Bihar Voter List: एसआईआर ने बढ़ाई राजनीतिक दलों के लिए सीमांचल से जुड़ी चिंता, 4 जिलों में खलबली
बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (एसआईआर) से सीमांचल के राजनीतिक दलों की चिंता बढ़ गई है। भाजपा घुसपैठ का मुद्दा उठा रही है जबकि महागठबंधन मुस्लिम मतदाताओं को लेकर चिंतित है। एसआईआर में आधार कार्ड को मान्यता न देने पर भी सवाल उठ रहे हैं। सीमांचल में आधार सैचुरेशन 103% है जिससे घुसपैठ की आशंका बढ़ गई है। 1951-2011 के बीच सीमांचल में मुस्लिम आबादी 16% बढ़ी है।
विकाश चन्द्र पाण्डेय, पटना। मतदाता-सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) तो पूरे बिहार में हो रहा, लेकिन राजनीतिक दलों की चिंता विशेषकर सीमांचल लिए बढ़ी है। चार जिलों वाले सीमांचल में तेज गति से हुए जनसांख्यिकीय परिवर्तन के आधार पर भाजपा पहले से ही घुसपैठ का मुद्दा उठाती रही है।
एसआईआर से वैसे मतदाताओं की छंटनी हो जानी है, जो येन-केन-प्रकारेण यहां के नागरिक बने हुए हैं। सीमांचल में ऐसे मतदाताओं में लगभग शत प्रतिशत मुसलमान ही हैं।
महागठबंधन, विशेषकर राजद और कांग्रेस, इन्हें अपना कोर वोटर मानता है। एआईएमआईएम की राजनीति भी इन्हीं के दम पर है। राजनीतिक गलियारे का कयास है कि एसआईआर के पक्ष-विपक्ष में उठ रही आवाज का असली कारण सीमांचल का समीकरण है।
विपक्ष का हिसाब अगर गड़बड़ होता है तो भाजपा उससे लाभ की आशा पाल सकती है। हालांकि, यह सब कुछ मतदाता-सूची के अंतिम प्रारूप के प्रकाशन के बाद ही स्पष्ट होगा। इन सबके बीच निर्वाचन आयोग स्पष्ट कर चुका है कि पारदर्शी चुनाव के लिए एसआइआर मतदाता-सूची को शत प्रतिशत विशुद्ध बनाने की प्रक्रिया है।
विधानसभा के पिछले चुनाव में मात्र 11150 मतों के अंतर से बिहार की सत्ता का निर्णय हुआ था। लगभग दो दर्जन सीटें ऐसी थीं, जिन पर हार-जीत का निर्णय 3000 से कम मतों के अंतर से हुआ। 243 सदस्यीय विधानसभा में सीमांचल 24 जन-प्रतिनिधि भेजता है।
उन 24 विधानसभा क्षेत्रों में ही अगर मतदाताओं का संख्यात्मक स्वरूप बदलता है तो स्वाभाविक रूप से राजनीतिक दलों का चुनावी प्रदर्शन प्रभावित होगा। इसी चिंता मेंं महागठबंधन एसआइआर में आधार-कार्ड, राशन-कार्ड और मनरेगा जाब-कार्ड को मान्यता नहीं दिए जाने पर प्रश्न खड़ा कर रहा।
संविधान के अनुसार, मतदाता वही बन सकता है, जो देश का नागरिक हो। आधार-कार्ड आदि नागरिकता के लिए प्रमाण नहीं। सीमांचल में तो आधार सैचुरेशन औसतन 103 प्रतिशत है, जबकि पूरे बिहार मेंं यह 85 प्रतिशत के लगभग है। सीमांचल में बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमानों की घुसपैठ की आशंका को इस आंकड़े से दम मिलता है।
संदेह को मिला आधार:
अब भाजपा यह प्रश्न कर रही कि प्रति सौ की जनसंख्या पर अगर सीमांचल में 103 आधार-कार्ड बने हैं तो आखिर कैसे? सामान्य तौर पर आधार-कार्ड एक व्यक्ति-एक कार्ड की नीति पर आधारित है। यहां तो आंकड़े बता रहे कि सीमांचल की वास्तविक जनसंख्या से यह अधिक है।
इससे स्पष्ट है कि इन चार जिलों में या तो फर्जी आधार-कार्ड बने हैं या फिर गैर-नागरिकों के लिए भी आधार-कार्ड जारी हुए हैं। ऐसे आधार-कार्ड धारकों की पहचान के लिए एसआइआर को वह उचित प्रक्रिया मान रही।
यहां गणित गड़बड़ है:
1951-2011 के बीच देश मेंं मुसलमानों की जनसंख्या चार प्रतिशत की दर से बढ़ी। बांग्लादेश के निकटवर्ती और बंगाल के सीमावर्ती सीमांचल में यह वृद्धि 16 प्रतिशत रही।
2011 की जनसंख्या के अनुसार किशनगंज, कटिहार, अररिया और पूर्णिया की जनसंख्या में क्रमश: 67.58, 44.47, 42.95 और 38.46 मुसलमान थे।
किशनगंज में आधार सैचुरेशन 105.16 प्रतिशत है और कटिहार में 101.92 प्रतिशत। अररिया और पूर्णिया मेंं यह क्रमश: 102.23 और 100.97 प्रतिशत है।
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