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चीनी आक्रमण से आहत हो राष्ट्रकवि ने लिखी थी 'परशुराम की प्रतीक्षा', पढ़िए दिनकर जयंती पर विशेष खबर

Ramdhari singh Dinkar Birth Anniversary किताब छपकर आने से पहले पटना विश्वविद्यालय के सीनेट हाल में छात्रों और शिक्षकों को दिनकर ने सुनाई थी प्रसिद्ध कविता । पढि़ए राष्‍ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जयंती पर साहित्‍यकारों की स्‍मृतियों पर आधारित यह विशेष रिपोर्ट ।

By Sumita JaiswalEdited By: Published: Tue, 22 Sep 2020 10:24 PM (IST)Updated: Wed, 23 Sep 2020 09:15 AM (IST)
चीनी आक्रमण से आहत हो राष्ट्रकवि ने लिखी थी 'परशुराम की प्रतीक्षा', पढ़िए दिनकर जयंती पर विशेष खबर
पटना में 22 सितंबर को राष्‍ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जयंती की पूर्व संघ्‍या पर आयोजित एक कार्यक्रम ।

पटना, प्रभात रंजन। Ramdhari singh Dinkar Birth Anniversary: राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर को अपने देश से अटूट प्रेम था। राष्ट्रकवि की रचनाओं में यह साफ झलकता था। बिहार विधान परिषद के सदस्य और पटना विश्वविद्यालय में ङ्क्षहदी के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. प्रो. रामवचन राय बताते हैं कि देश पर चीनी आक्रमण से आहत होकर दिनकर ने सन् 1962 में 'परशुराम की प्रतीक्षा' लिखी थी। राष्ट्रकवि ने पटना विवि के सीनेट हॉल में 'परशुराम की प्रतीक्षा' का काव्य पाठ किया। वीर रस की कविता को सुनकर छात्रों और शिक्षकों ने खूब तालियां बजाई थीं। तब यह किताब छपकर नहीं आई थी।

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पटना रजिस्ट्री ऑफिस में बने सब रजिस्ट्रार :

राष्ट्रकवि के पोते अरविंद बताते हैं कि मैट्रिक की पढ़ाई पूरी करने के बाद दिनकर गांव से पटना आ गए थे। 1932 में उन्होंने पटना विवि से इतिहास में ऑनर्स की उपाधि प्राप्त की। 1934 में पटना निबंधन कार्यालय में सब रजिस्ट्रार के पद से उन्होंने नौकरी की शुरुआत की थी।

अंग्रेजों ने चार वर्ष में 22 बार किया तबादला :

कहा जाता है कि पटना के निबंधन कार्यालय में वह पहले भारतीय रजिस्ट्रार थे। इसी नौकरी के दौरान उन्होंने हुंकार, रसवंती आदि रचनाएं लिखीं। अंग्रेजी शासन के दौरान नौकरी करते हुए उन्हें चार वर्ष में 22 बार तबादले का सामना करना पड़ा। इससे तंग आकर 1945 में उन्होंने नौकरी छोडऩे का फैसला किया।

नेहरू और जेपी से रहा लगाव : जवाहर लाल नेहरू को दिनकर की वीर रस की कविताएं बहुत पसंद थीं। नेहरू की प्रेरणा से वे राजनीति में आए। 1952 में वे राज्यसभा सदस्य बने। 1964 तक तीन बार लगातार इस सदन के सदस्य रहे। उनका जेपी से भी गहरा संबंध रहा। जेपी के हजारीबाग जेल से छूटने के बाद उन्होंने 1942 में गांधी मैदान में कविता पाठ किया था।

रेणु और दिनकर के बीच था अटूट प्रेम :

फणीश्वर नाथ रेणु और दिनकर में काफी स्नेह था। रामवचन राय बताते हैं कि रेणु और दिनकर एक-दूसरे के प्राण थे। जब रेणु दिनकर के घर जाते तो उनके लिए जलेबी लेकर जाते थे, क्योंकि दिनकर को जलेबी खूब पसंद थी। वही दिनकर जब रेणु के घर जाते तो उनके लिए रसगुल्ला लेकर जाते थे।


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