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    Bihar Election: जीत-हार का उतार-चढ़ाव देख आगे बढ़ रही वाम की राजनीति, परंपरागत सीटों पर करेगी दावेदारी

    Updated: Tue, 23 Sep 2025 03:14 AM (IST)

    पटना जिले में वाम दलों की राजनीति 1957 में शुरू हुई जब भाकपा ने मनेर सीट जीती। 1967 में मसौढ़ी सीट जीती लेकिन 1969 में हार गई। 1972 में दो सीटें जीतीं। 1980 में रामनाथ यादव बिक्रम से जीते। 2005 में भाकपा माले के नंद कुमार नंदा ने पालीगंज से जीत हासिल की। 2020 में भाकपा माले ने दो सीटें जीतीं। माकपा को कभी कोई सफलता नहीं मिली।

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    प्रस्तुति के लिए इस्तेमाल की गई तस्वीर। (जागरण)

    विद्या सागर, पटना। पटना जिले में वाम दलों की राजनीति की शुरुआत वर्ष 1957 में हुई। वाम दलों में उस समय भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी(भाकपा) ही अस्तित्व में थी।

    राज्य में दूसरी बार हो रहे विधानसभा के चुनाव में पटना जिले में पार्टी दो सीटों पर नौबतपुर व मनेर से चुनाव मैदान में उतरी।

    मनेर से पार्टी को सफलता भी मिली। मनेर से श्रीभगवान सिंह पहली बार विजयी हुए। नौबतपुर से पार्टी के उम्मीदवार भुनेश्वर शर्मा दूसरे स्थन पर रहे। इसके बाद के चुनावी आंकड़े उतार-चढ़ाव की कहानी कहते हैं।

    पटना जिले में भाकपा के खाते में वर्ष 1957 में एक सीट मिली। वहीं, 1962 में एक भी सीट पार्टी नहीं जीत सकी। 1967 में एक बार फिर खाता खुला और मसौढ़ी सीट से भुनेश्वर शर्मा ने कांग्रेस केडी शर्मा पर जीत दर्ज की।

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    वर्ष 1969 में हुए चुनाव में मसौढ़ी सीट भाकपा के हाथ से निकल गई, लेकिन पटना सेंट्रल सीट पर पार्टी के नेता एके सेन ने जीत दर्ज की। 1972 में हुए चुनाव में दो सीटों पर जीत मिली।

    सुनील मुखर्जी पहुंचे विधानसभा

    पटना वेस्ट से पार्टी के दिग्गज नेता सुनील मुखर्जी विधानसभा पहुंचे। वहीं, मसौढ़ी से भुनेश्वर शर्मा ने अपनी सीट वापस ली। वर्ष 1977 के चुनाव में पार्टी को सफलता नहीं मिली। 1980 में भाकपा तीन सीटों पर चुनाव लड़ी।

    मोकामा से शिवशंकर सिंह, फुलवारी से दशरथ पासवान व बिक्रम से रामनाथ यादव। बिक्रम विधानसभा से रामनाथ यादव विजयी हुए। 1985 में भी बिक्रम विधानसभा से रामनाथ यादव ही चुनाव जीते।

    वर्ष 1990 में भाकपा के साथ ही वाम दलों का आईपीएफ के रूप में कुनबा बढ़ा। आईपीएफ पहली बार चुनाव मैदान में उतरी। पटना जिले में तीन सीटों पर मसौढ़ी, बिक्रम व फुलवारीशरीफ विधानसभा में चुनाव लड़ी।

    मसौढ़ी से आईपीएफ का खाता खुला, योगेश्वर गोप विधायक बने। बिक्रम सीट पर भाकपा का कब्जा बरकरार रहा, रामनाथ यादव फिर से चुने गए।

    1995 के चुनाव में भी बिक्रम विधानसभा से रामनाथ यादव चुनकर आए। वर्ष 2000 में वाम दलों को सफलता नहीं मिली। वर्ष 2005 के चुनाव में भाकपा माले के नंद कुमार नंदा ने पालीगंज विधानसभा से जीत दर्ज की। 2010 और 2015 के विधानसभा चुनाव वामदलों के लिए सूखा रखा।

    दोनों चुनाव में एक भी सीट वाम दल जीतने में सफल नहीं रहे। 2020 में महागठबंधन में राजद का साथ मिलने के बाद पटना में भाकपा माले की अच्छी वापसी हुई। पालीगंज, फुलवारीशरीफ व दीघा विधानसभा से पार्टी चुनाव मैदान में उतरी।

    पालीगंज व फुलवारीशरीफ जीत मिली। 30 वर्ष बाद जिले में वाम दल को दो सीटें मिली। 2025 में रिकॉर्ड को बरकरार रखने के लिए अपनी परंपरागत सीटों पर भी दावेदारी रखी जा रही है।

    माकपा को पटना में नहीं मिली सफलता 

    राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त वाम दलों में माकपा को पटना जिले में किसी भी चुनाव में सफलता नहीं मिली। माकपा पहली बार 1969 में पटना ईस्ट से चुनाव लड़ी। 1985 में पटना वेस्ट से और 2010 व 2015 में कुम्हरार से माकपा के प्रत्याशी मैदान में उतरे, लेकिन सफलता नहीं मिली।