सुनहरा अतीत समेटे हैं गंगा के घाट
राजधानी के गंगा घाटों पर आजकल खूब रौनक है। ...और पढ़ें

पटना। राजधानी के गंगा घाटों पर आजकल खूब रौनक है। सभी घाटों की खूबसूरती में गंगा की लहरें चार-चांद लगा रही हैं। गंगा के शहर से दूर हटने के कारण अब ऐसा कम ही होता है। बरसात में आई बाढ़ की वजह से आजकल गंगा अपने पुराने घाटों को लहरों से गुलजार कर रही हैं। मिथिला पेंटिंग से सजे घाटो और गंगा की लहरों का आनंद लेने के लिए हर दिन सैकड़ों सैलानी गंगा तीरे उमड़ रहे हैं। रिवर फ्रंट पर घूमते हुए गंगा की इठलाती लहरों की कुछ बूंदें शरीर पड़ते ही बड़े भी बच्चे जैसी हरकतें करने से खुद को रोक नहीं पा रहे हैं। पटना सिटी की निहारिका के शब्दों में पूरा दृश्य मरीन ड्राइव, मुंबई की याद दिला रही है। जहां तक नजर जाए बस पानी ही पानी। गंगा का यह दृश्य साल में अब महीने-डेढ़ महीने ही नसीब होता है। इन दिनों गंगा का पाट पांच से सात किलोमीटर चौड़ा हो जाता है। दियारा जलमग्न है। गया के अमरजीत ने बताया कि 30 सालों से सपरिवार गंगा दर्शन के लिए आ रहे हैं। इस साल रिवर फ्रंट की सजावट आनंदित करने वाली है। लगभग चार किलोमीटर पैदल चलते हुए गंगा की लहरों का आनंद लिया जा सकता है। रिवर फ्रंट का निर्माण घाटों की खूबसूरती में चार चांद लगा रहा है।
राजधानी के इन गंगा घाटों का एक लंबा अतीत है। कुछ दशक पहले तक गंगा घाट शहर के जनजीवन में रचे-बसे रहे हैं। लोगों का गंगा का रोजाना का ताल्लुक रहा है। इन्हीं गंगा घाटों पर शहर का इतिहास, सभ्यता और संस्कृति गढ़ी गई है। पटना विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के शिक्षकों का कहना है कि कौन से घाट कब बने, किसने बनवाया या जीर्णोद्धार कराया, क्या खासियत है आदि की प्रामाणिक जानकारी कलमबद्ध नहीं हैं। प्रो. जयदेव मिश्र का कहना है कि पटना के घाटों पर शोधपरक काम नहीं हुआ है। इस पर काफी काम करने की दरकार है। पटना में सबसे लंबा घाट है कृष्णा घाट
पर्यटन विभाग द्वारा कृष्णा घाट पर लगाए गए बोर्ड के अनुसार यह पटना का सबसे लंबा घाट है। इसकी लंबाई 119.5 मीटर है। मुगल दौर में यह अफजलपुर मोहल्ले का हिस्सा था। पर्यटन विभाग के अनुसार मेजर कार्नेक की अगुवाई वाली अंग्रेज सेना तथा शुजाउद्दौल्ला, मीर कासिम और शाह आलम द्वितीय की संयुक्त फौजों के बीच तीन मई, 1764 को प्रसिद्ध संग्राम इसी के आसपास हुआ था। इसी घाट के किनारे प्रसिद्ध शिक्षाविद् सर गणेशदत्त का आवास था, जिसे वह पटना विश्वविद्यालय को दान कर दिए थे। वर्तमान में मनोविज्ञान विभाग उसमें संचालित है। रानीघाट का अहिल्या बाई ने कराया था जीर्णोद्धार
प्रो. ओम प्रकाश के अनुसार रानी घाट का जीर्णोद्धार रानी अहिल्या बाई ने करवाया था। संभवत: इसके बाद से ही उक्त घाट 'रानी घाट' के नाम से पुकारा जाने लगा। रानी ने विधवा होने के बाद उत्तर भारत में कई स्थानों पर घाट और मंदिरों का निर्माण और जीर्णोद्धार कराया था। प्रो. ओम प्रकाश का कहना है कि सुनी-सुनाई बातों को ही इतिहास मान लिया जा रहा है। इस पर प्रामाणिक कार्य होना चाहिए। मिस्टर गॉल्वी से बना गुलबी घाट
शोधार्थी राकेश गौतम के अनुसार अंग्रेजों की डायरी में वर्तमान गुलबी घाट के बगल में मिस्टर गॉल्वी का मकान दर्शाया गया है। उस दौर में वैशाली, सारण और दानापुर की ओर से लोग उक्त घाट से पुराना पटना में प्रवेश करते थे। सख्त अंग्रेजी प्रशासक गॉल्वी आने-जाने वालों पर नजर रखते थे। उन्हीं के नाम पर गुलबी घाट का नामकरण बाद में किया गया। वर्तमान में उक्त घाट दाह-संस्कार के लिए प्रसिद्ध है। महेंद्रू घाट कब बना इसका कोई प्रमाण नहीं
शोधार्थी राकेश गौतम के अनुसार बीएन कॉलेज के पीछे स्थित महेंद्रू घाट का नामकरण सम्राट अशोक के पुत्र पर किया गया है। हालांकि इसका कोई प्रमाणिक संदर्भ नहीं है। महेंदू्र घाट पर अंग्रेजी शासन के पहले डच लोगों द्वारा व्यापार करने के प्रमाण हैं। पटना कॉलेज कैंपस और कलेक्ट्रेट के कई भवन डच व्यापारियों द्वारा ही बनाए गए थे। नदी के कटाव और पानी की गहराई के कारण घाट की प्रासंगिकता कम और ज्यादा होना सामान्य बात है। कालीघाट का दरभंगा महाराज ने कराया जीर्णोद्धार
'हिस्ट्री ऑफ पटना विश्वविद्यालय' की लेखिका प्रो. जयश्री मिश्र के अनुसार काली घाट स्थित दरभंगा हाउस का निर्माण कार्य 1880 के आसपास पूरा किया गया था। राजा और रानी के गंगा में स्नान के लिए महल से रास्ते थे। यह घाट कब का है, इसका प्रमाणिक आंकड़ा नहीं है। काली मंदिर होने के कारण काली घाट नाम पड़ा। गांधी घाट से जुड़ी है राष्ट्रपिता की यादें
एनआइटी के पास स्थित गांधी घाट राजधानी के सबसे व्यवस्थित घाटों में एक है। यहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समाधि बनी हुई है। समाधि बनने के बाद इसे गांधी घाट का नाम दिया गया। बगल में नेशनल टेक्निकल इंस्टीट्यूट होने कारण अब इसे एनआइटी घाट के नाम से भी जाना जाता है। यहां की गंगा महाआरती काफी प्रसिद्ध है। बनारस की तर्ज पर पांच पंडित 51 दीपों से मां गंगा की स्तुति करते हैं। बांस घाट पर स्थित है प्रथम राष्ट्रपति की समाधि
दाह-संस्कार के लिए प्रसिद्ध बांस घाट पर देश के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न राजेंद्र प्रसाद की समाधि है। इस घाट से गंगा की धारा काफी दूर जा चुकी है। बारिश के मौसम में ही तट पर गंगा की लहरों का दर्शन हो पाता है। सामान्य दिनों में अस्थायी पुल का निर्माण किया जाता है। गंगा की मुख्य धारा तक पहुंचने के लिए लोग निजी वाहन का प्रयोग करते हैं।

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