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    बिहार में गुनगुनाया जा रहा नया गीत, हम बने - तुम बने एक-दूजे के लिए

    By Kajal KumariEdited By:
    Updated: Tue, 10 Jan 2017 10:01 PM (IST)

    पीएम मोदी और सीएम नीतीश का मिलन राजनीतिक महकमे में तहलका मचाता रहा है। इसके राजनीतिक परिणाम निकाले जाते रहे हैं लेकिन इससे इतर बिहार के लोग इस मिलन को सुखदायी बताते हैं।

    पटना [काजल]। बिहार के लिए नए साल की शुरुआत एक नई उम्मीद, एक नई आशा, एक नए ध्रुव के राजनीतिक समीकरण के साथ हुई है। तमाम अटकलें लगाई जा रहीं। कुछ लोग तो बिहार में एक नई सुबह की किरण के साथ बेहतर दिन की प्रतीक्षा भी करने लगे हैं।

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    इन अटकलों और इस निश्चितता को कुछ यूं देखें तो मतैक्य नहीं होने के बावजूद प्रकाशोत्सव के आयोजन को लेकर सजे पंडाल में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भगवा रंग की पगड़ी, साथ ठहाके लगाते दिखे, यह एक मनोरम दृश्य था।

    तमाम राजनीतिक समीकरण से इतर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में प्रकाशोत्सव पर्व का भव्य आयोजन और उसमें पीएम मोदी का आगमन, भविष्य के लिए एक बड़े संकेत दे रहा था। बिहार चुनाव के वक्त यही दोनों दिग्गज नेता अलग-अलग मंच से एक-दूसरे को ललकारते दिखाई दे रहे थे।

    लेकिन वक्त बदला, धारणाएं बदलीं और सोच भी बदली, अब जबकि ये दोनों नेता एक-दूसरे के साथ गले मिलते, हाथ मिलाते, ठहाके लगाते दिखते हैं तो विरोधियों के दिल को इनकी खिलखिलाहट जहरीले तीर से कम नहीं लगते हैं। लेकिन बिहार की जनता को दोनोें नेताओं को एक साथ देखना बहुत ही भाता है।

    इस बार बिहार की जनता ने इस जोड़ी को दिल से सराहा और अपनापन दिखाया। पीएम मोदी के पटना आगमन को लेकर लोगों का उत्साह चरम पर था। मोदी और नीतीश ने जब एक साथ मंच संभाला तो नीतीश-मोदी के नारे लगाए गए। यह दृश्य आंखों को सुकून देने वाला था।

    इसी आयोजन में लालू यादव की उदासी दिखाई दी तो कांग्रेस की दूरी ने सबकुछ जता दिया। इस आयोजन के बाद नीतीश कुमार बिहार के नए ब्रांड मैन बनकर उभरे जिसे शायद किसी की सहायता की जरूरत नहीं। नीतीश कुमार जिद के पक्के हैं जो ठान लेते हैं कर दिखाते हैं और यही स्वभाव पीएम मोदी का भी है जो ठान लिया कर लिया।

    पढ़ें - पीएम ने शराबबंदी की तारीफ क्या की? अब मानव श्रृंखला होगी दोगुनी

    दोनों की कार्यशैली एक जैसी है, दोनों काम करने के लिए वक्त नहीं देखते, जमकर काम करते हैं और काम ही उनकी पहचान है। दोनों ने काफी संघर्ष किया है और दोनों एक जैसे हैं। बिहार मे तो अब यह भी दबी जुबान में कहा जा रहा है कि दोनों मिल जाएं तो बिहार में बस बहार आ जाए।

    महागठबंधन की बात करें तो अंदर ही अंदर खिंच गई राजनीतिक दरार अब धीरे-धीरे सतह पर आ रही है। सुर से सुर मिलाने वाले लोग अब कुछ भी बोलने से बच रहे हैं। बिहार भाजपा में जहां मुख्यमंत्री को लेकर ज्यादा कुछ नहीं कहा जा रहा वहीं महागठबंधन के तीनों दलों के नेता कुछ भी एेसा कहने से बच रहे हैं जिससे उनकी कड़वाहट बाहर ना आ सके।

    वहीं जदयू नेता शरद यादव ने भी अाजकल कुछ भी कहना-सुनना बंद कर दिया है। जब से उत्तरप्रदेश में महागठबंधन का फंडा फेल हुआ है उन्होंने चुप्पी साध रखी है। शराबबंदी की तारीफ जहां पीएम ने की वहीं अब नोटबंदी के खिलाफ कुछ भी कहना सीएम भी नहीं चाह रहे।

    इस मामले में अपने घटक दलों के विपरीत समीक्षा को भी टालकर उन्होंने उनसे दुश्मनी ही मोल ले ली है। इधर कांग्रेस और राजद एक-दूसरे को सांत्वना देने के अलावे कुछ भी नहीं कर सकते। इन लोगों की परेशानी के बीच नीतीश कुमार अपना काम भली-भांति निपटाकर सफारी यात्रा का आनंद ले रहे हैं।

    पढ़ें - नीतीश-पीएम मोदी की दोस्ती, लालू ने कहा - इस बात के मायने-मतलब मत निकालिए

    अब दस जनवरी को बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह पटना आ रहे हैं , देखना होगा कि उनके आने के बाद क्या होता है? पीएम की तारीफ के बाद अब शराबबंदी के लिए बनने वाली मानव श्रृंखला की लंबाई को भी दोगुना कर दिया गया है। ये भी अगर सही रहा तो बिहार का एक और विश्व रिकॉर्ड बन जाएगा और शराबबंदी को बिहार से ही नहीं पूरे देश से जाना होगा।

    अब यूपी चुनाव सर पर है इसपर मचे घमासान के बीच जहां सपा में बिखराव-जुड़ाव की खबरें दिख रही हैं, वहीं बिहार की तरह वहां गठबंधन की सारी कोशिशें बेकार गई हैं। पंजाब, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, मणिपुर और गोवा इन चार राज्यों के चुनाव होने वाले हैं।

    इन चुनावों में दो मुद्दे अहम होंगे, एक शराबबंदी और दूसरी नोटबंदी। ये दोनों मुद्दे देश की जनता का फरमान क्या है बता देंगे और उनसे ही इन दोनों दिग्गजों की जनता में कितनी पैठ है पता चल जाएगा। क्योंकि इन दोनों मुद्दों पर विपक्ष ने जमकर कोहराम मचाया था।