Independence Day: आजादी के गुमनाम हीरो हैं बिहार के जंग बहादुर, अंग्रेजों के कान में गड़ते थे उनके भोजपुरी गीत
Independence Day 2022 भारत की आजादी की लड़ाई के कई हीरो गुमनाम रह गए हैं। इन्हीं में शामिल हैं 102 साल के जंग बहादुर सिंह। देशभक्ति का जज्बा जगाते उनके भोजपुरी गीत तब फिरंगी हुकूमत के कानों में गड़ते थे।

पटना, आनलाइन डेस्क। Indian Independence Day 2022: स्वतंत्रता के 75 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में भारत आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। इसके तहत हम देश की आजादी में योगदान देने वाले लोगों को याद कर रहे हैं। ऐसे ही आजादी के सिपाही हैं बिहार के सिवान के रहने वाले 102 साल के भोजपुरी लोक-गायक जंग बहादुर सिंह, जिन्होंने गुलामी से आजाद भारत में आज तक का दौर देखा है। गुलामी के दौर में अपने जोश भर देने वाले गीतों के माध्यम से उन्होंने युवाओं को देश के लिए सर्वस्व न्योछावर करने को प्रेरित किया। इसके लिए उन्हें कारागार की यातनाएं सहनी पड़ीं।
क्रांतिकारियों के बीच गाते थे भोजपुरी देशभक्ति-गीत
जब महात्मा गांधी का भारत छोड़ो आंदोलन चल रहा था, 22 साल के जंग बहादुर जगह-जगह क्रांतिकारियों के बीच जाकर भोजपुरी में देशभक्ति-गीत गाते थे। वे छुप-छुपकर आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा लेने लगे थे। युवा जंग बहादुर देशभक्तों में जोश जगाने के कारण अंग्रेजी हुकूमत की आंखों की किरकिरी बन गए थे। साल 1942 से 1947 तक आजादी के तराने गाने के लिए वे ब्रिटिश प्रताड़ना के शिकार हुए, जेल की यातनाएं भी सहीं। पर हार नहीं मानी।
अपने देशभक्ति व धार्मिक गीतों से बनाई पहचान
साल 1947 के 15 अगस्त को भारत आजाद हुआ। जंग बहादुर अब लोक-धुन पर देशभक्ति गीतों के लिए जाने गए। साठ के दशक में जंग बहादुर का सितारा बुलंदी पर था। वे भोजपुरी देशभक्ति गीतों के पर्याय बन चुके थे। इसके अलावा भैरवी, रामायण और महाभारत के पात्रों की गाथाएं गाने में भी जंग बहादुर ने पहचान बनाई।
कोसों दूर तक सुनी जाती थी उनकी बुलंद आवाज
आजीविका के लिए पश्चिम बंगाल के आसनसोल में सेनरेले साइकिल करखाने में नौकरी करने लगे। इस दौरान भोजपुरी की व्यास शैली में गायन कर झरिया, धनबाद, दुर्गापुर, संबलपुर, रांची आदि क्षेत्रों में पहचान बनाई। जंग बहादुर के गायन की विशेषता यह रही कि उनकी बुलंद आवाज बिना माइक के ही कोसों दूर तक सुनी जाती थी। आधी रात के बाद उनके सामने कोई टिकता नहीं था।
102 वर्ष की आयु में गुमनामी के अंधेरे में जीवन
करीब दो दशक तक अपने भोजपुरी गायन से बंगाल, बिहार, झारखंड, उत्तर-प्रदेश आदि राज्यों में बिहार का नाम रोशन करने-वाले जंगबहादुर सिंह प्रचार-प्रसार से कोसों दूर रहे। कालक्रम में भोजपुरिया समाज भूलता चला गया। आज 102 वर्ष की आयु में वे गुमनामी के अंधेरे में जीने को विवश हैं।
पहलवानी में मिली 'शेर-ए-बिहार' की उपाधि
जंग बहादुर सिंह केवल लोक गायक के साथ जवानी के दिनों में पहलवान भी थे। बड़े-बड़े नामी पहलवानों से उनकी कुश्तियां होती थीं। जंग बहादुर को पश्चिम बंगाल में नौकरी भी पहलवानी के दम पर ही मिली थी। करीब 22-23 वर्ष की उम्र में वे अपने छोटे भाई व मजदूर नेता रामदेव सिंह के पास झरिया, धनबाद आए थे। वहां कुश्ती के दंगल में बिहार का प्रतिनिधित्व करते हुए उन्होंने बंगाल के पहलवान को पटक दिया। फिर तो उन्हें 'शेर-ए-बिहार' की उपाधि मिली। इसके बाद वे दंगलों में कुश्ती लड़ने लगे।
ये हैं बिहार के सिवान के रहने वाले 102 साल के जंग बहादुर सिंह। गुलामी के दौर में अपने भोजपुरी लोकगीतों से युवाओं में जोश भरा। जेल की यातनाएं सहीं। स्वतंत्रता दिवस पर आजादी के इस गुमनाम हीरो को नमन। #IndependenceDay #75thIndependenceDay #PMNarendraModi #NarendraModi pic.twitter.com/EpN81NZK6t
— AMIT ALOK (@amitalokbihar) August 14, 2022
कुछ यूं पकड़ी थी गायक बनने की जिद
जंग बहादुर क्रांति के भोजपुरी गीत तो गाते थे, लेकिन लोक गायकी में रम जाने की वजह बना एक कार्यक्रम, जिसमें तब के तीन बड़े गायक मिलकर एक गायक को हरा रहे थे। उन्होंने बतौर दर्शक इसका विरोध किया और कालांतर में तीनों गायकों को गायिकी में हरा दिया। उसी कार्यक्रम के बाद जंग बहादुर ने गायक बनने की जिद पकड़ ली।
धुन के पक्के जंग बहादुर का मां सरस्वती ने भी साथ दिया। वे रामायण-महाभारत के पात्रों भीष्म, कर्ण, कुंती, द्रौपदी, सीता, भरत, राम व देश-भक्तों में चंद्र शेखर आजाद, भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, वीर अब्दुल हमीद, महात्मा गांधी आदि की चरित्र-गाथाएं गाकर भोजपुरिया जन-मानस में लोकप्रिय हो गए। तब उनकी लोकप्रियता ऐसी थी कि जिस कार्यक्रम में वे नहीं भी जाते थे, आयोजक भीड़ जुटाने के लिए पोस्टर-बैनर पर उनकी तस्वीर लगाते थे।
हादसों ने कम किया गायिकी से नाता
जंग बहादुर सिंह साल 1970 में तब टूट गए थे, जब उनके बेटे और बेटी की आकस्मिक मृत्यु हुई। धीरे-धीरे उनका मंचों पर जाना और गाना कम होने लगा। दुर्भाग्य ऐसा कि एक दिन पत्नी महेशा देवी खाना बनाते समय बुरी तरह जल गईं। अब जंग बहादुर राग-सुर के बदले परिवार को संभालने में लग गए। 1980 के आस-पास एक और बेटे की कैंसर से मौत हो गई। वर्तमान में दो जीवित दो बेटों में बड़ा मानसिक व शारीरिक रूप से दिव्यांग है। परिवार की जिम्मेदारी संभाल रहा छोटा बेटा राजू ने विदेश में रहता है।
खुशबू सिंह को उनकी पोती होने का गर्व
पोती खुशबू सिंह बताती हैं कि उम्र के 102 बसंत देख चुके जंग बहादुर सिंह ने धीेरे-धीरे मंचीय गायन छोड़ दिया है। अब वे गांव के मंदिर-शिवालों व मठिया में शिव-चर्चा व भजन गाते रहते हैं। खुशबू कहती हैं कि लोग उन्हें दादाजी के नाम से ही जानते हैं। उन्हें गर्व है कि वे जंगबहादुर सिंह की पोती हैं।
आजादी की लड़ाई के गुमनाम हीरो बिहार के जंग बहादुर सिंह के बारे में बता रहीं हैं पोती खुशबू सिंह। #IndependenceDay #NarendraModi pic.twitter.com/UZzRqJR3vD
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मिले पद्मश्री, कृतियाें को सहेजे सरकार
- 80 के दशक के प्रसिद्ध लोक-गायक मुन्ना सिंह व्यास व भरत शर्मा व्यास ने जंग बहादुर सिंह व्यास का जलवा देखा था। मुन्ना सिंह व्यास उस दौर को याद करते हुए कहते हैं कि बाबू जंग बहादुर सिंह का झारखंड-बंगाल-बिहार में नाम था। कहते हैं, ''ऐसी प्रतिभा को पद्मश्री से सम्मानित किया जाना चाहिए।”
- 90 के दशक में चर्चित हुए भोजपुरी लोक गायक भरत शर्मा व्यास भी जंगबहादुर सिंह कहते हैं कि वे कोलकाता से उनकी गायिकी सुनने आसनसोल, झरिया, धनबाद आया करते थे। कई बार उनके साथ बैठकी भी हुई। भैरवी गायन में तो उनका जवाब नहीं है। भोजपुरी भाषा की सेवा करने वाले इस महान गायक को सरकार सम्मानित करे।
- बिहार के छपरा में पैदा हुए भारतीय हाकी टीम के खिलाड़ी व पूर्व कोच हरेन्द्र सिंह ने बचपन में जंग बहादुर सिंह को अपने गांव में चैता गाते हुए सुना है। कहते हैं, ''मैं उन खुशनसीब लोगों में से हूं, जिन्होंने जंग बहादुर सिंह को लाइव सुना है। इनकी कृतियों को बिहार सरकार के कला-संस्कृति विभाग को सहेजना चाहिए।”
- भोजपुरी कवि और फिल्म समीक्षक मनोज भावुक उनके लिए पद्म श्री सम्मान की मांग करते हुए कहते हैं, “जंगबहादुर सिंह ने अपनी गायन-कला को व्यवसाय नहीं बनाया। मेहनताने के रूप में श्रोताओं-दर्शकों की तालियां व वाहवाही भर थीं। उन्हें उनके हिस्से का वाजिब हक व सम्मान तो मिलना ही चाहिए।''
इस उम्र में भी टाइट है पहलवानी वाला शरीर
हृदय रोग की बात छोड़ दें तो 102 साल की उम्र में भी जंग बहादुर सिंह स्वस्थ हैं। पहलवानी वाला शरीर आज भी टाइट है। मूंछों का ताव जवानी की याद दिलाता है। अपनी जिंदगी में संतानों की मौत और परिवार के दुखों के बावजूद वे मुस्कुराते रहते हैं। प्रेमचंद की कहानियों के नायक की तरह अपने गांव-जवार में किसी के भी दुख-सुख व सामाजिक आयोजन में लाठी लेकर खड़े रहते हैं जंग बहादुर। जीवन के अंतिम छोर पर खड़े आजादी के तराने गाने वाले अनसंग हीरो हैं जंग बहादुर सिंह।
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