Move to Jagran APP

प्रभुनाथ सिंह का राजनीतिक सफर: पहले भी लगा था MLA की हत्या का आरोप

आज राजद नेता और पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह को विधायक अशोक सिंह की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा मिली है। जानिए कैसा राजनीतिक कॅरियर रहा है दबंग नेता प्रभुनाथ सिंह का...

By Kajal KumariEdited By: Published: Tue, 23 May 2017 11:08 AM (IST)Updated: Tue, 23 May 2017 07:57 PM (IST)
प्रभुनाथ सिंह का राजनीतिक सफर: पहले भी लगा था MLA की हत्या का आरोप
प्रभुनाथ सिंह का राजनीतिक सफर: पहले भी लगा था MLA की हत्या का आरोप

सारण  [कमलाकर उपाध्याय]। अशोक सिंह हत्याकांड में उम्रकैद की सजा पाए पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह का राजनीतिक करियर 1985 से शुरू हुआ था। विधायक बनने से पहले वह मशरक के तत्कालीन विधायक रामदेव सिंह काका की हत्या के बाद चर्चा में आए थे। काका की हत्या का आरोप  उनपर भी लगा था। हालांकि बाद में कोर्ट से वे बरी हो गए थे, लेकिन उनके भाई दीना सिंह को सजा हुई थी।

loksabha election banner

पहली बार निर्दलीय जीते 

काका की हत्या के बाद 1980 में विधानसभा चुनाव हुआ था जिसमें काका के पुत्र डा.हरेंद्र किशोर सिंह चुने गए। इसके बाद 1985 में चुनाव हुआ जिसमें प्रभुनाथ सिंह निर्दलीय प्रत्याशी बने। प्रभुनाथ सिंह ने स्व. रामदेव सिंह उर्फ काका के पुत्र व कांग्रेस प्रत्याशी हरेंद्र किशोर सिंह को हराकर मशरक सीट पर कब्जा जमाया।

1990 में प्रभुनाथ सिंह जनता दल के टिकट पर दोबारा चुनाव जीत गए। 1995 के विधानसभा चुनाव में जनता दल का टिकट अशोक सिंह को मिल गया और प्रभुनाथ ङ्क्षसह बिहार पीपुल्स पार्टी (बीपीपा) से चुनाव लड़े। इसमें वह अशोक सिंह से चुनाव हार गए।

अशोक की हत्या में प्रभुनाथ के भाई भी थे आरोपी 

विधानसभा चुनाव हुए अभी 90 दिन भी नहीं हुए थे कि 3 जुलाई 1995 को शाम 7.20 बजे पटना के स्ट्रैंड रोड स्थित आवास में अशोक सिंह की बम मारकर हत्या कर दी गई। हत्या में प्रभुनाथ सिंह, उनके भाई दीनानाथ सिंह तथा मशरक के रितेश सिंह को नामजद अभियुक्त बनाया गया। अशोक सिंह की हत्या के बाद जब 1995 में उपचुनाव हुआ। इसमें अशोक सिंह के भाई तारकेश्वर सिंह चुनाव जीते। तब से प्रभुनाथ सिंह कभी विधानसभा चुनाव नहीं लड़े।  

महाराजगंज से बने सांसद 

1998 में जब लोकसभा का चुनाव हुआ तो प्रभुनाथ सिंह समता पार्टी के टिकट पर महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े। कांग्रेस के महाचंद्र प्रसाद सिंह को हराकर उन्होंने सीट पर कब्जा जमाया। इसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और राजनीति में बढ़ते गए।

1999 में जदयू के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़े और दोबारा महाराजगंज से सांसद बने। 2004 में जदयू के टिकट पर फिर सांसद चुने गए। नवंबर 2005 में नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बने तब प्रभुनाथ सिंह जदयू संसदीय दल के नेता चुने गए। इस दरम्यान लोकसभा में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर तीखे हमलों के कारण चर्चा में रहे।

2009 के लोकसभा चुनाव में राजद के उमाशंकर सिंह ने इन्हें हरा दिया। तब तक नीतीश कुमार से दूरियां बढऩे लगीं। लोकसभा चुनाव के बाद उन्होंने जदयू को छोड़ दिया। पूर्व केंद्रीय मंत्री दिग्विजय सिंह, अखिलेश सिंह और राजीव रंजन सिंह के साथ मिलकर उन्होंने पटना के गांधी मैदान में किसान महापंचायत की। 

2012 में महाराजगंज सांसद उमाशंकर सिंह का निधन हो गया। नीतीश से नाराज चल रहे प्रभुनाथ राजद में चले गए। उपचुनाव हुआ जिसमें राजद प्रत्याशी प्रभुनाथ सिंह ने  जदयू के प्रत्याशी पीके शाही को हराकर सीट पर कब्जा जमा लिया। लेकिन, 2014 में लोकसभा का चुनाव वह भाजपा प्रत्याशी जनार्दन सिंह सिग्रीवाल ने हार गए। 

प्रभुनाथ सिंह अपनी दबंग हैसियत के चलते ही छोटे भाई केदारनाथ सिंह को मशरक व बनियापुर से तीन बार विजयी बनाने में सफल रहे। छपरा विधानसभा सीट से 2014 में हुए उपचुनाव में वह पुत्र रणधीर कुमार सिंह को भी चुनाव जिताने में सफल रहे। हालांकि 2015 के विधानसभा चुनाव में रणधीर कुमार सिंह हार गया।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.