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    Health: क्‍या आप अपने मन से खाते हैं सर्दी-बुखार की दवा? पटना में IGIMS के विशेषज्ञों ने दी चेतावनी

    By Nalini Ranjan Edited By: Vyas Chandra
    Updated: Wed, 26 Nov 2025 08:49 PM (IST)

    पटना के आईजीआईएमएस के विशेषज्ञों ने बिना डॉक्टर की सलाह के सर्दी-बुखार की दवा खाने के खिलाफ चेतावनी दी है। डॉक्टरों का कहना है कि खुद से दवा लेने से दवा का असर कम हो सकता है और शरीर में प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो सकती है। एंटीबायोटिक दवाओं का दुरुपयोग भी एक गंभीर समस्या है। सही इलाज के लिए डॉक्टर से सलाह लेना जरूरी है।

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    कार्यक्रम का शुभारंभ करते डीन डाॅ. ओम कुमार, चिकित्सा अधीक्षक डाॅ. मनीष मंडल, विभागाध्यक्ष डाॅ. नम्रता कुमार, डाॅ. शैलेश कुमार व अन्य। सौ. संस्थान

    जागरण संवाददाता, पटना। बिहार में तेजी से बढ़ रहे एंटी माइक्रोबियल रेजिस्टेंस (एएमआर) की चुनौती को देखते हुए एंटी-माइक्रोबियल रेजिस्टेंट कंटेनमेंट कार्यक्रम का आयोजन इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंस (IGIMS) में किया गया।

    यह कार्यक्रम भारत सरकार के एनसीडीसी के अधीन संचालित राष्ट्रीय कार्यक्रम के तहत माइक्रोबायोलाजी विभाग की ओर से आयोजित हुआ।

    कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य एंटीबायोटिक के प्रति रेजिस्टेंट होते जा रहे बैक्‍टीरिया की सर्विलांस, पहचान और वैज्ञानिक निदान सुनिश्चित करना है।

    विशेषज्ञों ने बताया कि बिहार में एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस (Antibiotic Registance) की समस्या सामान्य से कहीं अधिक है।

    सेल्फ-मेडिकेशन, क्वेक मेडिकेशन, बिना सलाह ओवर-द-काउंटर दवाओं का उपयोग और एंटीबायोटिक का अनावश्यक सेवन इस समस्या को गंभीर रूप दे रहे हैं।

    माइक्रोबायोलाजी विभागाध्यक्ष डा. नम्रता कुमारी ने कार्यक्रम में बताया कि नौ प्रमुख बैक्‍टीरिया की पहचान और उनकी एंटीबायोटिक सेंस्टीविटी की जांच की जा रही है।

    इसके लिए आधुनिक साफ्टवेयर आधारित प्रणाली का प्रयोग किया जा रहा है, जिससे यह स्पष्ट रूप से पता चलता है कि कौन-सा एंटीबायोटिक किस बैक्ट्रिया पर प्रभावी है और कहां रेजिस्टेंस पाया जा रहा है। 


    एंटीबायोटिक का मिसयूज को रोकने पर जोर

    विशेष सत्र में विशेषज्ञों ने एंटीबायोटिक के गलत उपयोग (Misuse of Antibiotic) को रोकने पर गंभीर चिंता जताई। बताया गया कि सर्दी-खांसी जैसे सामान्य वायरल संक्रमण में अक्सर एंटीबायोटिक दे दिए जाते हैं, जबकि यह गलत प्रैक्टिस है।

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    डाक्टरों का कर्तव्य है कि ब्लड टेस्ट और अन्य आवश्यक जांचों के बाद ही एंटीबायोटिक लिखें। डा. शैलेश कुमार ने बताया कि मरीजों के सैंपल की सेंस्टीविटी जांच से यह स्पष्ट होता है कि कौन-सी दवा प्रभावी है और कौन-सी नहीं।

    इससे उपचार अधिक सटीक होता है और एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस की रोकथाम में भी मदद मिलती है। यह भी बताया गया कि लगातार एंटीबायोटिक लेने पर बैक्‍टीरिया अपना बचाव विकसित कर लेते हैं, इससे सामान्य संक्रमणों का इलाज भी भविष्य में कठिन हो जाता है।

    वर्ल्ड एंटी-माइक्रोबियल अवेयरनेस वीक के तहत कार्यक्रम

    कार्यक्रम वर्ल्‍ड एंटी-माइक्रोबियल अवेयरनेस सप्ताह के तहत आयोजित किया गया, इसमें स्वास्थ्यकर्मियों के साथ-साथ सामुदायिक स्तर पर भी जागरूकता बढ़ाने पर जोर दिया गया।

    विशेषज्ञों ने कहा कि टीकाकरण संक्रमणों को रोकने का सबसे प्रभावी तरीका है और इससे एंटीबायोटिक के अनावश्यक उपयोग में कमी आती है।

    कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में निदेशक डा. बिन्दे कुमार शामिल हुए। इसके अलावा डीन एकेडमिक डा. ओम कुमार, चिकित्सा अधीक्षक डा. मनीष मंडल, नर्सिंग अधीक्षक पुष्पलता, डा. शैलेश कुमार, डा. राकेश कुमार, डा. निधि, डा. सौरभ, डा. कमलेश, डा. रंधीर आदि भी रहे।