पटना AIIMS में तीमारदारों की पिटाई का मामला पहुंचा मानवाधिकार आयोग, एक्टिविस्ट की शिकायत पर लिया संज्ञान
Patna AIIMS एम्स पटना के सुरक्षाकर्मियों द्वारा बुधवार रात और गुरुवार दोपहर दो मरीजों के तीमारदारों की निर्मम पिटाई मामले का राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने संज्ञान लिया है। उन्होंने शिकायतकर्ता ह्यूमन राइट्स अम्ब्रेला फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष भारत के मुख्य न्यायाधीश से सम्मानित मानवाधिकार कार्यकर्ता विशाल रंजन दफ्तुआर की केस डायरी दर्ज कर उसका नंबर भी भेज दिया है।

जागरण संवाददाता, पटना: एम्स पटना के सुरक्षाकर्मियों द्वारा बुधवार रात और गुरुवार दोपहर दो मरीजों के तीमारदारों की निर्मम पिटाई मामले का राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने संज्ञान लिया है।
उन्होंने शिकायतकर्ता ह्यूमन राइट्स अम्ब्रेला फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष भारत के मुख्य न्यायाधीश से सम्मानित मानवाधिकार कार्यकर्ता विशाल रंजन दफ्तुआर की केस डायरी दर्ज कर उसका नंबर भी भेज दिया है।
वहीं, एम्स प्रबंधन ने दोनों घटनाओं की जांच के लिए जो आंतरिक जांच समिति गठित की थी, शुक्रवार को उसकी रिपोर्ट नहीं आई थी। एम्स प्रबंधन ने रिपोर्ट आने पर जानकारी देने की बात कही है।
NHRC अध्यक्ष को मारपीट का वीडियो भेजा गया था
विशाल दफ्तुआर ने बताया कि उन्होंने एनएचआरसी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति अरुण कुमार मिश्र को समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरों के साथ वायरल वीडियो व फोटो भेजा था। इसके अलावा आयोग के उच्च पदाधिकारियों से फोन पर बात की थी।
निजी सुरक्षाकर्मियों द्वारा दो अलग-अलग मरीजों के स्वजन पर प्राणघातक हमलों को एनएचआरसी ने गंभीरता से लिया है। उन्हें शाम पौने छह बजे उनका मेल मिला और 15 मिनट में केस डायरी कर उन्हें फाइल नंबर भेज दिया गया।
'गंभीर कैंसर रोगी का इलाज नहीं करना मानवाधिकार का उल्लंघन'
बताया कि एनएचआरसी को भेजे पत्र में एम्स परिसर में सुरक्षाकर्मियों द्वारा बार-बार मरीजों से दुर्व्यवहार व स्वजनों की पिटाई से स्पष्ट है कि अबतक इन मानवाधिकार विरोधी घटनाओं पर प्रबंधन या पुलिस द्वारा कठोर कार्रवाई नहीं की गई है।
एक तीमारदार को लाठी से पीटकर मरणासन्न करने और दूसरे का सिर फोड़ने पर हत्या का प्रयास करने को मामला दर्ज किया जाए।
घटना का दूसरा दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है कि कैंसर के गंभीर रोगी को तत्काल विशेष चिकित्सा सुविधा मुहैया करा उसकी हालत स्थिर किए बिना बेड नहीं होने की बात कह रेफर करना मरीज के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
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