उच्च शिक्षा में ज्यादा दक्षता पर जोर, तभी बिहार बनेगा आत्मनिर्भर, सुधार को उठाने होंगे ये कदम
बिहार में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की आवश्यकता है। प्रति लाख जनसंख्या पर कॉलेजों की संख्या बढ़ानी होगी। छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए दूसरे राज्यों में जाना पड़ता है। सरकार को उच्च शिक्षा संस्थानों की जिम्मेदारी तय करनी होगी और दोषियों को दंडित करना होगा। बिहार में कई नए संस्थान खुले हैं लेकिन आईसीटी का उपयोग अभी भी कम है।

दीनानाथ साहनी, पटना। बिहार में उच्च शिक्षा का अतीत गौरवशाली रहा है। नालंदा विश्वविद्यालय, विक्रमशिला विश्वविद्यालय और उदंतपुरी विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों की कीर्ति दुनिया भर में फैली थी। आधुनिक भारतीय शिक्षा के उत्कृष्ट केंद्र पटना विश्वविद्यालय, पटना साइंस कॉलेज, पटना कॉलेज और पटना मेडिकल कॉलेज जैसी संस्थाओं की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति थी।
आज वैश्विक पैमाने पर भारत के उच्च शिक्षण संस्थान शैक्षणिक गुणवत्ता में बहुत पीछे हैं। उसी तरह भारत के पैमाने पर बिहार के संस्थान एकदम से नीचे हैं। यह स्थिति अचानक नहीं हुई। इसके लिए पूर्ववर्ती सरकारें जिम्मेवार रहीं। राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी, वित्तीय संकट, संस्थान निर्माण की पहल का अभाव, बढ़ता नौकरशाही और राजनीतिक हस्तक्षेप, शिक्षकों का निष्क्रिय दृष्टिकोण, हतोत्साहित और आत्मकेंद्रित छात्र, शोध का निम्न स्तर, तकनीकी शिक्षा का अभाव, अनियोजित और अव्यवस्थित मूल्यांकन और परीक्षा पद्धति इस गिरावट के महत्वपूर्ण कारण रहे हैं।
हालांकि, बीते दो दशकों में बिहार में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय महत्व के दर्जनों संस्थान स्थापित किए गए हैं, जो उच्च शिक्षा (तकनीकी, चिकित्सा, कृषि व कौशल विकास) के गौरव को पुन: प्राप्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण पहल है। राज्य के सभी जिलों में राजकीय अभियंत्रण महाविद्यालय, पॉलीटेक्निक संस्थान व औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना हो चुकी है। इसी प्रकार राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय तथा कृषि महाविद्यालय और कौशल विकास जैसे संस्थान स्थापित किए जा रहे हैं।
सरकार का ज्यादा जोर उच्च शिक्षा के हर क्षेत्र में पढ़ाई करने वाले युवाओं में दक्षता लाने पर है, ताकि पढ़ाई के बाद हर युवा को रोजगार मिले, काम मिले और हर युवा आत्मनिर्भर बिहार एवं विकसित बिहार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें।
इस वर्ष सरकार के स्तर से एक और महत्वपूर्ण पहल हुई-जननायक कर्पूरी ठाकुर कौशल विश्वविद्यालय की स्थापना। इसका उद्देश्य केवल कौशल प्रशिक्षण ही नहीं, बल्कि उद्यमिता, व्यावसायिक शिक्षा, नवाचार और अनुसंधान को भी बढ़ावा देना है। यह कदम युवाओं के सशक्तिकरण की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल है।
उच्च शिक्षा किसी राज्य की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को सुधारने का एक सशक्त माध्यम है। इस दिशा में 2006 के बाद सरकार ने सबसे ज्यादा काम किया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शुरुआत से ही इस बात को बखूबी समझा कि बिहार जैसे पिछड़े प्रांत के युवाओं को उपयोगी शिक्षा एवं कौशल विकास प्रदान करके तथा विज्ञान और प्रौद्योगिकी का विकास करके आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है। युवाओं को कुशल मानव संसाधन तैयार कर विकसित बिहार का सपना साकार किया जा सकता है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नये-नये संस्थानों की स्थापना, पुराने संस्थानों का जीर्णोद्धार करने और उच्च शिक्षा में नवाचार और अनुसंधान को प्रोत्साहन देने हेतु हर साल आवंटित किए जानी वाली राशि में बढ़ोतरी की। आज बिहार में उच्च शिक्षा पर सालाना 15 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किया जा रहा है। यहां बिहार का शैक्षिक परिदृश्य पर ध्यान देने योग्य बात यह है कि बिहार देश के सबसे अधिक आबादी वाले राज्यों में से एक है।
देश के प्रमुख राज्यों में जनसंख्या का घनत्व सबसे अधिक है। 2011 की जनगणना रिपोर्ट में बिहार की साक्षरता दर 61.8 प्रतिशत है, जिसमें पुरुष साक्षरता 71.2 प्रतिशत और महिला साक्षरता 51.5 प्रतिशत है। माना जा रहा है कि अबकी बार जनगणना होने पर बिहार की साक्षरता दर 90 प्रतिशत को पार कर जाएगी।
- उच्च शिक्षा में गुणवत्तापूर्ण सुधार को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी और प्रति लाख आबादी पर संस्थानों विशेषकर महाविद्यालयों की संख्या बढ़ानी होगी क्योंकि अन्य राज्यों की तुलना में बिहार में बहुत कम महाविद्यालय हैं। लिहाजा, गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा संस्थानों की कमी के कारण छात्रों को अन्य राज्यों में जाने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
- उच्च शिक्षण संस्थानों का केवल अधिकार देने से काम नहीं चलेगा, बल्कि उनके उत्तरदायित्व भी तय करने होंगे, दोषियों को दंडित भी करने होंगे
- सत्र संचालन व परीक्षा व्यवस्था में आमूलजूल बदलाव को देने होंगे प्राथमिकता
- शिक्षकों की कमी को दूर करने और नवाचार व अनुसंधान को बढ़ावा देने होंगे
- शिक्षा पर व्यय को बढ़ाते हुए आधारभूत संरचना को करना होगा मजबूत
- निजी संस्थानों को प्रोत्साहित करने होंगे
छात्रों के अलग से कक्षाओं की व्यवस्था करनी होगी
बिहार में स्थापित | नए संस्थान |
2010 | नालंदा यूनिवर्सिटी, राजगीर |
2008 | भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, पटना |
2004 | राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, पटना |
2015 | भारतीय प्रबंधन संस्थान, बोधगया |
2008 | नेशनल इंस्टीच्यूट आफ फैशन टेक्नोलाजी (निफ्ट) |
2007 | राष्ट्रीय औषधि शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान, हाजीपुर |
2017 | राष्ट्रीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, भागलपुर |
2012 | अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, पटना |
2009 | साउथ बिहार सेंट्रल यूनविर्सिटी, बोधगया |
2016 | डा. राजेन्द्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, समस्तीपुर |
2016 | महात्मा गांधी सेंट्रल यूनिवर्सिटी, मोतिहारी |
2010 | आर्यभट ज्ञान विश्वविद्यालय, पटना |
2009 | बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर, भागलपुर |
2016 | बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, पटना |
2021 | बिहार इंजीनियरिंग विश्वविद्यालय, पटना |
2022 | बिहार स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय |
2006 | चाणक्या राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय |
2018 | पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय, पटना |
2018 | पूर्णियां विश्वविद्यालय, पूर्णियां |
2018 | मुंगेर विश्वविद्यालय, मुंगेर |
2008 | राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय, बेतिया |
2013 | वर्धमान आयुर्विज्ञान संस्थान, पावापुरी |
2020 | जननायक कर्पूरी ठाकुर मेडिकल कालेज, मधेपुरा |
2023 | राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय, पुर्णियां |
2025 | जननायक कर्पूरी ठाकुर कौशल विश्वविद्यालय |
उच्च शिक्षा पर खर्च में बिहार आगे, सकल नामांकन अनुपात में पीछे
देश में उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण (एआइएसएचई) 2021-22 की रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रीय स्तर पर उच्च शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) 28.4 प्रतिशत है जिसे बढ़ाकर 2035 तक 50 प्रतिशत करने का लक्ष्य है। यह सकल नामांकन अनुपात 18-23 वर्ष की आयु वर्ग के उन युवाओं पर है जो उच्च शिक्षा में नामांकित हैं।
इस सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार बिहार में उच्च शिक्षा का सकल नामांकन अनुपात 19.3 प्रतिशत है। शिक्षा विभाग का मानना है कि यह जीईआर वर्तमान में 22 प्रतिशत के आसपास है। केंद्र की सर्वेक्षण रिपोर्ट में बिहार द्वारा उच्च शिक्षा पर राशि खर्च करने और सकल नामांकन अनुपात की उपलब्धि को दर्शाया गया है। उच्च शिक्षा में नामांकित छात्र-छात्राओं के मामले में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान और बिहार शीर्ष सात राज्य हैं।
हालांकि, तमिलनाडु (51.4 प्रतिशत) और दिल्ली (48.1 प्रतिशत) जैसे राज्यों की तुलना में बिहार उच्च शिक्षा में काफी पिछड़ा हुआ है। सबसे अच्छी बात यह कि बिहार उच्च शिक्षा पर खर्च करने के मामले में बड़े राज्यों को पीछे छोड़ दिया है। यही नहीं, मेघालय व मणिपुर जैसे छोटे राज्यों को छोड़ दें तो उच्च शिक्षा के विकास पर खर्च करने में बिहार देश में अव्वल है।
केंद्र सरकार ने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर काम करने वाले राज्यों की सूची जारी की है। इसमें उन राज्यों के नाम हैं, जिन्होंने अपने यहां जीएसडीपी बजट का 1.75 प्रतिशत से अधिक खर्च किया है। वहीं बिहार ने उच्च शिक्षा पर अपने जीएसडीपी का 2.17 प्रतिशत खर्च किया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि आंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य उच्च शिक्षा पर खर्च करने में फिसड्डी हैं।
माधव मेनन कमेटी की अनुशंसाएं नहीं हुईं लागू
राज्य में 15 परंपरागत विश्वविद्यालय है और 268 अंगीभूत महाविद्यालय हैं। मात्र 11 शोध संस्थान हैं। जबकि बिहार की आबादी 14 करोड़ है। अन्य राज्यों की आबादी की तुलना में बिहार में उच्च शिक्षण संस्थानों की भारी कमी है। इसे ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के निर्देश पर 2023 में प्रख्यात शिक्षाविद् प्रो..(डा.) माधव मेनन की कमेटी बनायी थी। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कई महत्वपूर्ण अनुशंसा की थी जिसे नौकरशाहों ने लागू ही नहीं होने दी। मसलन, हर जिले में एक विश्वविद्यालय, हर प्रखंड में एक डिग्री कालेज और बड़ी संख्या में नवाचार व शोध संस्थान की स्थापना की कमेटी ने अनुशंसा की थी।
पाठ्यक्रम को वैश्विक पैमाने के अनुरुप तैयार करना, सत्र एवं परीक्षा का समय से संचालन, शिक्षकों की नियुक्ति और यूनिवर्सिटी मैनेजमेंट सिस्टम को दुरुस्त करना भी अनुशंसा में शामिल था। पटना विश्वविद्यालय और नालन्दा खुला विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति व शिक्षाविद् डा. रासबिहारी सिंह ने बताया कि माधव मेनन कमेटी की सिफारिशों पर सरकार अमल करती तो आज बिहार में उच्च शिक्षा में बहुत कुछ बदलाव दिखता। वैश्विक पैमाने के तहत 50 हजार आबादी पर एक विश्वविद्यालय की स्थापना होनी चाहिए, जो बिहार में संभव नहीं है।
आइसीटी के उपयोग से अभी भी उच्च शिक्षण संस्थान दूर
हम नवाचार और प्रौद्योगिकी के युग में जी रहे हैं। किंतु, बिहार में अधिकांश उच्च एवं तकनीकी शिक्षण संस्थान सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (आइसीटी) उपकरणों के उपयोग से अभी भी दूर हैं। यूं तो आइसीटी के उपयोग को लेकर सभी संस्थान सक्रिय हैं, लेकिन जो काम दस साल पहले हो जाना चाहिए था, उसके बारे में खानापूर्ति हो रही है। इसकी नजर कोविड-19 के लाकडाउन के दौरान बिहार में उच्च एवं तकनीकी शिक्षण संस्थानों में तकनीकी के साथ तालमेल बिठाने और छात्र-छात्राओं को आनलाइन पढ़ाई जारी कराने में हुई बाधा है।
इससे छह साल बाद भी उच्च शिक्षण संस्थानों ने सीख नहीं ली। जबकि देश के अन्य प्रदेशों में 2020 से ही उच्च व तकनीकी शिक्षा में आइसीटी के उपकरणों का उपयोग किया जा रहा है। इसलिए उन प्रदेशों में उच्च शिक्षा में आइसीटी के उपयोग ने शिक्षा प्रदान करने और उस तक पहुंचने के तरीके में महत्वपूर्ण बदलाव दिख रहे हैं और बिहार के मेधावी और आर्थिक रूप से सक्षम विद्यार्थी उन प्रदेशों में उच्च व तकनीकी शिक्षा पाने के लिए पलायन कर रहे हैं। आइसीटी वह संसाधन है जो उच्च शिक्षा संस्थानों में शिक्षण, अधिगम, अनुसंधान और प्रशासन को बेहतर बनाने के लिए अनेक अवसर प्रदान करता है।
आइसीटी के मोर्चे पर संस्थानों की स्थिति
- राज्य में सभी संस्थानों और छात्र-छात्राओं के पास आइसीटी संसाधनों, जैसे-हाई-स्पीड इंटरनेट, कंप्यूटर, डिजिटल लाइब्रेरी, शिक्षण हेतु ई-कंटेंट और अन्य उपकरणों की कमी है। जाहिर है, यह डिजिटल विभाजन सीखने के परिणामों में असमानताएं पैदा कर रहा है और राज्य में उच्च व तकनीकी शिक्षा पा रहे छात्र-छात्राओं को नवाचार और प्रौद्योगिकी के लाभ से वंचित होना पड़ रहा है।
- अधिकांश उच्च व तकनीकी शिक्षण संस्थानों में बुनियादी ढांचे और इंटरनेट कनेक्टिविटी का अभाव है। यही वजह है कि इसकी कमी से आनलाइन शिक्षण प्लेटफार्मों और संसाधनों के प्रभावी कार्यान्वयन नहीं हो पा रहा है।
- अधिकांश शिक्षक शिक्षण के लिए आइसीटी उपकरणों के उपयोग में पारंगत नहीं हैं। आइसीटी उपकरणों का इस्तेमाल सुनिश्चित करने के लिए शिक्षकों को पर्याप्त प्रशिक्षण की आवश्यकता है।
- विद्यार्थियों को आनलाइन शिक्षा में बदलाव के साथ संघर्ष करना पड़ रहा है, क्योंकि इसके लिए आत्म-अनुशासन, समय प्रबंधन और तकनीकी कौशल की आवश्यकता होती है, जो अधिकांश विद्यार्थियों के पास नहीं हैं। इसके लिए वहीं शिक्षण संस्थान जिम्मेवार हैं जहां पर विद्यार्थियों को आनलाइन शिक्षा पाने के लिए तकनीकी व प्रशिक्षित शिक्षक उपलब्ध नहीं हैं।यही वजह है कि ज्यादातर उच्च व तकनीकी संस्थानों में अभी भी आनलाइन कोर्स प्रारंभ नहीं कर पा रहे हैं। सबसे चिंता की बात यह है कि जैसे-जैसे शिक्षा डिजिटल प्लेटकार्म पर अधिक निर्भरता बढ़ती जा रही है, डेटा गोपनीयता और साइबर सुरक्षा समेत संवेदनशील जानकारी की सुरक्षा के बारे में चिंताएं बढ़ती जा रही हैं।
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