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    Chhath 2020: मगध से आरंभ हुई थी छठ की परंपरा, साम्ब ने मगध साम्राज्य में बनवाए थे कई सूर्य मंदिर

    By Shubh NpathakEdited By:
    Updated: Wed, 18 Nov 2020 11:28 PM (IST)

    Chhath Puja 2020 छठ पूजा का केंद्र बिहार ही है। बिहार के लोग ही देश और विदेश के कई हिस्‍सों में छठ करते हैं। उनको देखकर कुछ अन्‍य प्रदेशों के लोग भी छ ...और पढ़ें

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    मग ब्राह्मणों की प्रेरणा से हुई थी छठ की शुरुआत। जागरण

    पटना [प्रभात रंजन]। भारतीय संस्कृति के प्रत्यक्ष देवता भगवान सूर्य की आराधना का महापर्व छठ पूजा का महत्व अनादि काल से चलता आ रहा है। प्रत्यक्ष देवता सूर्य एवं छठ पूजा के बारे में शास्त्रों के मुताबिक जब भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब को कुष्ठ रोग हुआ तो उन्होंने सूर्य देव की आराधना कर बीमारी से मुक्ति पाई थी। जिस जगह पर साम्ब ने सूर्य मंदिर के पास पूजा की थी वह मंदिर मगध साम्राज्य की प्राचीन राजधानी राजगृह के पास बडग़ांव में स्थित है। जहां राजा साम्ब ने लगभग दो माह तक पूरी निष्ठा के साथ भगवान सूर्य की उपासना कर निरोग काया प्राप्त किया था। मान्यता है कि सूर्य को अघ्र्य देने और चार दिनों तक छठ पूजन करने की परंपरा मगध से आरंभ हुई। राजा साम्ब ने देश भर में 12 स्थानों पर सूर्य मंदिर की स्थापना की थी, जिसमें मगध में भी कई सूर्य मंदिर की स्थापना उनके राज में की गई थी।

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    सूर्योपासना से जुड़ा है मगध का नामाकरण

    हजार वर्षों तक देश की राजनीति का केंद्र रहे मगध के नामाकरण का आधार भी सूर्योपासना से जुड़ा है। कहा जाता है कि सोन नदी के दक्षिण व छोटानागपुर पठार की दक्षिण-पश्चिम भूमि पर बसे मगध प्रदेश में 'मग' ब्राह्मणों का निवास था। जो सूर्य की उपासना करने वाले थे। साम्ब पुराण के अनुसार मानें तो सूर्य पूजकों को 'मग' कहा जाता है। महावीर मंदिर न्यास समिति के वेबसाइट पर 'मगध क्षेत्र में सूर्य उपासना की प्राचीनता' विषय पर पंडित सुरेशचंद्र मिश्र का आलेख इस ओर इशारा करता है कि 'मगध' साम्राज्य का नामाकरण भी 'मग' ब्राह्मणों के नाम पर पड़ा था।

    कृष्ण पुत्र ने बनवाए थे मगध में सूर्य मंदिर

    धार्मिक पुराणों के अनुसार राजा साम्ब ने कुष्ठ रोग से निवारण के लिए नालंदा जिले में बडग़ांव भगवान सूर्य की उपासना और अर्घ्‍य समर्पित कर रोग से मुक्ति पाए थे। बाद में उन्होंने मगध के नौ सूर्य मंदिरों में गया, औरंगाबाद, नालंदा एवं पटना जिले दो-दो मंदिर और नवादा जिले में एक मंदिर स्थित है। औरंगाबाद जिले के देव नामक स्थान में विद्यमान सूर्य मंदिर की है जिसे 'देवार्क' भी कहा जाता है। पटना के पंडारक में पुण्यार्क सूर्य मंदिर है और दुल्हिनबाजार में उलार्क सूर्य मंदिर है। नवादा जिले के हंडिया सूर्य मंदिर 'हंडार्क' के नाम से जाना जाता है। जमुई जिले के मलयपुर गांव के पास नदी तट पर सूर्य मंदिर है। दरभंगा जिले के लहेरियासराय के पास राघोपुरा गांव में नौवीं शताब्दी की सूर्य प्रतिमा प्राप्त है।

    मगध के राजा धृष्टकेतु को मग ब्राह्मणों ने बताई थी छठ की विधि

    पंडित भवनाथ झा की मानें तो सूर्योपासक विप्र शाकद्वीप से जम्बूद्वीप भगवान श्रीकृष्ण की प्रेरणा से आए थे। साम्ब का कुष्ठ रोग दूर करने में शाकद्वीप ब्राह्मणों की अहम भूमिका रही। साम्ब का कुष्ठ रोग दूर होने के बाद उन्होंने सूर्य का एक विशाल मंदिर साम्बपुर में बनवाया था। पद्म पुराण में उल्लेख है कि यह मंदिर जहां बना उसका पुराना नाम कश्यपपुर था। वह नगर कश्यप ऋषि ने बनवाया था। बाद में उसका नाम साम्बपुर पड़ा। कृष्ण के पुत्र साम्ब को कुष्ठ रोग को ठीक करने के बाद शाकद्वीप से आए बाह्मण अपने निवास स्थान जाने को प्रेरित हुए। ब्राह्मणों ने श्रीकृष्ण के वाहन गरूड़ पर आसीन होकर अपने राज्य को जाने लगे। रास्ते में मगध के राजा धृष्टकेतु अग्नि में अपने प्राण त्यागने की चेष्टा कर रहा था। तभी गरुड़ पर सवार ब्राह्मण राजा के पास उतरे और उनके रोग निवारण को लेकर सूर्य उपासना और छठ व्रत करने को प्रेरित किया। जिसके बाद राजा का शरीर रोग मुक्त हो गया।