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    हाई कोर्ट शताब्दी समारोह विशेष- गौरवशाली रहा है बिहार हाई कोर्ट का इतिहास

    By pradeep Kumar TiwariEdited By:
    Updated: Sat, 18 Apr 2015 10:53 AM (IST)

    हाई कोर्ट की स्थापना का एलान 1916 के मार्च में पटना हाईकोर्ट कार्य-रूप में अस्तित्व में आया। न्यायिक कार्यवाही के पहले दिन सभी न्यायाधीश फूल कोर्ट ड्रेस में पधारे थे।

    पटना। हाई कोर्ट की स्थापना का एलान 1916 के मार्च में पटना हाईकोर्ट कार्य-रूप में अस्तित्व में आया। न्यायिक कार्यवाही के पहले दिन सभी न्यायाधीश फूल कोर्ट ड्रेस में पधारे थे। लाल गाउन, काला पाजामा, विंग, सिल्क की काली जुराब और चमड़े का जूता धारण किए जजों के चेहरे पर विद्वता का आभामंडल चमक रहा था। दिन के 10:35 बजे मुख्य न्यायाधीश के न्यायालय में सभी जजों ने अपना स्थान ग्रहण किया। लाल गद्दीदार कुर्सियों में बाहें नहीं थीं। कोर्ट के रजिस्ट्रार, प्रमंडलीय आयुक्त, उत्पाद आयुक्त और कुछ स्थानीय उच्चाधिकारियों ने जजों के पीछे वाली कुर्सी पर स्थान ग्रहण किया। इन सभी जजों का स्वागत वकीलों की ओर से मौलाना मजरुल हक (बैरिस्टर एट लॉ) ने किया। फिर मुख्य न्यायाधीश सर एडवर्ड मेयर्ड डेस चेम्स चेमीनयर ने बिहार एवं उड़ीसा प्रांत के लिए स्वतंत्र पटना हाईकोर्ट की स्थापना का एलान किया।

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    हाई कोर्ट : जजों की संख्या और हाई कोर्ट का एलान

    -07 जजों से शुरू हुई थी न्यायिक कार्यवाही

    -43 न्यायाधीशों की दरकार है मौजूदा समय में

    भारत के तत्कालीन वायसराय व गवर्नर जनरल चाल्र्स हार्डिंग ने एक दिसंबर 1913 को पटना हाईकोर्ट की नींव रखी थी, लेकिन यहां विधिवत कामकाज 1916 में शुरू हुआ। एक मुख्य न्यायाधीश एवं छह जजों के साथ कामकाज शुरू किया गया।

    1916 में सर एडवर्ड मेयर्ड चेम्स पटना हाईकोर्ट के पहले मुख्य न्यायाधीश बनाए गए। उनकी टीम में जस्टिस फ्रांसिस रेजिनाल्ड रॉ, जस्टिस सईद सैफर्रुद्दीन, जस्टिस एडवर्ड मैनर देस चेम्स चैमर, जस्टिस एडमंड पैली चैपमैन, जस्टिस बसंत कुमार मल्लिक एवं जस्टिस सेसिल अक्टिसन शामिल थे।

    1947 में यहां मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त जजों की संख्या बढ़ाकर 9 कर दी गई थी। बढ़ाए गए तीन जज अपर न्यायाधीश थे।

    1937 में उड़ीसा को अलग प्रांत का दर्जा मिल गया, लेकिन 26 जुलाई 1948 तक उड़ीसा बेंच को पटना हाईकोर्ट के ही क्षेत्राधिकार में रखा गया। उसी अवधि में उड़ीसा हाईकोर्ट को अलग मान्यता दे दी गई।

    1947 में यहां जजों की संख्या 12 हो गई। 1950 के फरवरी में तीन अपर न्यायाधीश स्थायी न्यायाधीश बना दिए गए। 1952 में मुख्य न्यायाधीश के अलावा 15 जज थे। उसके बाद जरूरत के हिसाब से न्यायाधीशों की संख्या बढ़ती रही।

    1965 आते-आते एक मुख्य न्यायाधीश और 14 स्थायी जज हो गए। 15 नवंबर, 2000 को बिहार से विभाजित होकर झारखंड अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आया। तब पटना हाईकोर्ट के 13 न्यायाधीश झारखंड हाई कोर्ट के जज हो गए।

    2015 के अप्रैल में (हाईकोर्ट के शताब्दी समारोह तक) मुख्य न्यायाधीश सहित 33 न्यायाधीश कार्यरत हैं। पटना हाईकोर्ट की क्षमता के अनुसार न्यायाधीशों की संख्या 43 होनी चाहिए।

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