India China Standoff: बिहार रेजीमेंट के थे शहीद कर्नल व जवान, शहादत का प्रेरणादायक इतिहास
India China Standoff चीन से झड़प में शहीद कर्नल बी संतोष बाबू व जेसीओ कुंदन कुमार झा बिहार रेजीमेंट के थे। इस रेजीमेंट का शौर्य व शहादत का इतिहास रहा है। खबर में जानें।
पटना, जेएनएन। चीन से जुड़ी भारत की लद्दाख सीमा पर सोमवार की रात गलवन घाटी के पास भारतीय सैनिक व चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प में बिहार रेजीमेंट 16 के सीओ कर्नल बी संतोष बाबू व जेसीओ कुंदन कुमार झा शहीद हो गए। शहीद संतोष गलवन घाटी पर अपने बटालियन के जवानों के साथ तैनात थे और चीन सैनिकों से वार्ता कर रहे थे। इसी दौरान हिंसक झड़प हो गई। बिहार रेजीमेंट के सैनिकों का शौर्य व शहादत का प्रेरणादायक इतिहास रहा है।
बिहार व झारखंड सब एरिया मुख्यालय के अनुसार शहीद कर्नल बी संतोष बाबू तेलंगाना के सूर्यापेट जिले के मूल निवासी हैं। उनका परिवार सूर्यापेट जिले में रहता है। वर्ष 2016 में प्रमोशन लेकर शहीद कर्नल बी संतोष 16 बिहार बटालियन के कमांडिंग अधिकारी के पद पर तैनात हुए थे। शहीद जेसीओ कुंदन कुमार झारखंड के साहिबगंज जिले के हाजीपुर प्रखंड पश्चिम पंचायत डिहारी गांव के मूल निवासी थे। छपरा के डिबरा गांव के मूल निवासी हवलदार सुनील राय की शहादत की भी खबर मिली, लेकिन बाद में यह बात गलत निकली।
1971 और कारगिल युद्ध में भी दिखाया जौहर
बिहार के सैनिकों का इतिहास प्रेरणादायक है। वर्तमान में बिहार रेजिमेंट अपनी 20 बटालियन, चार राष्ट्रीय राइफल एवं दो टोरिटोरियल आर्मी बटालियन के साथ देश की सेवा में लगा है। बिहार रेजीमेंट को अब तक तीन अशोक चक्र, दो महावीर चक्र, 13 कीॢत चक्र, 15 वीर चक्र और 46 शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया है। इसके अलावे रेजीमेंट को तीन युद्ध सम्मान एवं तीन थियेटर सम्मान भी मिला है।
भारत-पाक युद्ध में भी दिखाया था दमखम
बिहार रेजीमेंट के 10 वीं बटालियन को 1971 के लिए भारत-पाक युद्ध में तीन आदेश मिले जिसमें एक अखौड़ा पर कब्जा करना था। अखौड़ा अगरतला के पश्चिम में अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगभग 10 किमी दूर एक महत्वपूर्ण शहर और रेल स्थान है। पाकिस्तान की सेना के जवान टैंक व अन्य हथियार के साथ मौजूद थे। डेल्टा कंपनी मेजर केसी कटोच के नेतृत्व में दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब दिया गया। दुश्मनों के बंकर को नेस्तनाबूद करते हुए कब्जा किया। रेजीमेंट को युद्ध में वीरता के लिए अखौड़ा थियेटर सम्मान से सम्मानित किया गया।
1999 में भी दुश्मनों के छुड़ाए थे छक्के
वहीं 1999 में बिहार रेजीमेंट के जवानों ने आपरेशन विजय में विपरीत परिस्थिति में भी जम्मू काश्मीर के जुबार हिल व थारू पर पाकिस्तानी सैनिकों के छक्के छुड़ाते हुए कब्जा किया। इस साहसिक कामयाबी के लिए यूनिट को बैटल ऑनर बाटालिक एवं थियेटर ऑनर कारगिल से सम्मानित किया गया।
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान बिहार रेजीमेंट का गठन
बिहार रेजीमेंट आजादी से पहले ही अस्तित्व में आ चुकी थी। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान 15 सितंबर 1941 को प्रथम बिहार बटालियन का गठन हुआ। 19वीं हैदराबाद रेजीमेंट के अंतर्गत 11वीं प्रादेशिक बटालियन को नियमित करते हुए प्रथम बिहार बटालियन नाम दिया गया। बिहार रेजीमेंट केंद्र की स्थापना एक नवंबर 1945 को आगरा में लेफ्टीनेंट कर्नल आरसी म्यूलर ने की थी। रेजीमेंट केंद्र पहले आगरा से गया और बाद में 1949 में गया से दानापुर स्थानांतरित हुआ। वर्तमान में बिहार रेजीमेंट अपनी 20 बटालियन, चार राष्ट्रीय रायफल एवं दो प्रादेशिक आर्मी बटालियन के साथ देश की सेवा में लगातार अग्रसर है।
रेजीमेंट के खाते में सम्मानों की फेहरिश्त लंबी
बिहार रेजीमेंट के जवानों ने जरूरत पडऩे पर देश की आंतरिक सुरक्षा एवं आपदा राहत कार्यों में अग्रणी रहकर देश के नागरिकों की सेवा की है। बिहार रेजीमेंट की बहादुरी, वीरता एवं शौर्य को देखते हुए अब तक तीन अशोक चक्र, दो महावीर चक्र, दो परम विशिष्ट सेवा मेडल, 14 कीॢत चक्र, 15 वीर चक्र और 46 शौर्य चक्र समेत अन्य मेडल आदि से सम्मानित किया गया है। इसके अलावे रेजीमेंट को तीन युद्ध सम्मान एवं तीन थिएटर सम्मान से सम्मानित किया गया है।
1985 में बनी 16वीं बटालियन
15 जून की रात लद्दाख की गलवन घाटी में शहादत देने वाले वीर बिहार रेजीमेंट की 16वीं बटालियन के हैं। इस बटालियन का गठन 11 फरवरी 1985 को एसडी सलोखे के नेतृत्व में दानापुर में किया गया। इस बटालियन ने 1991-1993 में पूर्वी सेक्टर में ऑपरेशन राइनो में भाग लेकर सराहनीय प्रदर्शन किया। 2001 में इस बटालियन को गुजरात में आये भूकंप में सहायता के लिए लगाया गया। इस बटालियन को 2005 में तीन सेना मेडल मिले। लद्दाख में अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए चीनी सेना से हुई हिंसक झड़प में एक बार फिर इस बटालियन ने अपनी गौरवशाली परंपरा को बरकरार रखा।
देश का प्रतीक अशोक स्तंभ बिहार रेजीमेंट की देन
देश का राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ बिहार रेजीमेंट की ही देन है। बिहार रेजीमेंट ने सबसे पहले अशोक स्तंभ को अपने निशान के रूप में चुना था। रेजीमेंट की कैप पर आज भी ये निशान शोभता है। बाद में भारत सरकार ने अशोक स्तंभ को राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न बनाया।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।