बिहार में है चीन की दीवार से भी पुरानी ये धरोहर, ढाई हजार साल की राजगीर की साइक्लोपियन वाल
Cyclopean Wall in Bihar चीन की दीवार से भी पुरानी एक दीवार बिहार में है। करीब ढाई हजार साल पुरानी इस दीवार में पत्थरों की जोड़ाई इतनी मजबूत है कि आज भी यह जरा नहीं सरकती है। मुख्यमंत्री इसे विश्व धरोहर में शामिल कराना चाहते हैं।
राजगीर (नालंदा), संवाद सहयोगी। क्या आपको पता है कि चीन की दीवार से भी पुरानी करीब 40 किलोमीटर लंबी और काफी मजबूत एक दीवार बिहार में भी है। राजगीर की साइक्लोपियन वाल दुनिया की नजरों से ओझल ढाई हजार पुरानी इंजीनियरिंग का नायाब नमूना है। यह दीवार राजगीर की पंच पहाडिय़ों को जोड़ती है। नगर की सुरक्षा के लिए इसका निर्माण किया गया था। इसका रख- रखाव आर्किलाजिकल सर्वे आफ इंडिया (एएसआई) करती है। इसे राष्ट्रीय धरोहर का दर्जा प्राप्त है। बिहार आर्किलाजिकल विभाग ने 1987 में एएसआई से इसे विश्व धरोहर की सूची में शामिल करने का आग्रह किया है। इसके बाद कई रिमाइंडर भी भेजे गए। परंतु अब तक प्रस्ताव विचाराधीन है।
मान्यताओं में दीवार जरासंध ने पूरी कराई
मान्यता है इस महान दीवार की नींव पूर्व महाभारत काल में बृहद्रथपुरी (वर्तमान राजगीर) के राजा बृहद्रथ ने राज्य की सुरक्षा के लिए रखी थी। बाद में उनके पुत्र सम्राट जरासंध ने इसे पूरा किया। अन्य इतिहासकारों के अनुसार यह तीन से दो ई.पू. में मौर्यकालीन इतिहास का गवाह रहा है। पाली ग्रंथों में भी इस सुरक्षा दीवार का उल्लेख है।
चीन की दीवार से भी पुराना
चीन की दीवार दुनिया के सात अजूबों में शामिल है। इसेअंतरिक्ष से भी देखा जा सकता है। राजगीर का साइक्लोपियन वाल इससे भी पुराना है। इसे भी नगर की सुरक्षा के लिहाज से बनाया गया था। इसे दुनिया की सबसे प्राचीन दीवार भी मानते हैैं। यह विश्व धरोहर की सारी अहर्ता पूरी करता है। इस संबंध में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी एएसआइ के माध्यम से कई बार यूनेस्को का ध्यान आकृष्ट करा चुके हैैं। एएसआइ व राज्य सरकार स्तर से कई बार पत्राचार किए गए हैैं। इसके प्रमाणिक इतिहास व बनावट का उल्लेख कर यूनेस्को को प्रस्ताव भेजा गया है।
राजगीर की पंच पहाड़ी को जोड़ती है दीवार, 40 किमी है विस्तार
साइक्लोपियन वाल का विस्तार नालंदा, गया व नवादा जिले की सीमा पर वनगंगा के दोनों ओर सोनागिरि व उदयगिरी पर्वत पर 40 किलोमीटर तक है। गया की ओर से राजगीर में प्रवेश करने के पहले काफी दूर से ही यह दीवार राजगीर के सुरक्षा प्रहरी के रूप मेें तैनात नजर आता है। रत्नागिरी, वैभारगिरी व विपुलांचलगिरी तक इसके अवशेष दिखते हैैं। इसकी ऊंचाई चार मीटर तथा चौड़ाई लगभग 22 फीट है।
दीवार के बीच में थे कई बड़े और छोटे गेट
40 किमी दायरे में 32 विशाल तथा 64 छोटे प्रवेश द्वार थे। इनके जरिए ही शहर में प्रवेश किया जा सकता था। दीवार के हर 50 मीटर पर एक विशेष सुरक्षा चौकी तथा हर पांच गज पर सशस्त्र सैनिक तैनात रहा करते थे। यह दीवार भारी पत्थरों से सूखी चिनाई पर बनी हुई है। जमावट ऐसी है, कि आज तक टस से मस नहीं हुई हैै। वर्तमान में यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के संरक्षण में है। एएसआई के मुताबिक यह दीवार 300 बीसी में निर्मित है।
पुरातत्व विभाग, राजगीर के प्रभारी संरक्षण सहायक त्रिलोकीनाथ ने बताया कि साइक्लोपियन वाल के संरक्षण पर विशेष ध्यान रखा जा रहा है, ताकि इसे बरकरार रखा जा सके। पर्यटकों से अपील है कि पहाड़ों पर घुमने के दौरान इसकी सुरक्षा व साफ-सफाई का ध्यान रखें।