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    फिर लगेगा शायर मो शाद अजीमाबादी के मजार पर जमघट, जिसने कहा था- मैं वो मोती तेरे दामन में हूं ऐ खाके बिहार

    By Sumita JaiswalEdited By:
    Updated: Wed, 06 Jan 2021 05:12 PM (IST)

    अंतरराष्ट्रीय शायर सैयद अली मोहम्मद शाद अजीमाबादी की कल 93वीं पुण्यतिथि और आठ को जयंती है। पटना सिटी के हाजीगंज स्थित लंगर गली के एक कोने में उपेक्षित लेकिन महफूज है उनका मजार। इस बार फिर सात जनवरी को आयोजित होने वाली 93वीं पुण्यतिथि पर इनके कद्रदानों की जमघट लगेगी।

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    शायर सैयद अली मोहम्मद शाद अजीमाबादी की फाइल फोटो।

    पटना सिटी, अहमद रजा हाशमी ।  बिहार की सरजमीन पर 8 जनवरी 1846 में जन्मे सैयद अली मोहम्मद शाद अजीमाबादी को उर्दू और शायरी ने अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलायी। उर्दू साहित्य में शहिंशाह ए गजल मिर्जा गालिब सी हैसियत रखने वाले इस शायर के चाहने वाले हर एक मुल्क और हिंदुस्तान के चप्पे चप्पे में हैं। कई विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में यह पढ़े जाते हैं। बेशकीमती यह हीरा आज पटना सिटी के हाजीगंज स्थित लंगर गली के एक कोने में लेटा है। इनकी मजार पर एक बार फिर सात जनवरी को आयोजित होने वाली 93वीं पुण्यतिथि पर इनके कद्रदानों की जमघट लगेगी। शेर पढ़े जाएंगे। वाहवाही गूंजेगी। फिर सब कदम लौट चलेंगे। पीछे रह जाएगी इनकी उपेक्षित मजार से और शिनाख्सत सी जुड़ी चीजों का उदास मंजर। 7 जनवरी 1927 में अजीमाबाद को छोड़ने वाले इस शायर को जिंदगी में ही अपने इस हश्र का शायद अंदाजा हो गया था। तभी उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा था कि

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    मैं वो मोती तेरे दामन में हूं ऐ खाके बिहार

    आज तक दे न सका एक भी कीमत मेरी।

    हर बार वादों और घोषणाओं के बावजूद आज तक हाशिये पर रहने वाले इस महान शायर ने यहां तक कहा कि

    तमन्नाओं में उलझाया गया हूं

    खिलौने दे के मैं बहलाया गया हूं

    लहद में क्यों न जाऊं मुंह छिपाए

    भरी महफिल से उठवाया गया हूं

    इंसान और मुल्क से मोहब्बत, भाइचारा, इंसानियत का पैगाम शेर की जबान देने वाले इस शायर ने यह शेर कह कर सब्र कर लिया कि

    खामोशी से मुसीबत और भी संगीन होती है

    तड़प ऐ दिल तड़पने से जरा तस्कीन होती है

    अब भी इक उम्र पे जीने का न अंदाज आया

    जिंदगी छोड़ दे पीछा मेरा मैं बाज आया

    पीते पीते तेरी उम्र कटी उस पर भी

    पीने वाले तुझे पीने का न अंदाज आया

    कौन सी बात नई ऐ दिल ए नाकाम हुई

    शाम से सुबह हुई सुबह से फिर शाम हुई

    शाद अजीमबादी के साथ यदि सरकार और चाहने वालों अब भी इंसाफ नहीं किया तो उनका ये शेर नश्तर बन कर दिलों को जख्मी करता रहेगा-

    ढूंढोगे अगर मुल्कों मुल्कों मिलने को नहीं नायाब हैं हम

    जो याद न आए भू के फिर से हम नफसों वो ख्वाब हैं हम

      सरकार और चाहने वालों के स्तर से हर मांग हाशिये पर

    शाद अजीमाबादी की मजार पर पिछले 35 वर्षों से नवशक्ति निकेतन द्वारा जयंती और पुण्यतिथि पर यादों की महफिल सजायी जाती है। सचिव कमल नयन श्रीवास्तव, एहसान अली अशरफ एवं संयोजक रजी अहमद ने बताया कि सात जनवरी 2018 में महापौर सीता साहू ने शाद अजीमाबाद गली के नाम पर इस गली का नामांकरण किया लेकिन आज तक शिलापट्ट भी नहीं लगा। इस अजीम शायर की स्मृति में राज्य सरकार पुरस्कार की घोषणा कर सकी न डाक टिकट जारी किया। शाद एकेडमी स्थापित न हुआ न स्मारक बना। वार्ड 49 के हमाम पर स्थित शाद पार्क भी अवैध कब्जे में है। शाद समग्र भी नहीं छपा।

     इस बार इन्हें मिलेगा शाद सम्मान

    नव शक्ति निकेतन द्वारा हर वर्ष मशहूर शायर व कवि सम्मानित किए जाते हैं। सचिव कमल नयन श्रीवास्तव ने बताया कि शाद की पुण्यतिथि एवं जयंती पर इस बार शायर अकबर रजा जमशेद और मध्यप्रदेश के कवि सुभाष पाठक जिया को शाद अजीमाबादी सम्मान दिया जाएगा। शिक्षाविद प्रो. सुहैल अनवर एवं कवि डॉ. प्रणव पराग को साहित्य एवं समाज सेवा सम्मान से नवाजा जाएगा।

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