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प्रशासनिक भ्रष्‍टाचार में अव्‍वल बना बिहार, सूबे को बदनाम कर रही नौकरशाही

बिहार को इसकी भ्रष्ट नौकरशाही बदनाम कर रही है। एक शोध में हुए खुलासे के अनुसार बिहार भ्रष्टाचार के मामलों में अव्‍वल राज्‍यों में शुमार हो चुका है।

By Amit AlokEdited By: Published: Sun, 06 May 2018 08:53 AM (IST)Updated: Mon, 07 May 2018 09:31 PM (IST)
प्रशासनिक भ्रष्‍टाचार में अव्‍वल बना बिहार, सूबे को बदनाम कर रही नौकरशाही
प्रशासनिक भ्रष्‍टाचार में अव्‍वल बना बिहार, सूबे को बदनाम कर रही नौकरशाही

पटना [राजीव रंजन]। कभी देश के अन्य राज्यों के मुकाबले सबसे अधिक चुस्त-दुरुस्त प्रशासन वाले राज्यों में शुमार रहा बिहार अब अपनी नौकरशाही को लेकर बदनाम होने लगा है। प्रशासनिक भ्रष्टाचार के मामले में बिहार देश के अव्वल राज्यों में शुमार हो चुका है।

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यह खुलासा दुनिया के तीन सबसे बड़े विश्वविद्यालयों यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो बूथ स्कूल ऑफ बिजनेस और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के स्कॉलर गुओ जू, मैरिएन बंट्रेंड और रॉबिन बर्गीज के भारत की नौकरशाही भ्रष्टाचार पर किए गए शोध में हुआ है। हालांकि, रिपोर्ट में दर्ज यह निष्‍कर्ष बिहार के संदर्भ में सही नहीं कि अपने गृहराज्य में पोस्टिंग पाने वाले नौकरशाह अन्य प्रदेशों में अपनी सेवाएं देने वाले नौकरशाह के मुकाबले अधिक भ्रष्ट होते हैं।

भ्रष्‍टाचार के खिलाफ सरकार का 'जीरो टॉलरेंस'

करीब डेढ़ दशक पहले जब बिहार में नीतीश कुमार की सरकार ने सत्ता की बागडोर अपने हाथों में ली तो साफ एलान कर दिया कि अब भ्रष्टाचार के खिलाफ 'जीरो टॉलरेंस'  की नीति अपनाई जाएगी। इस जीरो टॉलरेंस की नीति का प्रदेश में व्यापक असर भी दिखा। पिछले डेढ़ दशक से भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहे अभियान में अबतक 1700 से अधिक लोकसेवकों को न केवल घूसखोरी करते रंगे हाथों पकड़ा गया, बल्कि उन्हें जेल की हवा भी खानी पड़ी। करीब डेढ़ दर्जन बड़े नौकरशाहों की करीब 20 करोड़ से भी अधिक की काली कमाई को सरकार ने जब्त कर लिया है।

कइयों की संपत्ति जब्‍त, कई लाइन में

भ्रष्‍टाचार के मामलों में जिनकी संपत्ति जब्त की जा चुकी है, उनमें राज्य के पूर्व डीजीपी नारायण मिश्रा, वरिष्ठ आइएएस अधिकारी एसएस वर्मा, पटना के पूर्व जिलाधिकारी डॉ. दिलीप कुमार, पटना नगर निगम के पूर्व नगर आयुक्त के सेंथिल कुमार समेत कई बड़े इंजीनियर व अन्य अधिकारी भी शामिल हैं। लेकिन, अब ऐसे बड़े अधिकारियों की फेहरिस्त लंबी होने लगी है जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद उनकी संपत्ति दांव पर लग चुकी है।

चर्चा में रहे ये मामले

वर्ष 2018 के शुरुआत में विशेष निगरानी इकाई (एसवीयू) ने सारण के पूर्व जिलाधिकारी दीपक आनंद के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने का केस दर्ज कर उनके ठिकानों पर छापेमारी की। दीपक आनंद की काली कमाई की अभी जांच चल ही रही थी कि एसवीयू ने भारतीय पुलिस सेवा के वर्ष 2007 बैच के अधिकारी व मुजफ्फरपुर के पूर्व एसएसपी विवेक कुमार की काली कमाई का पर्दाफाश कर दिया। फिलहाल दोनों ही आइएएस व आइपीएस अधिकारी निलंबित चल रहे हैं। पिछले साल जब भागलपुर में बहुचर्चित सृजन घोटाला सामने आया तो इस घोटाले की आंच सबसे अधिक भागलपुर की नौकरशाही को प्रभावित करती दिखी।

इससे पहले वर्ष 2016 में बिहार कर्मचारी चयन आयोग द्वारा आयोजित प्रतियोगिता परीक्षाओं के प्रश्नपत्र लीक मामले में राज्य के वरिष्ठ अधिकारी व आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष सुधीर कुमार को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। सुधीर पिछले सवा वर्षों से जेल में हैं। सुधीर कुमार मूलरूप से बिहार के रहने वाले हैं।

वर्ष 2016 के नवंबर में निगरानी अन्वेषण ब्यूरो ने वर्ष 2013 बैच के आइएएस व मोहनियां के तत्कालीन एसडीओ डॉ. जितेंद्र गुप्ता को एक ट्रक ड्राइवर से 80 हजार की रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिया था। बाद में जितेंद्र गुप्ता पर लगे सभी आरोपों को हाइकोर्ट ने अमान्य कर दिया और अब जितेंद्र गुप्ता अपना कैडर बदलने की लड़ाई लड़ रहे हैं।

दूसरे प्रदेशों के नौकरशाहों ने जमकर काटी मलाई

भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार की 'जीरो टॉलरेंस' की नीति का सबसे अधिक प्रभाव राज्य की नौकरशाही पर पड़ा है। पिछले 12 वर्षों के दौरान बिहार में भ्रष्टाचार निरोधी कार्रवाइयों को देखें तो तस्वीर साफ दिखाई देती है। बिहार में भ्रष्टाचार की गंगोत्री में न केवल बिहारी अधिकारी बल्कि अन्य प्रदेशों के अधिकारियों ने जमकर मलाई काटी है।

अनुसूचित जाति व जनजाति कल्याण विभाग के तत्कालीन सचिव एसएम राजू मूलरूप से कर्नाटक के रहने वाले हैं। उनपर आरोप है कि उन्होंने अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग के छात्र-छात्राओं की छात्रवृत्ति में बड़ा भ्रष्टाचार किया है। राजू समेत विभाग के कई अधिकारियों को इस मामले में अभियुक्त बनाते हुए निगरानी ब्यूरो ने अपनी जांच लगभग पूरी कर ली है। इस मामले में निगरानी जल्द ही चार्जशीट दायर करने वाली है। इसमें आयोग के तत्कालीन सचिव समेत कई अन्य अधिकारी भी शामिल हैं। पिछले दिनों सीबीआइ की टीम ने औरंगाबाद के तत्कालीन जिलाधिकारी कंवल तनुज के कई ठिकानों पर एक साथ छापेमारी की। कंवल तनुज पर आरोप है कि उन्होंने नबीनगर बिजली परियोजना के लिए जमीन अधिग्रहण में भ्रष्टाचार किया है। तनुज मूलरूप से उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं।

वर्ष 2009 में बिहार सरकार ने जब भ्रष्टाचार से अर्जित काली कमाई को जब्त करने का कानून पारित किया तब भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई एक निर्णायक दौर में पहुंच गई। इस कानून के बनने के बाद राजस्तरीय सेवाओं के कई बड़े अधिकारियों की काली कमाई या तो जब्त की जा चुकी है या फिर जब्ती के कगार पर हैं। इनमें लघु जल संसाधन विभाग के पूर्व मुख्य अभियंता अवधेश कुमार सिंह, राज्य के पूर्व औषधि नियंत्रक वाइके जायसवाल, राजभाषा विभाग के पूर्व निदेशक डीएन चौधरी भी शामिल हैं। ये तीनों अधिकारी मूलरूप से बिहार के हैं। इनके अलावा निचले स्तर के करीब तीन दर्जन लोकसेवकों की काली कमाई की जांच भी अब अपने अंतिम चरण में है और जल्द ही इनकी काली संपत्ति जब्त करने की कानूनी प्रक्रिया पूरी होने वाली है।

डेढ़ दशक में भ्रष्टाचार के आरोप में विभिन्न एजेंसियों के हत्थे चढ़े बिहार के बड़े अधिकारी

नाम                                  सेवा                            मूल निवासी

नारायण मिश्रा                  से.नि. आइपीएस          ओडिशा

एसएस वर्मा                     आइएएस                     उत्तर प्रदेश

सुधीर कुमार                    आइएएस                      बिहार

एसएम राजू                     आइएएस                      कर्नाटक

के सेंथिल कुमार              आइएएस                      तमिलनाडु

डॉ. जितेंद्र गुप्ता               आइएएस                     हरियाणा

कंवल तनुज                    आइएएस                      उत्तर प्रदेश

दीपक आनंद                   आइएएस                      बिहार

विवेक कुमार                  आइपीएस                     उत्तर प्रदेश

अवधेश कुमार सिंह         मुख्य अभियंता             बिहार

वाइके जायसवाल           पूर्व औषधि नियंत्रक       बिहार

डीएन चौधरी                   पूर्व राजभाषा निदेशक   बिहार


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