जल्द पेट भरा महसूस होना, ऊपरी हिस्से में दर्द और होती है जलन? आईजीआईएमएस बताएगा सटीक दवा
बिना कारण पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द-भारीपन, जल्द पेट भरा महसूस होना, मिचली, जलन-बेचैनी जैसे रोगों से पीड़ित मरीजों के लिए अच्छी खबर है। आईजीआईएमएस का फार्माकोलाजी विभाग इसका सटीक इलाज बताएगा।

पेट का सटीक इलाज बताएगा आईजीआईएमएस। सांकेतिक तस्वीर।
जागरण संवाददाता, पटना। आईजीआईएमएस का फार्माकोलाजी विभाग, बिना कारण पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द-भारीपन, जल्द पेट भरा महसूस होना, मिचली, जलन-बेचैनी जैसे रोगों की सटीक दवा खोजने को अध्ययन कर रहा है।
जिन रोगियों में ऐसी समस्याओं के कारणों की जानकारी नहीं होगी व सामान्य दवाएं निष्प्रभावी हो चुकी होंगी, वैसे सौ लोगों पर इसका अध्ययन किया जाएगा। तनाव या अवसाद के कारण भी ऐसे लक्षण होते हैं, जिसे चिकित्सकीय भाषा में फंक्शनल डिस्पेप्सिया (एफडी) कहा जाता है। किन लक्षणों पर कौन सी दवा ज्यादा प्रभावी होगी, आइजीआइएमएस इसी निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए शोध कर रहा है।
देश में पहली बार इस तरह के अध्ययन के लिए भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) ने 30 लाख का अनुदान भी स्वीकृत किया है।
जिन रोगियों पर परीक्षण, उनकी जांच-उपचार मुफ्त
फार्माकोलाजी के विभागाध्यक्ष प्रो. डा. ललित मोहन ने बताया कि आधुनिक जीवनशैली व असमय-अस्वास्थ्यकर खानपान से देश व प्रदेश में गैस, पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द-भारीपन, जल्द पेट भरा महसूस होना, मिचली, जलन-बेचैनी आदि के मरीज तेजी से बढ़ रहे हैं।
पेट रोग विशेषज्ञ इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम (आइबीएस) मानकर सामान्य प्रोटान पंप इनहिबिटर जैसे पैनटोप्राजोल व उससे आगे की डोमपेरिडोन या डोमपेरिडोन डीएसआर जैसी दवाएं अन्य दवाएं देते हैं, लेकिन उनसे लंबे समय तक लाभ नहीं मिलता है। एंडोस्कोपी, लिवर फंक्शन टेस्ट, अल्ट्रासाउंड समेत अन्य जांचों में अल्सर-कैंसर या अन्य किसी विकार की भी पुष्टि नहीं होती है। ऐसे में इसका कारण एंजाइटी या डिप्रेशन हो सकता है।
इसमें पेट की मांसपेशियां अधिक संवेदनशील हो जाती हैं और पेट की चाल धीमी हो जाती है। इससे हल्की सी गैस भी बहुत बेचैन करती है। साथ ही मरीज अनजाने में मुंह से अधिक हवा निगलने लगते हैं, जो पेट में गैस का बड़ा कारण है। तीन-तीन माह तक दवा देने के बाद लक्षणों में सुधार, दुष्प्रभाव, जीवन गुणवत्ता में हुए बदलावों का अध्ययन किया जाएगा। यह प्रक्रिया तीन वर्ष में पूरी होगी। इस दौरान रोगियों की जांच व अन्य खर्च का वहन संस्थान करेगा।
यह चिकित्सकीय शोध आमजन के लिए बहुत उपयोगी साबित होगा। अभी एफडी के मरीज रोग के निदान को वर्षों एक के बाद दूसरे डाक्टरों के चक्कर काटते रहते हैं। इस अध्ययन के पूर्ण होने के बाद पेट की चाल यानी खाना जाने की गति की जांच कर सटीक दवा दी जा सकेगी, जो लंबे समय तक प्रभावी होगी। वैसे अभी भी फंक्शनल डिस्पेप्सिया के इलाज में तनाव कम करने की ये दोनों दवाएं फ्रंटलाइन थेरेपी के रूप में दी जा रही हैं। यह शोध एफडी इलाज के नए मानक स्थापित कर सकता है।प्रो. डा. ललित मोहन, विभागाध्यक्ष फार्माकोलाजी आइजीआइएमएस
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