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    बिहार की दो माताओं के सपनों को लगे पंख, एक कॉलेज चली पढ़ने बिटिया के संग ...कहानी जान आप कह उठेंगे 'वाह'

    By Amit AlokEdited By:
    Updated: Thu, 28 Jan 2021 09:34 AM (IST)

    पटना की एक मां ने पढ़ाई छूटने के 22 साल बाद अब 40 साल की उम्र में बेटी के साथ कॉलेज में एडमिशन लिया है। एक अन्‍य महिला ने शादी के 14 साल बाद फिर पढ़ाई ...और पढ़ें

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    रआठ साल की बेटी उन्नति के साथ बैठकर पढ़ाई करती रश्मि। तस्‍वीर: जागरण।

    पटना, अंकिता भारद्वाज। सपने देखने की कोई उम्र नहीं होती है, लेकिन उन्‍हें पूरा करने की मन में ताकत होनी चाहिए। अपने सपनों को पूरा करने के लिए पटना के गोला रोड की रहने वाली एक महिला ने 22 साल तक इंतजार किया। सुलेखा कुमारी को अपनी छूट चुकी पढ़ाई पूरी करनी थी। उन्‍होंने अपनी बेटी श्रेया के साथ मगध महिला कॉलेज (Magadh Mahila College) में नामांकन लिया है। एक तरफ जहां बेटी जीव विज्ञान में बीएससी पढ़ाई कर रही है तो वहीं मां खुद हिंदी विभाग में बीए की पढ़ाई कर रही है। इसी तरह पटना की रश्मि झा ने 35 साल की उम्र में पटना वीमेंस कॉलेज में एडमिशन लिया है।

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    35 साल की उम्र में लिया कॉलेज में एडमिशन

    रश्मि झा को बचपन से ही फैशन डिजाइनिंग का शौक था, लेकिन शादी और पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण वे अपने सपनों पूरा नहीं कर पा रहीं थीं। शादी के 14 साल बाद 35 साल की उम्र में जब उन्होंने अपनी इच्छा परिवार वालों को बताई तो पति उत्कर्ष ने उनका नामांकन पटना वीमेंस कॉलेज में करवा दिया।

    बेटी के साथ बैठकर करती है पढ़ाई

    रश्मि बताती हैं कि वे अपनी आठ साल की बेटी उन्नति के साथ बैठकर पढ़ाई करती हैं। रश्मि के अनुसार लॉकडाउन के दौरान दोनों मां-बेटी साथ में ऑनलाइन पढ़ाई करती थीं। वहीं पति भी दोनों की पूरी मदद करते थे। वे बताती हैं कि शुरुआत में थोड़ी परेशानी हो रही थी , लेकिन परिवार वालों का साथ मिला तो सब चीज ठीक हो गई।

    कॉलेज के दोस्तों का मिलता पूरा सहयोग

    रश्मि बताती हैं कि कॉलेज में उनके साथ पढ़ाई करने वाली सारी लड़कियां उम्र में बहुत छोटी हैं। शुरु में उनके साथ सामंजस्य बैठाने में दिक्कत हो रही थी, लेकिन धीरे-धीरे सब के साथ दोस्ती हो गई। अब लड़कियां दोस्त हो गई हैं और साथ में पढ़ाई से लेकर प्रोजेक्ट बनाने तक में मदद करती हैं।

    40 साल की उम्र में शुरू की फिर से पढ़ाई

    उधर, सुलेखा कुमारी ने अपनी शादी के 25 साल बाद बच्चों की जिम्मेदारियों को पूरा करते हुए 40 साल की उम्र में अधूरी छूटी पढ़ाई को पूरी करने की ठानी। उन्‍होंने 2019 में मगध महिला कॉलेज के हिंदी विभाग में बीए करने के लिए नामांकन करवाया। वे बताती हैं कि इंटरमीडिएट करने के बाद ही साल 1994 में उनकी शादी सुबोध कुमार सुमन से वैशाली में हुई थी। उच्‍च शिक्षा का सपना पहले से था, लेकिन परिवार की जिम्मेदारियों के कारण इसे पूरा नहीं कर पाईं। हां, किताब-कॉपी से नाता कायम रहा। जब भी मौका मिलता था, बच्चों की किताबों को लेकर पढ़ाने के लिए बैठ जातीं थीं।

    बच्चों ने करवाया कॉलेज में एडमिशन

    सुलेखा बताती हैं कि शुरुआत में कई बार उन्होंने कॉलेज में नामांकन करवा कर पढ़ाई करने की कोशिश की, लेकिन कभी भी सफलता नहीं मिलती थी। शादी के बाद 1996 में बेटे सुमित का जन्म हुआ तो वहीं 1998 में बेटी श्रेया का। पति फौज में सूबेदार थे, इसलिए घर और बच्चों दोनों की जिम्मेदारी सुलेखा ने अपने कंधों पर ले ली थी। इस कारण पढ़ाई का समय नहीं मिला। सुलेखा के बच्चों को उनके सपने के बारे में पता था, इसलिए उन दोनों ने मिलकर मां का एडमिशन पटना विश्वविद्यालय के रेगुलर कोर्स में करा दिया।

    बेटे-बेटी ने करवाई परीक्षा की तैयारी

    सुलेखा का कहना है कि कॉलेज में नामांकन से लेकर परीक्षा तक की तैयारी बेटी और बेटे ने साथ मिलकर करवाई है। बेटा जहां नेट से सवाल निकल उनको सॉल्व करवाने में मदद करता था, वहीं बेटी रात-रात भर चाय-कॉफी देकर पढ़ाई में साथ देती थी।

    कालेज जाने में कई बार हुई परेशानी

    सुलेखा बताती हैं कि शुरुआत में जब वे परीक्षा देने या नामांकन के समय कॉलेज जातीं थीं तो गेट पर ही रोक दिया जाता था कि अभिभावकों को अंदर जाने की अनुमति नहीं है। जब वे बताती थीं कि परीक्षा देने या नामांकन करवाने के लिए आई हैं तो पहले तो लोग आश्चर्य से देखते थे, फिर अंदर जाने देते थे।

    मां को लंच देकर कॉलेज भेजती बेटी

    बेटी श्रेया, जो खुद मगध महिला कॉलेज में जीव विज्ञान में बीएससी सेकेंड इयर की छात्रा है, बताती है कि वह मां को पहले कॉलेज जाने के लिए लंच देती है, उनके बैग को तैयार करती है, फिर खुद रेडी होने जाती है। श्रेया का कहना हैं कि शुरू में जैसे मां उसे स्कूल भेजती थी, वैसे ही अब वह मां को कॉलेज भेज रही है।

    प्रिंसिपल को मां के आत्‍मविश्‍वास पर गर्व

    कॉलेज की प्रिंसिपल प्रो. शशि शर्मा बताती हैं कि जब उन्हें पता चला की 40 साल की एक महिला ने नामंकन करवाया है तो पहले तो आश्चर्य हुआ, लेकिन फिर अगले की पल उनके साहस और आत्मविश्वास पर गर्व भी हुआ।