जॉर्ज फर्नांडिस: इंदिरा के बने सिरदर्द, पाकिस्तान के छुड़ाए छक्के, बिहार से रहा ये नाता
बिहार के मुजफ्फरपुर से चार बार सांसद रहे जॉर्ज फर्नांडिस नहीं रहे। देश की राजनीति में उनका अमूल्य योगदान है। आइए डालते हैं एक नजर।
पटना [अमित आलोक]। समाजवादी व श्रमिक नेता तथा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के पूर्व संयोजक पूर्व रक्षा मंत्री जाॅर्ज फर्नांडिस का मंगलवार को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। भले ही वे मंगलौर में पले-बढ़े, लेकिन बिहार से उनका गहरा नाता रहा। वे मुजफ्फरपुर से चार बार सांसद निर्वाचित हुए। जॉर्ज ने आपातकाल के दौर में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के लिए सिरदर्द पैदा कर दिया था। कारगिल युद्ध में उन्होंने पाकिस्तान के छक्के छुड़ा दिए थे।
मां थी किंग जॉर्ज की प्रशंसक, इसलिए रखा ये नाम
जॉर्ज फर्नांडिस की मां किंग जॉर्ज फिफ्थ की बड़ी प्रशंसक थीं! उन्होंने किंग जॉर्ज फिफ्थ के नाम पर ही अपने छह बच्चों में से सबसे बड़े का नाम जॉर्ज फर्नांडिस रखा। फर्नांडिस मंगलौर में पले-बढ़े।
पादरी बनते-बनते बन गए राजनेता
16 साल की उम्र में उन्हें एक क्रिश्चियन मिशनरी में पादरी बनने के लिए भेजा गया, लेकिन दो साल के अंदर ही उन्होंने चर्च छोड़ दिया और रोजगार की तलाश में मुंबई (तत्कालीन बंबई) चले गए। कालक्रम में वे राजनेता बन गए।
बंबई में दर्ज की पहली राजनीतिक जीत
बंबई में जॉर्ज समाजवादी व मजदूर आंदोलन का सशक्त चेहरा बनकर उभरे। जॉर्ज के लिए राम मनोहर लोहिया आदर्श बने तो जॉर्ज मुंबई के लाखों गरीबों के लिए हीरो बनकर उभरे। 1967 के लोकसभा चुनाव में जॉर्ज ने तत्कालीन कांग्रेसी नेता एसके पाटिल को बॉम्बे साउथ सीट पर कड़ी शिकस्त दी। एसके पाटिल तब के बड़े नेता थे। उन्हें हराने के बाद लोग उन्हें 'जॉर्ज द जायंट किलर' भी कहने लगे। यह जॉर्ज की सक्रिय राजनीति में पहली बड़ी जीत थी।
आठ बार जीते लोकसभा चुनाव
1967 के लोकसभा चुनाव में जॉर्ज फर्नांडिस की पहली बड़ी जीत हुई। अपने राजनीतिक जीवन के दौरान उन्होंने कुल आठ बार लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की।
देशभर में कर दिया रेल चक्का जाम
सन 1973 में जॉर्ज को 'ऑल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन' का अध्यक्ष चुना गया। इसके बाद जॉर्ज ने रेलकर्मियों की सालों से लंबित मांगों को पूरा करने का सरकार पर दबाव बनाया। जब सरकार ने उनकी मांगों पर पर ध्यान नहीं दिया तो उन्होंने 8 मई, 1974 को देशव्यापी रेल हड़ताल का आह्वान किया। इसके बाद कई दिनों तक रेलवे का काम ठप नड़ा रहा। सरकार ने जॉर्ज समेत हजारों लोगों को गिरफ्तार कर लिया।
आपातकाल में बने इंदिरा के सिरदर्द
जॉर्ज फर्नांडिस को अलग देशव्यापी पहचान आपातकाल के दौरान तत्कालीन इंदिरा सरकार के विरोध ने दी। आपातकाल के समय जॉर्ज कभी मछुआरे, कभी साधु तो कभी सिख के रूप में भूमिगत रहते हुए आंदोलन चलाते रहे। आपातकाल के दौरान जॉर्ज को जून 1976 में गिरफ्तार कर लिया गया।
सीआइए व फ्रांस से मांगी थी मदद!
विकिलीक्स के खुलासे पर विश्वास करें तो जॉर्ज फर्नांडिस ने अपातकाल में भूमिगत रहने के दौरान अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआइए और फ्रांस सरकार से आर्थिक मदद की मांग की थी। विकिलीक्स के अनुसार आपातकालीन विरोधी आंदोलन में जॉर्ज सरकारी संस्थानों को डायनामाइट से उड़ाना चाहते थे। अमेरिका विरोध के बावजूद 1975 में जॉर्ज ने कहा था कि वे इसके लिए सीआइए से भी धन लेने को हैं। अंग्रेजी दैनिक द हिन्दू ने यह खबर दी थी।
मुजफ्फरपुर से चार बार रहे सांसद
आपातकाल के दौर में 1977 में उन्होंने बिहार के मुजफ्फरपुर से लोकसभा चुनाव जेल में रहते हुए लड़ा और भारी मतों से जीत हासिल की। जॉर्ज आपातकाल के हीरो बन चुके थे। 1977 में जब मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी तो उन्हें मंत्री बनाया गया। जॉर्ज मुजफ्फरपुर के चार बार सासंद रहे। 1980 में हुए लोकसभा चुनाव में मुजफ्फरपुर से जीत हासिल की। वे विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार में रेल मंत्री रहे। 1998 के लोकसभा चुनाव के लिए जब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का गठन हुआ, तब जॉर्ज उसके संयोजक बनाए गए। इस चुनाव में जीत हासिल कर अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी।
कारगिल युद्ध में दिलाई जीत, पाकिस्तान के छुड़ाए छक्के
जॉर्ज राजग की सरकार में दोनों बार रक्षामंत्री बने। उनके रक्षा मंत्री रहने के दाैरान ही पाकिस्तान के साथ कारगिल युद्ध में भारत ने विजय हासिल की। तब भारतीय सेना ने 'ऑपरेशन विजय' के तहत पाकिस्तानी सेना के छक्के छुड़ा दिए। जॉर्ज फर्नांडिस ने बतौर रक्षामंत्री 6,600 मीटर ऊंचे सियाचिन ग्लेशियर का 18 बार दौरा भी किया था। जार्ज 1989 में रेल मंत्री रहे। वे संचार व उद्योग विभागों के मंत्री भी रहे।
आगे राजनीतिक के हाशिए पर चले गए जॉर्ज
बतौर सांसद उनका आखिरी कार्यकाल राज्यसभा में अगस्त 2009 और जुलाई 2010 के बीच में था। हालांकि, 2004 के लोकसभा चुनाव में राजग की हार के बाद वे धीरे-धीरे राजनीति के हाशिए पर चले गए। जनता दल यूनाइटेड (जदयू) में उनके मतभेद गहराए तो 2009 के लोकसभा चुनाव में वे निर्दलीय मैदान में उतरे, मगर हार गए।