मुस्लिम जातियों को अनुसूचित जाति की लिस्ट में शामिल करने की मांग, बालकृष्णन आयोग को सौंपा ज्ञापन
पटना में शुक्रवार को मुस्लिम संगठनों ने बालकृष्णन आयोग को कुछ मुस्लिम जातियों को अनुसूचित जाति की सूची में डालने की मांग की है। आयोग की सुनवाई पटना के ज्ञान भवन में चल रही है। पसमांदा मुस्लिम महाज के अध्यक्ष एवं पूर्व सांसद अली अनवर अंसारी ने कहा कि मुसलमानों में करीब एक दर्जन जातियों की हालत अनुसूचित जातियों से भी खराब है।

राज्य ब्यूरो, पटना। कई मुस्लिम संगठनों ने शुक्रवार को न्यायमूर्ति केजी बालकृष्णन आयोग को ज्ञापन देकर अछूत की श्रेणी में रह रहे मुसलमानों को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने की मांग की। आयोग की सुनवाई पटना के ज्ञान भवन में चल रही है।
पसमांदा मुस्लिम महाज के अध्यक्ष एवं पूर्व सांसद अली अनवर अंसारी ने ज्ञापन में कहा कि न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्र आयोग ने अनुच्छेद 341 पर लगे धार्मिक प्रतिबंध का विरोध करते हुए अन्य धर्म के दलितों को भी इसमें शामिल करने की सिफारिश की थी।
'एक दर्जन जातियों की हालत अनुसूचित जातियों से खराब'
सच्चर कमेटी ने भी ऐसी ही सिफारिश की है। मुसलमानों में कई ऐसी जातियां हैं, जिनके साथ दूसरे मुसलमान भी छुआछूत करते हैं। मुख्तार अंसारी ने कहा कि मुसलमानों में करीब एक दर्जन जातियों की हालत अनुसूचित जातियों से भी खराब है।
बैकवर्ड मुस्लिम मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कमाल अशरफ ने ज्ञापन में दलित मुसलमानों को भी अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने की मांग की। उन्होंने कहा कि 2022 में केन्द्र सरकार ने इस आयोग का गठन दलित मुसलमानों की पहचान तथा स्थिति जानने के लिए किया। मुसलमानों की कई जातियों का पेशा, सामाजिक और शैक्षणिक स्तर अनुसूचित जातियों की तरह है, लेकिन धार्मिक प्रतिबंध के कारण उनका नाम अनुसूचित जाति की सूची में शामिल नहीं हो पाया है।
सूची में बदलाव संभव नहीं:
राम सेवा स्तम्भ बिहार की ओर से आयोग को दिए गए ज्ञापन में कहा गया है कि अनुसूचित जाति की सूची में कोई बदलाव संभव नहीं है।
संगठन के पदधारक हरिकेश्वर राम ने कहा कि जहां तक 1990 मे नव बौद्धों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की बात है, वह उन्हीं नव बौद्धों को दिया गया है जो प्रेसिडेंसियल ऑर्डर के द्वारा 1950 में ही अनुसूचित जाति के रूप शामिल थे, लेकिन बाद के दिनों मे बौद्ध धर्म अपनाने के कारण अनुसूचित जाति का अधिकार छीन लिया गया था। मुस्लिम धर्म अपनाने वालों की अस्पृश्यता तो सौ डेढ सौ साल पहले ही समाप्त हो चुकी है।
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