Human Rights Day 2022: गरिमापूर्ण जीवन की गारंटी है मानवाधिकार, जन्म के साथ ही मिल जाता है हक
मानवाधिकार आखिर क्या हैं? हमें कैसे मिलते हैं? इनकी रक्षा क्यों जरूरी है? ऐसे सवालों के जवाब के लिए दैनिक जागरण ने बिहार के मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेनि) विनोद कुमार सिन्हा तथा आयोग सदस्य (न्यायिक) उज्जवल कुमार दुबे जिला एवं सत्र न्यायाधीश (सेनि.) से विशेष बातचीत की।
जेएनएन, पटना। मानवाधिकार के व्यापक अर्थ हैं। इसकी छतरी के नीचे गरिमापूर्ण जीवन की तमाम जरूरतें आ जाती हैं। इसका हनन हो तो कोई भी बिहार मानवाधिकार आयोग (बीएचआरसी) का दरवाजा खटखटा सकता है। यहां शिकायत करने के लिए न तो कोई शुल्क लगता है, न ही वकील की जरूरत होती है। मानवाधिकार दिवस के अवसर पर बिहार राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) विनोद कुमार सिन्हा तथा आयोग के सदस्य (न्यायिक) उज्जवल कुमार दुबे, ज़िला एवं सत्र न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) से बातचीत की दैनिक जागरण के वरीय मुख्य उपसंपादक अमित आलोक ने। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश...
सबसे पहले तो यह बताएं कि कैसे मामले मानवाधिकार हनन की श्रेणी में आते हैं?
मोटे तौर पर पुलिस या अन्य अधिकारियों या लोकसेवकों द्वारा उत्पीड़न, अभिरक्षा में यातना या मौत, मुठभेड़ में मौत, रिमांड होम व जेलों की स्थिति, दहेज मौत या संबंधित मामले, महिला उत्पीड़न, दुष्कर्म, हत्या, अत्याचार, बाल व बंधुआ मजदूरी, श्रमिकों की दशा, बाल विवाह, गरीबी उन्मूलन व सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम, चिकित्सकीय लापरवाही, वेतन व पेंशन, स्वच्छता व पर्यावरण आदि के मामले आते हैं। मानवाधिकार का क्षेत्र बहुत बड़ा है।
हमारे कानून मानवाधिकारों की गारंटी देते हैं, लेकिन केवल कानून से क्या होगा?
सही है, जब तक व्यवस्था जिम्मदार नहीं बने, केवल कानून व आयोग मानवाधिकारों की रक्षा नहीं कर सकते। सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालय इसकी निगरानी करते रहते हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने समय-समय पर मानवाधिकारों की व्याख्या की है। जैसे, महिलाओं की गिरफ्तारी व पूछताछ के समय महिला पुलिस का होना जरूरी है। संगीन मामलों को छोड़कर आरोपित को हथकड़ी लगाने के लिए दंडाधिकारी की अनुमति अनिवार्य है। पुलिस को अभिरक्षा में हुई मौतों की सूचना मानवाधिकार आयोग को देनी होती है। मानवाधिकार आयोग लोगों की शिकायतों का संज्ञान लेता है। आयोग संचार माध्यमों से मानवाधिकार हनन की जानकारी मिलने पर स्वत: संज्ञान भी लेता है। जैसे, हाल ही में कुछ जिलो में पुलिस अभिरक्षा में हुई मौतों की दैनिक जागरण में प्रकाशित खबरों का आयोग ने स्वत: संज्ञान लिया और कई मामलो में पीड़ित आश्रितों को क्षतिपूर्ति प्रदान की है।
बिहार के कुछ चर्चित मामले, जिनमें आयोग ने कार्रवाई की है?
मुजफ्फरपुर में एक महिला की दोनों किडनी निकालने का मामला है। मुजफ्फरपुर में ही कुछ दिनों पहले आंख के आपरेशन के दौरान लापरवाही से कई लोग अंधे हो गए थे। बालिका गृहों में यौन शोषण के मामले भी हैं। इन मामलों का हमने संज्ञान लिया है। बिहार में गर्भाशय निकाल लिए जाने के मामले में भी हमने मुआवजा दिलाया। प्रदूषण बड़ी समस्या् है। हमने ध्वनि प्रदूषण का स्वत: संज्ञान लिया है। कोरोना काल में मानवाधिकार हनन के मामलों का हमने वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से निष्पादन किया।
जो मामले मीडिया में आकर चर्चित हो गए, उन्हें छोड़ दें। समाज के हाशिए के वर्गों के लिए किए गए काम?
गरिमापूर्ण जीवन के लिए जरूरतमंद लोगों को सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिले, यह जरूरी है। हम यह सुनिश्चित कराते हैं। आयोग ने समाज के हाशिए पर रहने वाले भिखारियों, कुष्ठ रोगियों व यौन कर्मियों के कल्याण के लिए कई काम किए हैं। जैसे, मोतिहारी के कुष्ठ रोगियों के शिविर में नल-जल की सुविधा दिलाई गई है। दूसरे राज्यों से मुक्त कराकर लाए गए बाल श्रमिकों के पुनर्वास के साथ उन्हें शिक्षा देने का भी प्राविधान है। हम इसकी निगरानी कर रहे हैं।
पुलिस ज्यादती व मनमानी से मानवाधिकार हनन के मामलों में कार्रवाई?
पटना सचिवालय की एक महिला कर्मी से पुलिस दुर्व्यवहार के मामले में हमने 25 हजार का मुआवजा दिलाया था। आयोग ने पटना डाकबंगला चौराहा पर हुए पुलिस लाठीचार्ज का स्वत: संज्ञान लिया है। जेल, हाजत हो या रिमांड होम, अभिरक्षा में मौत को हम गंभीरता से लेते रहे हैं। वहां व्यक्ति के जीवन की रक्षा संबंधित प्रशासन या एजेंसी का दायित्व है। एक शेल्टर होम में एक बच्चे ने एसिड पी ली थी तो एक जगह एक बच्चे की पिटाई से मौत हो गई। ऐसे अनेक मामलों में हमने जांचोपरांत मानवाधिकार हनन मानते हुए पीडि़त पक्षों को मुआवजा दिलाया है। अपहरण के मामलों में सामान्यत: पुलिस चार्जशीट के बाद अपहृत की बरामदगी पर ध्यान नहीं देती। आयोग ने साल 2010 से अब तक के ऐसे सभी मामलों की जानकारी मांगी है। एक जगह पुलिस ने एक बच्चे को चोरी के संदेह में तीन दिन तक थाने में रखा। इस मामले में भी हमने कार्रवाई की।
मानवाधिकार हनन के मामलों में एक पक्ष सरकार का रहना जरूरी है। ऐसे में आम आदमी पुलिस-प्रशासन या सरकार के खिलाफ शिकायत करे और सरकारी एजेंसियां तंग करें, तब?
पुलिस-प्रशासन या कोई भी सरकारी एजेंसी तंग करती है तो यह मानवाधिकार हनन का मामला बन जाएगा। सरकार के तमाम अंग आयोग में आए मामलों का संज्ञान लेकर उनका निष्पादन करते हैं। फिर भी अगर कोई परेशान किया जाता है तो हमें सूचना दे, ऐसे मामलों में हम संबंधित विभाग से प्रतिवेदन मांग कर निबटारा करते हैं।
बिहार में मानवाधिकार आयोग कब से? आयोग का ढ़ांचा व लंबित मामलों की स्थिति?
भारत में व्यक्तियों के मानवाधिकार संरक्षण के लिए मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के तहत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन किया गया। उक्त अधिनियम के अनुपालन में बिहार मानवाधिकार आयोग की स्थापना अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के अवसर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 10 दिसंबर, 2008 को की। इसके पहले अध्यक्ष राजस्थान उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री एस एन झा थे। आयोग में अध्यक्ष के अलावे वर्तमान में दो सदस्य सेवानिवृत्त जिला व सत्र न्यायाधीश उज्ज्वल कुमार दुबे तथा सेवानिवृत्त आइएएस अधिकारी शशि शेखर शर्मा हैं। हमारी तीन बेंच मामलों की अलग अलग सुनवाई करती है। विशेष मामलो की सुनवाई दो या तीनों सदस्यों की बेंच करती है। जहां तक लंबित मामलों की बात है, आयोग में निष्पादन की दर दायर हो रहे मामलों से अधिक है। साल 2021 में 3898 मामले लंबित थे, जो इस साल 10 अक्टूबर तक घटकर 3394 रह गए हैं। सामान्यत: छह महीने में शिकायत का निबटारा कर दिया जाता है। आयोग के गठन से वर्ष 2021 तक कुल 77903 मामलों में से 74005 मामलो का निष्पादन हो चुका है।
आम आदमी कैसे करे शिकायत?
कोई भी पीड़ित हाथों हाथ या निबंधित डाक से बिहार राज्य मानवाधिकार आयोग के 9, बेली रोड, पटना- 800015 के पते पर शिकायत दे या भेज सकता है। इसके अतिरिक्त हमारे ई-मेल sec-bhrc@nic.in या फ़ैक्स नंबर 0612-2232280 पर भी शिकायत भेज सकते हैं साथ हीं वेबसाइट (hrcnet.nic.in/HRCNet/Public/case status.aspx) पर online परिवाद/ शिकायत दर्ज की जा सकती है। इस संबंध में विस्तृत जानकारी आयोग की वेबसाइट bhrc.bihar.gov.in पर उपलब्ध है। शिकायत को लेकर सारे अपडेट आनलाइन रहते हैं तथा एसएमएस से भी जानकारी दी जाती है। अंतिम आदेश की सूचना परिवादी को डाक से दे दी जाती है।