Bihar News: गरीबों के मसीहा हैं डॉ. गौरव मिश्रा, 200 से अधिक लोगों की फ्री में सर्जरी; अब पत्नी भी देती हैं साथ
डॉ. गौरव मिश्रा रोहतास के एक छोटे से गांव से निकलकर डॉक्टर बने। वे गरीब मरीजों के लिए मुफ्त चिकित्सा सेवा प्रदान करते हैं। हर रविवार को गांव में कैंप लगाकर मुफ्त दवा देते हैं और जरूरतमंदों की मुफ्त सर्जरी करते हैं। पटना में वे हर मंगलवार को मुफ्त ओपीडी सेवा देते हैं और महीने में तीन-चार रोगियों की निशुल्क सर्जरी करते हैं।

जागरण संवाददाता, पटना। गांव की कच्ची पगडंडियों, स्कूल में बोरा बिछा पढ़ाई साथ में खेती व पशुपालन में सहयोग। गांव-घर के लोग इसलिए इलाज कराने शहर नहीं जाते थे क्योंकि लंबी कतार, जांच आदि में कई दिन का कार्य बाधित होता था।
इन हालातों में रोहतास बिक्रमगंज के दुर्गाडीह गांव में रहने वाले एक बच्चे का सपना था बड़ा डॉक्टर बनना। आर्थिक संसाधन सफलता के आड़े नहीं आ सकते, यह साबित करते हुए उन्होंने चिकित्सकीय शिक्षण-प्रशिक्षण की हर परीक्षा विशेष योग्यता के साथ उत्तीर्ण की और पीड़ित मानवता सेवा में जुट गए।
सप्ताह में रविवार को वे किसी न किसी जिले के गांव में कैंप लगाते हैं और एक माह की दवा मरीज को मुफ्त देते हैं। जिन्हें सर्जरी की जरूरत होती है, उनका ऑपरेशन निशुल्क करते हैं। इसके अलावा पटना में हर मंगलवार को मुफ्त ओपीडी सेवा देने के साथ माह में तीन से चार रोगियों की निशुल्क सर्जरी करते हैं।
संवेदना का आलम यह है कि कार में यूरोफ्लोमेट्री जांच मशीन व जरूरी दवा-उपकरण साथ लेकर चलते हैं। जो मरीज जहां मिला, वहीं उसकी जांच, परामर्श के साथ दवा देते हैं।
गांव में डॉ. गौरव मिश्रा रोगियों की जांच परामर्श के साथ दवा वितरण करते हुए।
कहते हैं जब एक माह की दवा खाने के बाद गांवों के बुजुर्ग हंसते हुए कहते हैं कि डॉक्टर साहब आपने तो जादू कर दिया, वह क्षण मेरे जीवन के सबसे अनमोल क्षण होते हैं। छह वर्ष के करियर में एक लाख लोगों का मुफ्त परामर्श-दवा तो करीब 200 लोगों की पूर्ण निशुल्क सर्जरी कर चुके हैं।
अब तो पत्नी उर्वशी मिश्रा भी उनके रंग में रंगकर गरीब महिलाओं के मुफ्त उपचार में अपना सहयोग दे रही हैं।
आसान नहीं थी संघर्ष की राह
एक अति पिछड़े से गांव, जहां बुनियादी आधारभूत संरचना से लेकर तमाम संसाधनों का घोर अभाव था, उससे निकल इस मुकाम तक पहुंचने का सफर आसान नहीं था। स्वप्न साकार करने के पहले प्रयास में वेटेनरी में चयन हुआ।
पारिवारिक स्थिति को देखते हुए प्रवेश तो ले लिया लेकिन जिद व जोश बरकरार था। आखिर चौथे प्रयास में एमबीबीएस में आल इंडिया सातवी रैंक हासिल की। इसके बाद एमएस यानी मास्टर ऑफ सर्जरी की और उसमें भी गोल्ड मेडल हासिल किया।
पटना स्थित क्लीनिक में मंगलवार को गरीब मरीजों का निशुल्क उपचार करते हुए।
इसके बाद बारी थी सर्जरी की सबसे बड़ी डिग्री एमसीएच की, जिसमें देश के बहुत कम लोगों का चयन होता था। उसकी प्रवेश परीक्षा में पूरे देश में पहला स्थान हासिल किया। देश के हर प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थान में प्रशिक्षण का मौका था, लेकिन किडनी रोग से पीड़ित मां के आग्रह पर प्रदेश नहीं छोड़ा और आईजीआईएमएस से एमसीएच किया।
इतनी उपलब्धियां स्वत: ही उच्च पदों तक पहुंचा देती हैं, डॉ. गौरव के साथ भी ऐसा ही हुआ। पहले एम्स पटना में असिस्टेंट प्रोफेसर, फिर महावीर कैंसर संस्थान में दो वर्ष सेवा, इसके बाद ईएसआईसी मेडिकल कॉलेज बिहटा में सेवा दी लेकिन, कहीं पीड़ित मानवता की सेवा का वह अवसर नहीं मिला, जो चाहते थे।
आखिर में बीपीएससी में आवेदन किया और अब गया स्थित एएनएमसीएच में सेवा दे रहे हैं। साथ ही अपने उस मिशन को अंजाम दे रहे हैं, जिसमें अधिक उम्र में यूरो संबंधी रोगों काे नियति व मृत्यु को उपचार मानने वालों की सोच बदलनी थी।
सीजीएचएस व सरकारी अस्पताल की दर पर करते सर्जरी
यूरोलाजिस्ट ही मूत्र रोगों के उपचार के साथ किडनी, प्रोस्टेट, पथरी, पेशाब में रुकावट समेत तमाम तरह की सर्जरी करते हैं। सरकारी खर्च पर चलने वाले अस्पतालों तक में इनके उपचार में 20 से 25 हजार रुपये खर्च होते हैं, जबकि निजी अस्पतालों में 50 हजार से अधिक।
कैंप के बाद गांव से लौटने के क्रम में डॉ. गौरव को विदा करने आए ग्रामीण।
वहीं, डॉ. गौरव मिश्रा अपने अस्पताल में आज भी 20 से 25 हजार में रोगियों को ये सेवाएं दे रहे हैं। इसमें भी हर माह तीन से चार गरीब मरीजों से आधे-तिहाई या मुफ्त ऑपरेशन किया जाता है।
पैसे से नहीं मिल सकती सेवा वाली खुशी
डॉ. गौरव मिश्रा ने कहा कि गांवों में मैंने गरीब बुजुर्गों को टपकती पेशाब रोकने के लिए पॉलिथीन बांध कर घूमते देखा है। उसी समय तय कर लिया था कि इसे श्राप मानकर जीने वालों को इससे मुक्ति दिलाऊंगा।
डॉक्टर बनने के बाद सप्ताह के दो दिन गरीब मरीजों को देने का संकल्प लिया। आराध्य बजरंग बली की कृपा से पैसे का लोभ कभी नहीं रहा लेकिन अब किसी प्रकार की कमी भी नहीं है। जिनका निशुल्क इलाज होता है वही नहीं, जिनका दूसरी जगह से बेहतर ढंग से बहुत कम शुल्क पर उपचार होता है, जो सम्मान देते हैं उस खुशी की अनुभूति ही अलौकिक है।
जब कैंप कर लौटने को होता हूं तो दर्जनों लोग नेनुआ, कद्दू, दालें, हाथ का पिसा सत्तू और न जाने क्या-क्या तोहफे जबरन देते हैं। उनकी मुस्कान व आशीष मेरी सबसे बड़ी कमाई है।
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