पटना के सरकारी स्कूलों में टूटी छत व दीवारों में दरार, सुधार की दरकार, पीने का पानी व शौचालय नहीं
कमरों की कमी के कारण बरामदे में भी कक्षाएं संचालित करनी पड़ती हैं। कक्षा एक से आठवीं तक के बच्चे यहीं पढ़ाई कर रहे हैं। विद्यालय में खेल का मैदान चारदीवारी और सुरक्षित रास्ता जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है।प्रधानाचार्य बताते हैं उन्होंने कई बार उच्च अधिकारियों को लिखित शिकायत दी है।

संवाद सहयोगी, बाढ़(पटना)। जर्जर कमरा, असुरक्षित मैदान। यही पहचान है उत्क्रमित मध्य विद्यालय गुलाबबाग की। केवल दो जर्जर कमरों में विद्यालय संचालित हो रहा है। छत से प्लास्टर गिरने के कारण शिक्षकों और छात्रों में भय का माहौल है। प्रभारी प्रधानाचार्य सतीश चंद्र वर्मा ने बताया कि विद्यालय में चार महिला शिक्षक कार्यरत हैं और 145 बच्चों का नामांकन है, जिनमें से बुधवार को 72 बच्चे उपस्थित थे।
विद्यालय में तीन रसोइए हैं। कमरों की कमी के कारण बरामदे में भी कक्षाएं संचालित करनी पड़ती हैं। कक्षा एक से आठवीं तक के बच्चे यहीं पढ़ाई कर रहे हैं। विद्यालय में खेल का मैदान, चारदीवारी और सुरक्षित रास्ता जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। वायरिंग की स्थिति भी ठीक नहीं होने के कारण बिजली अक्सर गुल रहती है। प्रधानाचार्य बताते हैं, उन्होंने कई बार उच्च अधिकारियों को लिखित शिकायत दी है।
कमरे हो गए जर्जर, बरामदे में संचालित होतीं उत्क्रमित मध्य विद्यालय गुलाबबाग की कक्षा
पालीगंज के वार्ड 18 में स्थित राजकीय बुनियादी विद्यालय में केवल तीन कमरों में दो विद्यालयों का संचालन किया जा रहा है। प्रधानाध्यापक राजेन्द्र प्रसाद ने बताया कि पहले कई कमरे थे, लेकिन अधिकांश जर्जर हो चुके हैं। कमरे की कमी के कारण बच्चे बरामदे में टेबल लगाकर पढ़ाई करने को मजबूर हैं। चारदीवारी न होने से मवेशी परिसर में आ जाते हैं। नए कमरों के निर्माण के लिए विभाग को सूचित किया गया है।
बुनियादी विद्यालय के दो कमरे को छोड़ सभी जर्जर
अथमलगोला प्रखंड के टाल क्षेत्र स्थित चंदा गांव में प्राथमिक विद्यालय अनुसूचित जाति और उत्क्रमित मध्य विद्यालय चंदा एक ही परिसर में संचालित हैं। वर्षा के मौसम में जलजमाव के कारण विद्यालय बंद रहता है। प्राथमिक विद्यालय का भवन अत्यंत जर्जर है, जिससे कभी भी हादसा हो सकता है। सीढ़ी भी खस्ताहाल है। बच्चों के लिए पीने का पानी और शौचालय की व्यवस्था नहीं है। उत्क्रमित मध्य विद्यालय के दूसरे तल्ले पर एक कमरे में क्लास चलती है। विद्यालय पहुंचने के लिए पगडंडी ही सहारा है। बेंच-डेस्क की कमी है। शिक्षकों की संख्या तीन है, लेकिन बुधवार को कोई भी उपस्थित नहीं था। कुल 136 नामांकित बच्चों में से एक भी उपस्थित नहीं था। प्रभारी प्रधानाध्यापक बलबीर ने बताया कि यहां 370 बच्चे नामांकित हैं, लेकिन केवल एक क्लास रूम है।
एक परिसर में दो विद्यालय, पीने का पानी और शौचालय नहीं, भवन और सीढ़ी खराब
टूटी छत, दीवारों में दरार। खिड़कियों के अंदर आता वर्षा का पानी। तपती धूप हो या फिर तेज वर्षा, हर मौसम से छात्र और छात्राओं को जूझना पड़ता है। विद्यालयों के भवन जर्जर होने से बच्चों की जान आफत में है। लगातार हो रही वर्षा की वजह से भवन की स्थिति और खराब होती जा रही है। कई जगहों पर छत से पानी टपकने से कक्षाओं में पानी भर रहा है। वर्षा का पानी दीवार में घुस रहा है।
हादसों की आशंका के डर से बरामदे पर पढ़ाई हो रही है या फिर छुट्टी करनी पड़ती है। सिर्फ भवन ही नहीं, अन्य सुविधाएं भी न के बराबर है। चारदीवारी टूटी होने से मवेशी या फिर असामाजिक तत्व बेरोक-टोक प्रवेश कर जाते हैं। इससे विद्यार्थी और शिक्षक असुरक्षा महसूस करते हैं। अधिकतर स्कूलों के जीर्णोद्धार की जरूरत है। कई बार शिकायत के बाद सुनवाई नहीं होती। जिले के सरकारी विद्यालयों की स्तिथि में पहले से बेहतर हुई है पर और सुधार की जरूरत है।
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