डॉक्टरों की हड़ताल का स्थायी समाधान ज़रूरी, वरना मरीज होते रहेंगे शिकार
पटना में डॉक्टरों की हड़ताल से मरीजों की परेशानी बढ़ जाती है, खासकर गंभीर रोगियों के लिए स्थिति और भी नाजुक हो जाती है। हाल ही में, पटना मेडिकल कॉलेज ...और पढ़ें

डॉक्टरों की हड़ताल
राज्य ब्यूरो, पटना। हड़ताल किसी भी क्षेत्र में हो, इसका सबसे अधिक प्रभाव आम जनता पर पड़ता है। लेकिन जब बात डॉक्टरों की हड़ताल की हो, तब स्थिति और गंभीर हो जाती है, क्योंकि इसका सीधा असर उन मरीजों पर पड़ता है जो अपनी सामान्य दिनचर्या के लिए भी दूसरों पर निर्भर रहते हैं।
अस्पतालों में भर्ती ऐसे अनेक मरीज होते हैं जिन्हें अत्यधिक देखभाल की जरूरत होती है, जिनमें जीवन रक्षक उपकरणों पर निर्भर मरीज भी शामिल हैं।
ऐसे में अगर उपचार में देरी होती है तो उनकी जान पर बन आती है। कई बार जानें चली भी जाती हैं।
इसी संदर्भ में तीन दिन पहले पटना मेडिकल कॉलेज के जूनियर डॉक्टरों की अचानक हड़ताल ने एक बार फिर इस मुद्दे को सुर्खियों में ला दिया।
एक मरीज की मृत्यु के बाद उसके स्वजनों और जूनियर डॉक्टरों के बीच कहासुनी बढ़कर मारपीट में तब्दील हो गई। डॉक्टरों के साथ हुई मारपीट किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है और इसकी निंदा की जानी चाहिए।
लेकिन सवाल यह भी है कि क्या इस आधार पर अचानक हड़ताल कर देना उचित है, जिसका खामियाजा निर्दोष और गंभीर हालत में भर्ती मरीजों को उठाना पड़े?
जूनियर डॉक्टरों के साथ मारपीट की घटनाएं नई नहीं हैं। वर्षों से ऐसी घटनाएं होती रही हैं और हर बार इसका परिणाम हड़ताल के रूप में सामने आता है।
प्रशासन, अस्पताल प्रबंधन और सरकार द्वारा कई प्रयास किए जाने के बावजूद इस समस्या का स्थायी समाधान अब तक नहीं निकल पाया है।
सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि क्या इसलिए समाधान नहीं निकलता क्योंकि हड़ताल से वे लोग सीधे प्रभावित नहीं होते जिन्हें इस समस्या का निदान करना है?
जब तक संबंधित अधिकारी, स्वास्थ्य विभाग और सरकार इस समस्या को प्राथमिकता के साथ नहीं देखेंगे, तब तक ऐसी घटनाएं और हड़तालें आती रहेंगी और मरीज इसकी कीमत चुकाते रहेंगे।
आवश्यक है कि सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत किया जाए, अस्पतालों में पर्याप्त पुलिस बल और सुरक्षा तंत्र सुनिश्चित किया जाए, ताकि डॉक्टर निर्भीक होकर अपना कार्य कर सकें।
साथ ही, हड़ताल से पहले वैकल्पिक व्यवस्था करनी चाहिए ताकि गंभीर मरीजों की जान खतरे में न पड़े।
डॉक्टरों की सुरक्षा और मरीजों की जीवन रक्षा,दोनों ही ज़रूरी हैं। अब समय है कि इस समस्या का स्थायी समाधान खोजा जाए, ताकि हड़तालों का दुष्चक्र खत्म हो सके और इलाज की प्रक्रिया निर्बाध चलती रहे।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।