Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    जगजीवन राम: दलित नेता जो बन सकते थे पीएम, इंदिरा से अदावत व बेटे की तस्वीरों से खत्‍म हो गया आधी सदी का राजनीतिक जीवन

    By Amit AlokEdited By:
    Updated: Tue, 05 Apr 2022 05:42 PM (IST)

    Jagjivan Ram Birth Anniversary बाबू जगजीवन राम बिहार में पले-बढ़े देश के बढ़े दलित नेता थे जो पीएम बन सकते थे। इंदिरा गांधी से उनकी अदावत व बेटे की एक महिला के साथ आपत्तिजनक तस्वीरों ने 50 साल के उनके राजनीतिक जीवन का द-एंड कर दिया।

    Hero Image
    बाबू जगजीवन राम एवं इंदिरा गांधी। फाइल तस्‍वीरें।

    पटना, ऑनलाइन डेस्‍क। Jagjivan Ram Birth Anniversary: छुआछूत का शिकार एक बालक, जिसने स्‍कूल में आम छात्रों से अलग मटके से पानी पीने पर मटका फोड़कर विरोध दर्ज किया। कालेज जीवन में जब नाई ने बाल काटने से इनकार किया, तब भेदभाव के खिलाफ आंदोलन खड़ा कर दिया। यह बालक आगे बड़ा होकर साल 1946 में पंडित नेहरू की प्रोविजनल कैबिनेट में सबसे युवा मंत्री बना। बांग्लादेश के निर्माण के समय रक्षा मंत्री रहते पाकिस्‍तान के दांत खट्टे किए तो बतौर कृषि मंत्री पहली हरित क्रांति को साकार किया। हम बात कर रहे हैं बिहार में पले-बढ़े कद्दावर दलित नेता रहे बाबू जगजीवन राम (Babu Jagjivan Ram) की, जिनकी आज जयंती है। उन्‍हें भावी प्रधानमंत्री के रूप में भी देखा गया, लेकिन इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) से अदावत और बेटे की एक महिला के साथ आपत्तिजनक तस्‍वीरों (Objectionable Pictures of Son with Woman) ने उनके 50 साल के राजनीतिक जीवन पर हीं विराम लगा दिया। अब उनकी राजनीतिक विरासत बेटी मीरा कुमार (Meira Kumar) संभाल रहीं हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    स्वतंत्रता आंदोलन से कई सरकारों तक रही अहम भूमिका

    दलितों के मसीहा माने जाते रहे बाबू जगजीवन राम का राजनीतिक जीवन संघर्ष भरा रहा। स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर आजादी की बाद बनी कई सरकारों तक में उनकी अहम भूमिका रही। आपातकाल के दौरान वे तत्‍कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ रहे, लेकिन प्रधानमंत्री बनने की उनकी ख्‍वाहिश ने नेहरू-गांधी परिवार से उनके रिश्ते खराब कर दिए। इंदिरा गांधी से अलग होने के बाद उनका राजनीतिक जीवन धीरे-धीरे खत्‍म होता चला गया।

    छात्र जीवन में छुआछूत व सामाजिक भेदभाव के शिकार

    साल 1908 के पांच अप्रैल को बिहार के आरा में जन्‍में व पले-बढ़े बाबू जगजीवन राम को बचपन से हीं छुआछूत व सामाजिक भेदभाव का शिकार होना पड़ा था। बिहार के आरा के जिस स्कूल में वे पढ़ते थे, वहां दलित छात्रों के पानी पीने के लिए अलग मटका रखा गया था। उन्‍होंने इसका विरोध मटका फोड़कर किया। आगे 1931 में उन्‍होंने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया, लेकिन भेदभाव से यहां भी पीछा नहीं छूटा। यहां तक कि नाई ने उनके बाल काटने से इनकार कर दिया। जगजीवन राम ने इसके खिलाफ आवाज उठाई। हालांकि, भेदभाव के कारण उन्‍होंने बीएचयू को छोड़कर कलकत्ता यूनिवर्सिटी में दाखिला ले लिया।

    30 साल तक कैबिनेट मंत्री, आधी सदी तक रहे सांसद

    कलकत्‍ता यूनिवर्सिटी में पड़ाई के दौरान जगजीवन राम की मुलाकात सुभाष चंद्र बोस से हुई। यहीं वे महात्मा गांधी के संपर्क में भी आए। वे 1931 में कांग्रेस से जुड़े तथा 1946 में जवाहर लाल नेहरू की अंतरिम सरकार में सबसे कम उम्र के मंत्री बने। साल 1952 के स्‍वतंत्र भारत के पहले आम चुनाव में वे पहली बार सासाराम से चुनाव लड़े और 1986 तक वहां के सांसद रहे। जगजीवन राम 30 साल तक कैबिनेट मंत्री रहे। साल 1986 में देहांत तक उन्‍होंने आधी सदी तक सांसद रहने का रिकॉर्ड बना लिया था।

    देश के उप प्रधानमंत्री बने, रक्षा व कृषि मंत्री भी रहे

    जगजीवन राम ने 1937 से 1975 तक कांग्रेस में कई अहम दायित्‍वों का निर्वाह किया। 1940 से 1977 तक वे ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के सदस्य रहे। वे नेहरू से लेकर मोरारजी देसाई की गठबंधन सरकार तक में मंत्री रहे। उनकी बेटी व पूर्व लोकसभा अध्‍यक्ष मीरा कुमार बताती हैं कि इस दौरान वे उप प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री, कृषि मंत्री व सूचना-प्रसारण मंत्री जैसे कई बड़े पदों पर रहे। साल 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध व बांग्‍लादेश के निर्माण के वक्‍त जगजीवन राम देश के रक्षा मंत्री थे। देश में जब हरित क्रांति आई उस समय वह देश के कृषि मंत्री थे।

    आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी का दिया था साथ

    आपातकाल के दौरान जगजीवन राम इंदिरा गांधी के साथ रहे। साल 1977 में इंदिरा गांधी के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले से संवैधानिक संकट पैदा हो गया था। तब इंदिरा गांधी सबसे पहले जगजीवन राम से हीं मिलने गईं थीं। बताया जाता है कि इंदिरा ने उनसे वादा किया था कि अगरे उन्हें प्रधानमंत्री के पद से हटना पड़ा तो वे अगले प्रधानमंत्री होंगे।

    जनता पार्टी सरकार में प्रधानमंत्री पद के थे दावेदार

    आपातकाल के बाद अलग होकर हेमवती नंदन बहुगुणा के साथ मिलकर अलग पार्टी कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी बनाई। फिर, जनता पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा। जनता पार्टी की जीत के बाद जगजीवन राम प्रधानमंत्री पद के बड़े दावेदार थे, लेकिन उस वक्‍त के सियासी गणित में वे अपने लिए समर्थन नहीं जुटा सके। बताया जाता है कि प्रधानमंत्री का पद नहीं मिलने से वे इतने नाराज हुए कि 27 मार्च 1977 को मोरारजी देसाई की जनता पार्टी सरकार के शपथग्रहण समारोह में शामिल नहीं हुए। बाद में जयप्रकाश नारायण के समझाने पर उप प्रधानमंत्री बने।

    बेटे की न्यूड तस्वीरों ने खड़ा कर दिया भारी बवाल

    इसी दौर में उनके बेटे की न्यूड तस्वीरों ने भारी राजनीतिक बवाल खड़ा कर दिया था। साल 1978 में पत्रिका 'सूर्या' में जगजीवन राम के बेटे सुरेश राम की एक महिला के साथ आपत्तिजनक तस्‍वीरें छपीं। बताया जाता है कि सुरेश राम ने उस महिला से शादी भी की थी, लेकिन विवाद तो खड़ा हो ही गया था। उस वक्‍त जगजीवन राम रक्षा मंत्री थे। इस मामले ने उनके पीएम बनने के सपने को तोड़ दिया। जनता पार्टी की मोरारजी देसाई की सरकार 1979 में गिर गई तो एक बार फिर चौधरी चरण सिंह और जगजीवन राम के बीच राजनीतिक युद्ध शुरू हुआ, लेकिन उन्‍हें निराशा हाथ लगी।

    नाकामयाब रही कांग्रेस में दोबारा वापसी की को‍शिश

    आगे 1980 के आम चुनाव में जगजीवन राम को जनता पार्टी ने प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया, लेकिन इंदिरा गांधी की सत्ता में वापसी हो गई। अब तक जगजीवन राम जनता पार्टी को छोड़कर कांग्रेस (जे) बना चुके थे। इंदिरा गांधी की दोबारा सत्ता में वापसी के बाद जगजीवन राम ने कांग्रेस में वापसी की को‍शिश की, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। हां, जगजीवन राम की बेटी मीरा कुमार को कांग्रेस ने जगह दी। संयुक्‍त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार के दौरान वे लोकसभा अध्‍यक्ष रहीं। कांग्रेस ने उन्‍हें राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार भी बनाया।

    comedy show banner
    comedy show banner