गंगा दूर हुई तो 'घर' की आई याद
पटना : राजधानी के सरिस्ताबाद स्थित कच्ची तालाब का इतिहास गौरवपूर्ण रहा है। यह तालाब सौ साल
पटना : राजधानी के सरिस्ताबाद स्थित कच्ची तालाब का इतिहास गौरवपूर्ण रहा है। यह तालाब सौ साल से भी पुराना है। वर्षो पहले यहां पर बहुत गहरा गढ्डा था, जिसमें सालभर पानी रहता था, लेकिन धीरे-धीरे यह तालाब का स्वरूप लेने लगा था। 1905 के करीब वह गढ्डा एक तालाब के रूप में विकसित हो चुका था। इसी तरह धीरे-धीरे इसकी दुर्दशा होनी शुरू हुई। तालाब में नाले का गंदा पानी गिरने लगा। लोग कूड़ा भी फेंकने लगे। 1990 में जब गंगा घाटों से दूर होने लगीं तो पास के कच्ची तालाब के संरक्षण की लोगों को याद आई। यहां के लोग जागे और इसके संरक्षण को लेकर कदम उठाना शुरू किया। आज इस तालाब की हालत में बहुत सुधार हुआ, लेकिन अभी भी बहुत काम होना बाकी है।
स्थानीय निवासी 72 वर्षीय बुजुर्ग देव कर्ण प्रसाद का कहना है कि बचपन में गांव के बच्चों के साथ नियमित रूप से तालाब में स्नान करने आते थे। बच्चों के अलावा यहां पर युवा एवं बुजुर्ग भी काफी संख्या में तालाब किनारे स्नान करने आते थे। तालाब के चारों किनारों लोगों की भीड़ लगी रहती थी।
छठ पर विशेष आयोजन
छठ के अवसर पर तालाब के किनारे विशेष आयोजन किया जाता था। लोक आस्था के महापर्व पर चार दिनों तक यहां पर व्रत करने के लिए आसपास के साथ-साथ दूर-दूर के गांवों से भी काफी संख्या में लोग यहां पर व्रत करने आते थे।
1970 के बाद आया बदलाव
1970 के दशक में स्थानीय लोगों की जीवन शैली में आए बदलाव ने तालाब से उन्हें काफी दूर कर दिया। उस दौर में घर में बो¨रग लगने लगी थी, गांव की गलियों में चापाकल दिखाई पड़ने लगे थे। अब स्थानीय लोगों की तालाब पर निर्भरता कम होने लगी। परिणाम स्वरूप लोग तालाब से दूर होते चले गए। तालाब से लोगों की दूरी बढ़ने से तालाब बदहाली का दंश झेलने को विवश हो गया। लोगों की सोच में भी काफी बदलाव आया। पहले लोग जहां तालाब के किनारे मल-मूत्र त्याग करने से परहेज करते थे, लेकिन बाद के वर्षो में तालाब में ही नाला का पानी गिराने लगे। फिर तालाब का पानी निर्मल नहीं रहा। बल्कि पानी से दुर्गध निकलने लगी, जिसके किनारे पलभर भी बैठना मुश्किल हो गया।
फिर बढ़ने लगा तालाब का महत्व
शहर से गंगा की धारा की दूरी बढ़ने के बाद एक बार फिर से कच्ची तालाब का महत्व काफी बढ़ गया है। 1990 के बाद गंगा की धारा शहर से दूर होने लगी थी। वर्तमान में राजधानी के अधिकांश घाटों से गंगा की धारा तीन से पांच किलोमीटर दूर चली गई, ऐसे में लोग एक बार फिर से कच्ची तालाब की ओर आकर्षित हुए हैं। 2000 तक लोग केवल छठ के मौके पर ही कच्ची तालाब के किनारे आते थे लेकिन अब सालोंभर आने लगे हैं।
2013 के बाद विशेष व्यवस्था
स्थानीय समाजसेवी जय प्रकाश सिंह का कहना है कि 2013 के बाद लगभग 5 एकड़ में फैले इस तालाब के दो किनारों पर घाट का निर्माण हो गया है। तालाब में नाला के पानी गिराने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया गया है। तालाब के चारों तरफ से सुंदर घाट का निर्माण हो जाए इसके लिए प्रयास चल रहा है। तालाब की उड़ाही का प्रयास किया जा रहा है। तालाब का पानी निर्मल हो इसके लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं।
पिछले साल हुआ था सूर्य मंदिर का निर्माण
कच्ची तालाब के किनारे पर पिछले साल भगवान सूर्य के भव्य मंदिर का निर्माण किया गया है। स्थानीय लोगों के सहयोग से मात्र नौ माह में सूर्य मंदिर का निर्माण तालाब कि किनारे किया गया है। सूर्य मंदिर के निर्माण एवं नियमित पूजा-अर्चना होने से काफी संख्या में लोग मंदिर और तालाब के किनारे आने लगे हैं।
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इनसेट
तालाब के विकास के लिए एक करोड़ छह लाख की योजना तैयार
स्थानीय वार्ड पार्षद प्रेम लता देवी का कहना है कि तालाब के विकास के लिए एक करोड़ छह लाख की योजना तैयार की गई है। योजना वर्तमान में नगर विकास विभाग के पास लंबित है। योजना की स्वीकृति मिलते ही तालाब के विकास का काम प्रारंभ कर दिया जाएगा।
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