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    लड़कों से पहले मैच्‍योर हो रहीं लड़कि‍यां; IGIMS के सीनियर डॉक्‍टर ने बताया कारण, बोले-एक दिन का 'उपवास' रखें

    By Nalini Ranjan Edited By: Vyas Chandra
    Updated: Mon, 15 Dec 2025 07:31 PM (IST)

    पटना के IGIMS के सीनियर डॉक्टर ने लड़कियों में लड़कों से पहले बढ़ती परिपक्वता पर चिंता जताई है। उन्होंने इसके कारणों में मोबाइल को बड़ा जिम्मेदार ठहरा ...और पढ़ें

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    दैनिक जागरण कार्यालय में आयोजित राज्यस्तरीय जागरण विमर्श में, नई पीढ़ी पर रील्स का प्रभाव पर चर्चा करते वक्ता डॉ. राजेश कुमार (विभागाध्यक्ष, मनोरोग विभाग) एवं आइजीआइएमएस पटना की मनोचिकित्सक डाॅ. प्रियंका। जागरण

    डॉ. नलिनी रंजन, पटना। वर्तमान समय में नई पीढ़ी या टीन एजर्स के लिए बगैर मोबाइल रहना कठिन हो गया है। यह चिंता का विषय है। 11 से 18 वर्ष की उम्र ब्रेन विकसित करने का समय होता है। ब्रेन का अलग-अलग पार्ट होता है जो हमें अलग-अलग अनुभव देता है। इसमें लेफ्ट पार्ट सोचने तो राइट पार्ट इमोशनल चीजों को देखता है।

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    रिस्क पार्ट हमें रोकता है, एक पार्ट ऐसा भी है जो केवल आगे बढ़ने की बात कहता है। इसमें एक्सकेलेटर है, ब्रेक नहीं। बगैर सोचे समझे आगे बढ़ा देता है। इन चीजों में बैलेंस बनाना जरूरी होता है।

    यह बातें सोमवार को दैनिक जागरण के राज्यस्तरीय जागरण विमर्श को संबोधित करते हुए इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंस (IGIMS) के मनोचिकित्सा विभाग के अध्यक्ष प्रो. राजेश कुमार ने कहीं।

    नई पीढ़ी पर रील्स का प्रभाव विषय विमर्श को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में लड़कियां तो लड़कों से पहले मैच्योर हो जा रही है। लड़कियां 21 में तो लड़के 25 वर्ष में परिपक्‍व हो रहे है।

    कहा कि आज के समय में शिक्षक व पैरेंटिंग सिस्टम भी कहीं ना कहीं दोषी है। अभी हम केवल बच्चों के जिद में हां में हां मिला रहे है, जबकि पहले जिद के बाद भी अभिभावकों की ना ही होती थी।

    40 प्रतिशत बच्चे मोबाइल एडिक्शन के शिकार

    आइजीआइएमएस की क्लीनिकल साइक्लोजिस्ट डाॅ. प्रियंका ने कहा कि मोबाइल एडिक्शन में एक्सपोजर ज्यादा है। ऐसे में यह सामान्य बात है। शोध के अनुसार एडिक्शन के कारण बच्चे सामाजिक, मानसिक, शैक्षिक स्तर पर भी कमजोर हो रहे है।

    कहा कि आज से 25-30 वर्ष पहले मोबाइल का उतना प्रचलन नहीं था। अब इस तरह की परेशानी नहीं थी। अब मोबाइल के कारण एंजाइटी, डिप्रेशन, रिलेशनशिप पर भी नाकारात्मक प्रभाव दिख रहे है। वर्तमान में 16 प्रतिशत लोग मोबाइल एडिक्शन के शिकार है, जबकि बच्चों की बात करें तो यह 40 प्रतिशत के आसपास है।

    ऐसे दिखने लगते है लक्षण

    वर्तमान समय में यदि आपके पास मोबाइल नहीं हो तो कितने असहज महसूस होते है, यह देख लिजिए। हवाई यात्रा हो, ट्रेन हो या कहीं फोन छूट जाएं या डिस्चार्ज हो जाएं तो आप कितना पैनिक होते है इससे अंदाजा लगा सकते है।

    यदि इसके विड्राअल लक्षण की बात करें तो बच्चों की क्या कहें बड़ों में भी यह दिख जाते है। पागलों जैसी हड़कत, मारपीट, गाली-ग्लौच, बेचैनी, गुस्सा आना, नींद ना लगना, जल्द डिवाइस लेने की चाहत, कार्यों में मन नहीं लगने की समस्या होती है। ऐसा भी लगने लगता है कि हम कुछ मिस कर रहे है। इससे हम डिप्रेशन के भी शिकार हो जाते है।

    जब भी समय मिलता है, करने लगते है मोबाइल का उपयोग

    शादी-ब्याह या कहीं भी यदि बच्चों को ले जा रहे है, वह फोन में ही बिजी रहते है। एक तरह से सोशल आइसोलेशन बहुत देर तक पढ़ाई नहीं कर रहे है। ज्यादा मोबाइल के उपयोग के कारण रचनात्मक कार्य नहीं हो पाता है। ध्यान से सुनना, समझना, अनुपातिक चीजों का कार्य पूरा नहीं हो पा रहा है।

    क्षमता को करते है प्रभावित

    बताया कि असाइमेंट से लेकर लोग कई कार्यों को एआइ से कराते है। रात-रात भर मोबाइल देखने से स्लीप हार्मोन प्रभावित करते है। खाने-पीने का ध्यान नहीं रखना, याद नहीं कर पाने की स्थिति होना, सोंचने की शक्ति कम होना, बार-बार गूल सर्च पर जोर देना आदि की स्थिति पैदा हो जाती है।

    दो वर्ष तक शून्य तो पांच वर्ष में आधा घंटा कर सकते है उपयोग

    दो-तीन वर्ष के बच्चों को मोबाइल का उपयोग या एक्सपोर नहीं देना चाहिए। पांच वर्ष की अवस्था में अधिकतम आधा घंटा मोबाइल दे सकते है। इसके लिए सबसे पहले खुद बच्चों के सामने मोबाइल से दूरी बनाएं।

    इसमें बच्चों को ब्लेम करने से नहीं होगा। बच्चों के साथ खेल-कूद गतिविधि को बढ़ाई। उन्हें इनडोर खेल या अन्य गतिविधियों से जोड़े। उनमें खुद इनवाल्व हो।

    सप्ताह में एक दिन का रखें डिजिटल उपवास

    हम अपने स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए जैसे सप्ताह में एक दिन भोजन नहीं करते है, ठीक वैसे ही सप्ताह में एक दिन का डिजिटल उपवास रखें।

    हम इस तरह भी खुद को नियंत्रित कर सकते है कि बार-बार या हर नोटिफिकेशन पर फोन नहीं चेक करेंगे। हम केवल रिंग आने पर देंखेगे या दो-तीन घंटे पर एक बार देखकर रख देंगे। बच्चों को भी लाॅजिकल परिभाषा देकर मोबाइल से दूरी बनाने को कह सकते है। इसके लिए आपको दूरी बनानी होगी।