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    Patna High Court: पटना हाईकोर्ट का दुष्कर्म केस में बड़ा फैसला, किशोर होने के झूठे दावे पर लगाया 10 हजार का हर्जाना

    By Jagran NewsEdited By: Radha Krishna
    Updated: Tue, 15 Jul 2025 05:31 PM (IST)

    किशोर होने का झूठा दावा कर दायर याचिका को सख्ती से खारिज कर दिया है और ₹10000 का हर्जाना लगाया है। न्यायाधीश राजीव रंजन प्रसाद और न्यायाधीश अशोक कुमार पांडेय की खंडपीठ ने यह आदेश अपील संख्या क्रिमिनल अपील संख्या 1161 of 2018 में पारित किया।इसके समर्थन में उसने राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान द्वारा जारी प्रमाणपत्र और आधार कार्ड प्रस्तुत किया।

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    पटना हाई कोर्ट ने किशोर होने के झूठे दावे पर लगाया 10 हज़ार का हर्जाना सांकेतिक तस्वीर

    विधि संवाददाता,पटना। पटना हाई कोर्ट ने दुष्कर्म के एक मामले में दोषसिद्ध अपीलकर्ता की ओर से किशोर होने का झूठा दावा कर दायर याचिका को सख्ती से खारिज कर दिया है और ₹10,000 का हर्जाना लगाया है।

    न्यायाधीश राजीव रंजन प्रसाद और न्यायाधीश अशोक कुमार पांडेय की खंडपीठ ने यह आदेश अपील संख्या क्रिमिनल अपील संख्या 1161 of 2018 में पारित किया।

    अपीलकर्ता राजन कुमार को निचली अदालत ने 20 जुलाई 2018 को पॉक्सो अधिनियम व धारा 376 आईपीसी के तहत दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी।

    अपीलकर्ता ने यह दावा किया था कि वह घटना के समय मात्र 13 वर्ष का था और उसे किशोर न्याय अधिनियम, 2000 का लाभ मिलना चाहिए। इसके समर्थन में उसने राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान द्वारा जारी प्रमाणपत्र और आधार कार्ड प्रस्तुत किया।

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    हालांकि, अदालत ने पाया कि निचली अदालत ने पहले ही वर्ष 2018 में एक विस्तृत आदेश के जरिए अपीलकर्ता को वयस्क घोषित कर दिया था।

    इसके बावजूद, अपील में उसने झूठे तथ्य और गलत हलफनामा देकर किशोर होने का मुद्दा दोबारा उठाया, जिससे कोर्ट को गुमराह करने का प्रयास किया गया।

    कोर्ट ने याचिका को निराधार और उद्देश्यहीन करार देते हुए ₹10,000 पटना हाई कोर्ट विधिक सेवा समिति में आठ सप्ताह के भीतर जमा कराने का आदेश दिया।

    साथ ही कोर्ट ने अपीलकर्ता के वकील की भूमिका पर भी प्रश्नचिह्न उठाते हुए कहा कि या तो उन्होंने रिकॉर्ड की ठीक से जांच नहीं की, या उन्होंने जानबूझकर तथ्यों को छुपाया।

    हालांकि, अधिवक्ता की ओर से बिना शर्त माफी मांगने और भविष्य में सतर्कता बरतने के आश्वासन के बाद कोर्ट ने फिलहाल मामला बिहार राज्य बार काउंसिल को भेजने से परहेज किया।

    कोर्ट ने इस घटना से सबक लेते हुए एनआईओएस को भी निर्देश दिया कि वह कारावास के दौरान बनाए गए आधार कार्ड के आधार पर जन्मतिथि मानने की अपनी नीति की समीक्षा करे।

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