टीबी से बच्चों को बचाएगी टॉफी वाली दवा, बिहार के सरकारी अस्पतालों में मिलेगी मुफ्त
बिहार के सरकारी अस्पतालों में बच्चों को टीबी से बचाने के लिए टॉफी वाली दवा मुफ्त में उपलब्ध कराई जाएगी। स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, यह दवा सभी सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों पर मिलेगी। टीबी एक गंभीर बीमारी है, और यह पहल बच्चों को इस बीमारी से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी, जिससे राज्य में बाल स्वास्थ्य बेहतर होगा।

बिहार में बच्चों को टीबी से बचाने के लिए मुफ्त टॉफी दवा। सांकेतिक तस्वीर
जागरण संवाददाता, पटना। क्षय रोग (टीबी) से बच्चों को सुरक्षित रखने की दिशा में स्वास्थ्य विभाग ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। टीबी संक्रमितों के संपर्क में आने वाले बच्चों को अब टॉफी जैसी चूसने वाली दवा दी जाएगी, जो स्वादिष्ट होने के साथ लेना भी आसान होगी।
विभाग ने इस दवा के उपयोग को औपचारिक अनुमति दे दी है और जल्द ही पटना सहित पूरे बिहार के सरकारी अस्पतालों में इसका निशुल्क वितरण शुरू किया जाएगा। सिविल सर्जन डॉ. अविनाश कुमार सिंह ने बताया कि टीबी की रोकथाम के लिए दी जाने वाली इस दवा का नाम आइसनियाजिड 100 एमजी है।
यह दवा प्रिवेंशन ऑफ टीबी पेशेंट (पीटीपी) प्रोग्राम के तहत उपलब्ध कराई जाएगी। फिलहाल, यह टैबलेट के रूप में उपलब्ध है। 100 एमजी और 300 एमजी की खुराकों में उपलब्ध है, बच्चों को केवल 100 एमजी की खुराक दी जाएगी। स्वास्थ्य विभाग इस दवा का चूसने योग्य, टाफी जैसा फ्लेवर वाला संस्करण भी बाजार में लाने जा रहा है।
इसमें कड़वापन नहीं होगा और छोटे बच्चे आसानी से इसे ले सकेंगे। जिला क्षय रोग विभाग के अधिकारियों ने बताया कि दवा का वितरण प्रक्रिया अंतिम चरण में है और अस्पतालों को शीघ्र आपूर्ति कर दी जाएगी।
एक मरीज 15 को कर सकता है संक्रमित
जिला क्षय रोग अधिकारी के अनुसार, एक अनुपचारित टीबी मरीज लगभग 15 लोगों को संक्रमित कर सकता है। इस कारण समय पर पहचान और उपचार बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा कि टीबी के लक्षण दिखते ही तत्काल जांच करानी चाहिए। दवा को बीच में कभी नहीं छोड़ना चाहिए, अन्यथा बीमारी जटिल हो सकती है।
कहा कि अधूरा इलाज करने पर ड्रग-रेसिस्टेंट टीबी विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है, जिसका उपचार लंबा, कठिन और महंगा होता है। स्वास्थ्य विभाग का मानना है कि ऐसे घरों में जहां किसी सदस्य को टीबी होता है, बच्चों में संक्रमण का खतरा अधिक रहता है।
इसलिए प्रतिरोधक दवा देकर उनके संक्रमण के जोखिम को काफी हद तक कम किया जा सकता है। नई चूसने वाली दवा छोटे बच्चों के लिए एक आसान और प्रभावी विकल्प साबित होगी।
टीबी उन्मूलन अभियान तेज, संपर्क में रहने वालों की होगी नियमित जांच
टीबी उन्मूलन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए जिले से लेकर प्रखंड और गांव स्तर तक नियमित जांच अभियान चलाया जाएगा। विशेष तौर पर उन लोगों की जांच पर जोर रहेगा जो टीबी मरीजों के नियमित संपर्क में रहते हैं।
इसके अलावा उम्रदराज लोगों, मधुमेह और एचआइवी से पीड़ित व्यक्तियों, तंबाकू-नशा सेवन करने वालों तथा कुपोषित बच्चों और वयस्कों की भी समय-समय पर जांच की जाएगी। यक्ष्मा पदाधिकारी डॉ. बीके मिश्रा ने बताया कि जोखिम समूह के लोगों की हर तीन माह पर जांच आवश्यक है।
इसके लिए सिविल सर्जन और आशा कार्यकर्ताओं की मदद से टीबी मरीजों के संपर्क में रहने वाले व्यक्तियों की पहचान की जाएगी। बताया कि टीबी के संदिग्ध मरीजों की पहचान के लिए कांटेक्ट ट्रेसिंग को सशक्त करना जरूरी है। पिछले दो वर्षों में टीबी से ग्रस्त रहे मरीजों की भी हर छह माह में जांच की जाएगी।
उन्होंने कहा कि संपर्क में रहने वाले व्यक्तियों की जांच बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यही संक्रमण के प्रसार का मुख्य स्रोत बन सकते हैं। समय पर टीबी प्रिवेंटिव ट्रीटमेंट देकर ऐसे लोगों और समुदाय दोनों को संक्रमण से सुरक्षित किया जा सकता है।

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