बिहार के वकील ने तोड़ी परंपरा, सुप्रीम कोर्ट को लेनी पड़ी हिंदी में लिखी याचिका, जानिए...
सुप्रीम कोर्ट में हिंदी में लिखी याचिका स्वीकार नहीं की जाती, लेकिन बिहार के एक वकील ने इस परंपरा का विरोध किया। उन्होंने अपनी याचिका हिंदी में दायर की तथा अपनी दलीलों से इसे स्वीकार करवा लिया। अब वे वहां हिंदी में ही बहस करेंगे।
पटना [निर्भय सिंह]। सुप्रीम कोर्ट में हिंदी में लिखी याचिका स्वीकार नहीं की जाती, लेकिन बिहार के एक वकील ने इस परंपरा का विरोध किया। उन्होंने अपनी याचिका हिंदी में दायर की तथा अपनी दलीलों से इसे स्वीकार करवा लिया। अब वे वहां हिंदी में ही बहस करेंगे।
बिहार के एक वकील के कड़े विरोध के बाद सुप्रीम कोर्ट प्रशासन को हिन्दी में लिखी याचिका स्वीकार करनी ही पड़ी। याचिका पटना हाईकोर्ट के अधिवक्ता ब्रह्मदेव प्रसाद ने दायर की है। वे पटना हाईकोर्ट में हिन्दी में लिखी याचिका ही दायर करते हैं और हिन्दी में ही बहस भी करते हैं। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट में हिन्दी में लिखी याचिका को स्वीकार कराना चुनौती थी।
अधिवक्ता ब्रह्मदेव ने बताया कि वे पटना हाईकोर्ट द्वारा एक लोकहित याचिका में पारित आदेश के खिलाफ 21 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट गए थे। हिन्दी में लिखी याचिका को देखते ही सुप्रीम कोर्ट का रजिस्ट्रार कार्यालय भड़क गया। कहा गया पहले वे अपनी याचिका का अंग्रेजी में अनुवाद कराएं। लेकिन, राष्ट्र भाषा के पक्षधर प्रसाद ऐसा करने को तैयार नहीं हुए।
तब रजिस्ट्रार ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 348 की बाध्यता के कारण हिन्दी याचिका नहीं दायर हो सकती। है। याचिकाकर्ता प्रसाद ने उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 300, 351 के साथ-साथ मूल अधिकार से जुड़े अनुच्छेद 13 एवं 19 भी दिखाए, जिनमें हिन्दी के साथ भेदभाव करने से मना किया गया है। आखिरकार उन्होने ने अपनी बात मनवा ली।
महानिबंधक को सभी पहलुओं का अवलोकन करने के बाद अपने अधीनस्थ अधिकारियों को याचिका स्वीकार करने की अनुमति देनी पड़ी। संभावना है कि अगले महीने तक उनके मामले पर सुप्रीम कोर्ट के जज को हिन्दी में बहस भी सुननी होगी।