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    Bismillah Khan Death Anniversary: जन्मभूमि पर ही भुला दिए गए बिस्मिल्ला खां, अख़बारों तक सिमटीं यादें

    By Amit AlokEdited By:
    Updated: Fri, 21 Aug 2020 10:17 PM (IST)

    भारत रत्‍न उस्‍ताद बिस्‍मिल्‍ला खां की आज पुण्‍यतिथि है। बिहार के बक्‍सर स्थित डुमरांव में उनका जन्‍म हुआ था लेकिन अपनी जन्मभूमि पर वे भुला दिए गए हैं।

    Bismillah Khan Death Anniversary: जन्मभूमि पर ही भुला दिए गए बिस्मिल्ला खां, अख़बारों तक सिमटीं यादें

    बक्सर, जेएनएन। शहनाई की सुरीली आवाज से पूरी दुनिया को दीवाना बनाने वाले उस्ताद बिस्मिल्ला खां को उनकी जन्मभूमि पर ही लगभग भुला दिया गया है। वाराणसी में तो उनकी याद में संग्रहालय बनने जा रहा है, परंतु डुमरांव की जिस मिट्टी में भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्ला खां की पैदाइश हुई, वहां उनकी यादें बस जयंती और पुण्यतिथि पर अखबारों के पन्ने तक सिमट कर रह गई हैं।

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    बक्‍सर के डुमरांव में हुआ था जन्‍म

    डुमरांव के बंधन पटवा रोड के बचई मियां के घर के आंगन में 21 मार्च 1916 को बिस्मिल्ला खां का जन्म हुआ था। उनके परिवार के लोग अब यहां नहीं रहते। परंतु, वह घर आज भी खंडहर के रूप में मौजूद है। पूरे बक्सर जिले में कोई ऐसा स्मृति चिह्न नहीं है जो यह बता सके की साज के जिस सम्राट पर ङ्क्षहदुस्तान गर्व करता है, उनकी पैदाइश इसी मिट्टी की है। 21 अगस्त 2006 को 90 वर्ष की अवस्था में वाराणसी में उस्ताद बिस्मिल्ला खां ने अपनी अंतिम सांस ली थी।

    नहीं बना उस्ताद के नाम पर नगर भवन

    बिस्मिल्ला खां के नाम पर प्रस्तावित नगर भवन सह पुस्तकालय का निर्माण राज्य सरकार नहीं करा सकी है। पद्म श्री और भारत रत्न से सम्मानित विश्वविख्यात शहनाई वादक का जन्म डुमरांव में हुआ था। 22 अप्रैल 1994 को तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने उस्ताद के नाम पर पुराना थाना परिसर में खाली पड़ी जमीन पर नगर भवन बनाने की नींव डाली। यह कार्य नगर विकास और नगर परिषद के बीच उलझ कर रह गया और उस्ताद के नाम पर भवन आज तक नहीं बन सका। हर बार चुनाव में यह बड़ा मुद्दा बनता है, लेकिन बाद में नेता इसे भूल जाते हैं।

    बांके बिहारी मंदिर में जवां हुई धुन

    उस्ताद का ख्याति की बुनियाद बांके बिहारी लाल मंदिर और डुमरांव राज परिवार की देन है। तब राज परिवार के संरक्षण में बांके बिहारी लाल के मंदिर में पूजन आरती के दरम्यान शहनाई बजाने की परंपरा थी। इस जिम्मेदारी को बचई मियां निभाते थे और इसी मंदिर से उन्होंने अपने पुत्र बिस्मिल्ला खां को यहीं से शहनाई का रियाज कराना शुरू किया था। बाद में उनको वाराणसी निवासी मामा ने अपने यहां बुला लिया। यहां गंगा की लहरों के साथ शहनाई की धुन से उन्होंने ऐसा परवान चढ़ाया कि सफलता उनके कदम चूमती गयी। गंगा जमुनी संस्कृति वाले वाराणसी में शहनाई की रियाज के बूते पूरे दुनिया में छा गये।