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बिहारी बाबू शत्रुघ्न सिन्हा पर बड़ा दांव लगा सकती है कांग्रेस, एक तीर से कई कई निशाने साधने की रणनीति

बिहार कांग्रेस में बड़ी उलटफेर की कवायद शुरू हो गई है। विधायकों विधान पार्षदों व पार्टी नेताओं से मशविरे के बाद आलाकमान बिहार कांग्रेस की कमान पार्टी नेता व फिल्म अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा को सौंपने की तैयारी कर रही है।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Mon, 12 Jul 2021 06:05 AM (IST)Updated: Mon, 12 Jul 2021 06:05 AM (IST)
बिहारी बाबू शत्रुघ्न सिन्हा पर बड़ा दांव लगा सकती है कांग्रेस, एक तीर से कई कई निशाने साधने की रणनीति
शतुघ्न सिन्हा और कांग्रेस नेता राहुल गांधी। जागरण आर्काइव।

सुनील राज, पटना : बिहार कांग्रेस में बड़ी उलटफेर की कवायद शुरू हो गई है। पार्टी 2024 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए अपनी रणनीति को अंतिम रूप दे रही है। दलित-पिछड़ा और मुस्लिम वोट पर केंद्रित बिहार की राजनीति में कांग्रेस एक नया चैप्टर लिखने जा रही है। बिहार कांग्रेस प्रभारी दलित नेता भक्त चरण दास की रिपोर्ट और 2020 का चुनाव जीतने वाले विधायकों, विधान पार्षदों व पार्टी नेताओं से मशविरे के बाद आलाकमान बिहार कांग्रेस की कमान पार्टी नेता व फिल्म अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा को सौंपने की तैयारी कर रही है। 

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प्रदेश अध्यक्ष डा. मदन मोहन झा का कार्यकाल सितंबर में समाप्त होगा। कयास लगाए जा रहे थे कि झा का उत्तराधिकारी कोई अनुसूचित जाति का या मुस्लिम होगा। किसी सवर्ण को भी बिहार की कमान देने के कयास लगाए जा रहे थे। अध्यक्ष पद की रेस में जिन नेताओं के नाम प्रमुखता से लिए जा रहे थे, उनमें दलित नेताओं में राजेश कुमार, मुस्लिम में तारिक अनवर, जबकि सवर्ण नेताओं में अखिलेश प्रसाद सिंह और अजीत शर्मा के नाम थे। पार्टी नेताओं की दिल्ली में राहुल गांधी के साथ हुई मुलाकात और नेताओं का पक्ष जाने के बाद राहुल और बिहार प्रभारी की भी एकांत में एक राउंड बातचीत हुई। सूत्रों की मानेें तो उसी बैठक में पार्टी प्रभारी ने प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए शत्रुघ्न सिन्हा के नाम का प्रस्ताव आलाकमान को दिया गया। आलाकमान भी प्रभारी के प्रस्ताव से सहमत है। 

बिहार में अपना भविष्य भी देख रही पार्टी

शत्रुघ्न के सहारे कांग्रेस बिहार में अपना भविष्य भी देख रही है। आलाकमान भी इस बात से सहमत है कि बिहार की सत्ता से कांग्रेस के बाहर होने के बाद फिर क्षेत्रीय दलों के उभार के साथ कायस्थ हाशिये पर चले गए। क्षेत्रीय दलों ने उन्हेंं उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया। अलबत्ता भाजपा इसमें अपवाद रही, जिसने कायस्थों को थोड़ा बहुत मान-सम्मान दिया। इससे पहले कांग्रेस ने कायस्थों को राजनीति में भरपूर मौके दिए। नतीजा 1952 में कायस्थ जाति के 40 विधायक चुनाव जीत सदन तक पहुंचे थे। समय के साथ कायस्थों का प्रतिनिधित्व राजनीति में घटता गया। 2010 में यह संख्या मात्र चार हो गई।

कायस्थों को अपने पक्ष में करने की तैयारी

हाल ही में नरेंद्र मोदी कैबिनेट के विस्तार में पटना साहिब के सांसद रविशंकर प्रसाद को मंत्रिमंडल से जिस तरह बाहर का रास्ता दिखाया गया, उसके बाद कांग्रेस यह देख रही है कि शत्रुघ्न को बिहार कांग्रेस की कमान देकर कायस्थों को अपने पक्ष में कर सकती है, पर कांग्रेस के लिए एक बड़ी समस्या शत्रुघ्न का फुल टाइम राजनेता न होना है। शत्रुघ्न अपने मन के हिसाब से राजनीति करते है, जो परेशानी का सबब बन सकता है। अध्यक्ष बनने के बाद उन्हें बिहार में कम से कम 15 दिन बिताने होंगे। पार्टी नेताओं-कार्यकर्ताओं को समय देना होगा, लेकिन इन खामियों के बीच सार्थक बात यह है कि कांग्रेस में शत्रुघ्न की आवाज तो सुनी ही जाएगी, साथ ही सहयोगी दल भी उन्हेंं नजरअंदाज नहीं कर सकेंगे।


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