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    यहां मुस्लिम कारीगरों की बनाई बांसुरी चढ़ा कर होती है आरती, दिलों को जोड़ती गोपालगंज के इस मंदिर की पूजा परंपरा

    By Amit AlokEdited By:
    Updated: Fri, 21 Aug 2020 10:15 PM (IST)

    बिहार के गोपालगंज में स्थित गोपाल मंदिर में पूजा के समय एक मुसलमान की बांसुरी की धुन गूंजती है। भगवान श्रीकृष्‍ण को मुसलमानाें की बनाई बांसुरी चढ़ाई ज ...और पढ़ें

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    यहां मुस्लिम कारीगरों की बनाई बांसुरी चढ़ा कर होती है आरती, दिलों को जोड़ती गोपालगंज के इस मंदिर की पूजा परंपरा

    गोपालगंज, जेएनएन। कोरोना महामारी को लेकर अभी इस मंदिर का कपाट आम लोगों के लिए बंद है, लेकिन इस  मंदिर में दिलों को जोड़े वाली दशकोंं से चली आ रही पूजा परंपरा का पालन प्रतिदिन किया जाता है। सुबह व संध्या पूजा के समय इस मंदिर में सगीर रहमत बांसुरी बजाते हैं। इनकी बांसुरी की धुन पर हथुआ में स्थित ऐतिहासिक गोपाल मंदिर में कृष्ण लला की पूजा होती है। अल्लाह ईश्वर तेरे नाम, सबको सनमत दे भगवान..., भजन के भाव इस मंदिर में झलकता है। इस मंदिर में पिछले तीन सौ साल से प्रात: और सांध्य पूजा के समय मुस्लिम कारीगरों की बनाई हुई बांसुरी चढ़ाने के बाद आरती शुरू करने की परंपरा चली आ रही है। पूजा के समय मुस्लिम परिवार के बांसुरी वादक की धुन पर भजन कीर्तन भी होता है।

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    तीन सौ साल पूर्व गोपाल मंदिर की स्थापना

    हथुआ राज परिवार ने तीन सौ साल पूर्व हथुआ में गोपाल मंदिर की स्थापना की थी। तब उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ से बांसुरी बनाने वाले मुस्लिम परिवार के कारीगरों को हथुआ के मीरशिकारी टोला में बसाया गया। उसी समय प्रात: और सांध्य पूजा के समय मुस्लिम परिवार द्वारा बनाई गई बांसुरी को भगवान कृष्ण को चढ़ने की परंपरा शुरू की गई। तब से आज तक यह परंपरा जारी है। आज भी ऐतिहासिक गोपाल मंदिर में कृष्ण लला के सामने प्रतिदिन नई बांसुरी चढ़ाकर प्रातः तथा संध्या आरती की जाती है। आरती के बाद उस बांसुरी को मंदिर के पुजारी मंदिर में अपने पास रख लेते हैं। कृष्ण लला को चढ़ाई गई यह बांसुरी हथुआ राज में आने वाले अतिथियों के विशेष सत्कार के दौरान उन्हें उपहार स्वरूप दी जाती है।

    कन्याकुमारी से कश्मीर तक हथुआ की बांसुरी की मांग

    हथुआ में बनाई गई आकर्षण बांसुरी की मांगे कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक है। साल 2001 में जिला प्रशासन ने कार्यशाला लगाकर बांसुरी बनाने वाले कारीगरों को मिथिला पेंटिंग का प्रशिक्षण दिलाया। तब से ये कारीगर विशेष मांग पर बांसुरी पर मिथिला पेंटिंग बनाते हैं। अब यहां दो सौ मुस्लिम परिवार बांसुरी बनाते हैं। इसके लिए आसाम के सिलचर जिले से नाची बांस मंगाया जाता है। इसके अलावा नरकट तथा सकन्डे से भी बांसुरी बनाई जाती है। बांसुरी के थोक व्यवसायी शहाबुद्दीन अंसारी बताते हैं कि बांसुरी निर्माण  एक गजब की कारीगरी है। स्वर लहरिया निकालने के लिए श्वास नली के अलावा छह छिद्र बनाए जाते हैं। जिसका दूरी और माप प्रमाणित होता है।