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    बेवजह नहीं नीतीश की चिंता, देश के 50 में से बिहार के 14 जिलों में जलवायु परिवर्तन का खराब असर

    By Akshay PandeyEdited By:
    Updated: Sat, 22 May 2021 05:38 PM (IST)

    जलवायु परिवर्तन के खराब असर को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की आशंका बेवजह नहीं है। हाल के एक अध्ययन में बताया गया है कि राज्य के 14 जिले जलवायु परिवर्तन के बुरे परिणाम को झेल रहेे हैं। -

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    बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार। जागरण आर्काइव। -

    राज्य ब्यूरो, पटना: जलवायु परिवर्तन के खराब असर को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की आशंका बेवजह नहीं है। हाल के एक अध्ययन में बताया गया है कि राज्य के 14 जिले जलवायु परिवर्तन के बुरे परिणाम को झेल रहे हैं। देश में ऐसे अति संवेदनशील जिलों की संख्या 50 है। संख्या के लिहाज से देखें तो बिहार की भागीदारी सबसे अधिक 28 फीसद की है। 

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    आइआइटी मंडी और गुवाहाटी ने किया अध्ययन

    यह अध्ययन आइआइटी मंडी और गुवाहाटी का है। अध्ययन में इंडियन इंस्टीटयूट आफ साइंस, बंगलुरू का भी सहयोग है। इसके मुताबिक राज्य के अति संवेदनशील जिले हैं:-अररिया, किशनगंज, पूर्णिया, जमुई, शिवहर, मधेपुरा, पूर्वी चंपारण, लखीसराय, सिवान, सीतामढ़ी, खगडिय़ा, गोपालगंज, मधुबनी एवं बक्सर। अध्ययन में बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाली तबाही को आम लोगों की गरीबी अधिक संवेदनशील बना देती है। यानी वे अपनी क्षति की भरपाई नहीं कर पाते हैं। आपदा के बाद जीने के लिए उन्हें जमा पूंजी गंवानी पड़ती है।

    नई तबाही: आकाशीय बिजली

    अध्ययन में बिहार के अधिकारियों के हवाले से हाल के दिनों की कुछ नई आपदाओं की भी चर्चा की गई है। आकाशीय बिजली से जन जीवन की होने वाली क्षति जलवायु परिवर्तन के खराब नतीजों में से एक है। अधिकारी के मुताबिक हाल के दिनों में आकाशीय बिजली का प्रकोप बढ़ा है। बाढ़ के चलते भूमि क्षरण का दायरा बढ़ा है। इससे जमीन की उत्पादकता कम होती है। राज्य के सभी 38 जिलों में हर साल आंधी से बर्बादी होती है। उत्तर बिहार बाढ़ तो दक्षिण बिहार सूखे से प्रभावित है। राज्य का 21 प्रतिशत भू भाग भूकंप के लिहाज से संवेदनशील है।  

    गरीबी कम करने के उपाय हों

    आइआइटी गुआहाटी की प्रो. अनामिका बरुआ की राय है कि जलवायु परिवर्तन के कुप्रभावों से बचने के लिए बिहार को बहुत अधिक कुछ करने की जरूरत नहीं है। राज्य सरकार अगर गरीबी कम करने, रोजी रोटी के साधन बढ़ाने, स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने और आम जन से जुड़ी संस्थाओं को मजबूत करने की दिशा में ठोस पहल करे तो कुप्रभावों को बहुत हद तक कम हो सकते हैं। राज्य के लोगों की रोजी रोटी प्राकृतिक साधनों पर टिकी हुई है। खासकर खेती और मछली पालन सहित रोजी रोटी के कई ऐसे साधन हैं जो पूरी तरह प्रकृति पर आश्रित हैं। उपाय यह है कि राज्य में गैर-कृषि क्षेत्र में भी रोजगार के अधिक अवसर सृजित किए जाएं। 

    जल जीवन हरियाली की चर्चा

    आइआइटी के अध्ययन में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बहु प्रचारित योजना जल जीवन हरियाली की भी चर्चा है। बताया गया है कि मुख्यमंत्री ने इसे दो अक्टूबर 2019 को शुरु किया। 24 हजार 524 करोड़ की इस योजना का लक्ष्य जलवायु परिवर्तन के बुरे परिणाम को कम, पारिस्थितिक संतुलन बनाना और जल संरक्षण करना है।

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