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    छठ पर्व: नहाय-खाय में कद्दू-भात का महत्व, क्यों खाते हैं व्रती यह सात्विक भोजन

    Updated: Fri, 24 Oct 2025 12:40 PM (IST)

    छठ पूजा के पहले दिन, नहाय-खाय में व्रती कद्दू-भात खाते हैं। यह सात्विक भोजन शरीर और मन को शुद्ध करता है। कद्दू फाइबर से भरपूर होता है, जो पाचन में मदद ...और पढ़ें

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    नहाय-खाय के साथ छठ महापर्व शुरू

    डिजिटल डेस्क, पटना। छठ पूजा का पहला दिन “नहाय-खाय” व्रतियों के लिए विशेष महत्व रखता है। इस दिन व्रती स्नान कर मन और शरीर की शुद्धि करते हैं और फिर सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं। इसी भोजन में सबसे प्रमुख है कद्दू-भात, जिसे पारंपरिक रूप से बनाया और खाया जाता है।

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    कद्दू-भात का धार्मिक महत्व

    कद्दू-भात केवल स्वादिष्ट व्यंजन नहीं, बल्कि छठ पर्व की आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत का प्रतीक है। कद्दू, जिसे धरती की देन माना जाता है, शुद्ध और हल्का होने के कारण व्रती के तन-मन को पवित्र करता है। साथ ही बता दें कि कद्दू में फाइबर भरपूर मात्रा में पाया जाता है जो पाचन के लिए बेहतर होता है। इसके साथ ही कद्दू में कम कैलोरी पाई जाती है। जिससे मौजूद फाइबर का सेवन करने से पेट लंबे समय तक भरा रहता है और व्रत के दौरान भूख का एहसास कम होता है। इसके अलावा कद्दू में एंटीऑक्सीडेंट्स और कैरोटीनॉयड होते हैं। इसमें पौटेशियम भरपूर मात्रा में पाया जाता है। इसके अलावा चावल में कार्बोहाइड्रेट होता है जो शरीर को एनर्जी देता है और व्रत के दौरान थकावट का एहसास नहीं होने देता है। 

    सात्विक भोजन और शरीर की तैयारी

    नहाय-खाय के दिन मसालेदार और तैलीय भोजन से परहेज़ किया जाता है। कद्दू-भात हल्का, सुपाच्य और ऊर्जा देने वाला होता है। यह शरीर को आगे आने वाले खरना और अर्घ्य के निर्जला व्रत के लिए तैयार करता है। पाचन को संतुलित रखने और शरीर को ऊर्जावान बनाने में यह भोजन मदद करता है।

    परंपरा और संस्कृति

    छठ व्रत में नहाय-खाय के साथ कद्दू-भात खाने की परंपरा सदियों पुरानी है। यह न सिर्फ आस्था और धार्मिकता का प्रतीक है, बल्कि व्रती के लिए मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि का भी साधन है। घरों में इसे चना दाल और साधारण चावल के साथ बनाया जाता है।

    समाज और पर्व की रौनक

    बिहार और उत्तर प्रदेश के अनेक हिस्सों में नहाय-खाय के दिन कद्दू-भात की खुशबू पूरे मोहल्लों में फैलती है। महिलाएं घरों की सफाई, पूजा की तैयारी और प्रसाद बनाने में व्यस्त रहती हैं। यह पर्व न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि सांस्कृतिक पहचान और समाजिक जुड़ाव का माध्यम भी है।

    छठ पर्व का यह पहला दिन व्रतियों को शरीर और मन की तैयारी कराता है और अगले तीन दिनों के कठिन व्रत की नींव रखता है। यही कारण है कि नहाय-खाय में कद्दू-भात खाने की परंपरा आज भी उतनी ही जीवंत है जितनी सदियों पहले थी।