाल: कहा जाता है गुरु से सीख नहीं होने पर पूजा पूर्ण नहीं होती, आपका क्या विचार है?

    जवाब: परमात्मा की प्राप्ति का मार्ग गुरु बताते हैं। गुरु के द्वारा दी गई शिक्षा कभी बंट नहीं सकती, कभी नष्ट नहीं हो सकती, इसे आत्मसात करने की जरूरत है।

    सवाल: लोग कहते हैं गुरु का नाम नहीं लेना चाहिए, आपकी दृष्टि में क्या है?

    जवाब: अंतर मन में बसी बातें अनायास ही निकल जाती है, श्रद्धा से लिया गया नाम सदा कल्याणकारी होता है। 

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