अब डेंगू काटने पर घबराने की जरूरत नहीं, तुरंत हो जाएगी पहचान; स्वास्थ्य विभाग ने एलाइजा टेस्ट किया अनिवार्य
पटना में डेंगू के संक्रमण को देखते हुए स्वास्थ्य विभाग ने नई पीढ़ी का रैपिड डायग्नोस्टिक टेस्ट (आरडीटी) कॉम्बो किट उपलब्ध कराया है। यह किट एनएस-1 एंटीजन और आइजीएम-आइजीजी एंटीबॉडी की एक साथ जांच करेगी जिससे शुरुआती और सेकेंडरी डेंगू की पहचान हो सकेगी। विशेषज्ञों के अनुसार कॉम्बो किट इलाज तय करने में मददगार होगी हालांकि एलाइजा टेस्ट अनिवार्य रहेगा।

जागरण संवाददाता, पटना। सूबे में डेंगू के संक्रमण के लिए राजधानी पटना सबसे ज्यादा संवेदनशील है। हर साल औसतन छह से सात हजार डेंगू मरीजों की पुष्टि एलाइजा से होती है, जबकि सामान्य लक्षण वाले अधिकतर लोग रैपिड एनएस-1 किट से जांच कर इलाज करा लेते हैं।
इस बार स्वास्थ्य विभाग ने डेंगू की जांच को और प्रभावी बनाने के लिए नई पीढ़ी का रैपिड डायग्नोस्टिक टेस्ट (आरडीटी) डेंगू कॉम्बो किट उपलब्ध कराया है। यह कॉम्बो किट भारत सरकार द्वारा डेंगू की गोल्डन टेस्ट एलाइजा विधि की तर्ज पर तीनों महत्वपूर्ण संकेतक एनएस-1 एंटीजन और आइजीएम-आइजीजी एंटीबॉडी की एक साथ जांच करेगी।
अब तक जांच के लिए कमोबेश सस्ती एनएस-1 एंटीजन किट का इस्तेमाल होता था, जो शुरुआती एक से पांच दिनों के संक्रमण की ही पहचान कर पाती थी। कॉम्बो किट से न सिर्फ शुरुआती संक्रमण बल्कि सेकेंडरी डेंगू (दूसरा संक्रमण) की भी पहचान हो सकेगी, जो अपेक्षाकृत ज्यादा खतरनाक होता है।
विशेषज्ञों के अनुसार, कॉम्बो किट इलाज तय करने, प्लेटलेट गिरने की संभावना और अनावश्यक अस्पताल में भर्ती होने से रोकने में मददगार साबित होगी। सिविल सर्जन डॉ. अविनाश कुमार सिंह ने बताया कि डेंगू जांच के लिए पांच हजार से अधिक कॉम्बो किट उपलब्ध कराये जायेंगे।
पुष्टि के लिए एलाइजा जांच जरूरी
सिविल सर्जन ने बताया कि शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को 200-200 डेंगू कॉम्बो किट तथा प्रखंड आधारित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को 150-150 डेंगू कॉम्बो किट उपलब्ध कराये जा रहे हैं। इसके अलावा मुख्यालय में करीब दो हजार किट होंगे, जिनका उपयोग हॉटस्पॉट घोषित क्षेत्रों में सघन जांच अभियान में किया जायेगा।
चिकित्सा प्रभारियों को निर्देश दिया गया है कि डेंगू के मामले बढ़ने के बाद बुखार से पीड़ित हर मरीज की जांच करायी जाये।
जांच रिपोर्ट निगेटिव आने पर भी बुखार व अन्य लक्षणों के आधार पर दवा दी जाये तथा ब्रूफेन जैसी दवा मरीजों को नहीं दी जाये। बुखार से पीड़ित हर मरीज की निगरानी डेंगू मानकर की जायेगी, ताकि प्लेटलेट्स आदि की निगरानी की जा सके। एक बार खून लेने के बाद तीनों मार्कर की जांच:
कॉम्बो किट एक ही सैंपल (खून) से डेंगू के तीनों मुख्य मार्कर की जांच करती है। एनएस-1 एंटीजन (गैर-संरचनात्मक प्रोटीन 1) संक्रमण के पहले 1 से 5 दिनों में पाया जाता है। आईजीएम एंटीबॉडी (इम्यूनोग्लोबुलिन एम) यह संक्रमण के 4 से 5 दिनों बाद बनता है और मौजूदा संक्रमण का संकेत देता है।
आईजी-जी एंटीबॉडी (इम्यूनोग्लोबुलिन-जी) यह पुराने या दोबारा संक्रमण की पुष्टि करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार डेंगू के सेकेंडरी मामलों में प्लेटलेट काउंट गिरने और आंतरिक रक्तस्राव की संभावना दोगुनी हो जाती है।
हालांकि, डेंगू कॉम्बो किट के बावजूद पुष्टि के लिए एलिसा टेस्ट करवाना जरूरी होगा लेकिन इससे मरीज का इलाज तुरंत शुरू हो जाएगा।
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