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    Bihar: क्‍या तेजस्‍वी यादव से मेल नहीं खाते RJD नेताओं के विचार? समीक्षा में भी अंतर्द्वंद्व से नहीं उबर पाया राजद

    By Vikash Chandra Pandey Edited By: Vyas Chandra
    Updated: Tue, 09 Dec 2025 09:17 PM (IST)

    Bihar News: बिहार राजद में क्या तेजस्वी यादव के विचारों से नेताओं के विचार मेल नहीं खाते? समीक्षा में भी अंतर्द्वंद्व से राजद नहीं उबर पाया है। पार्टी ...और पढ़ें

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    राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के साथ तेजस्‍वी यादव। जागरण आर्काइव

    विकाश चन्द्र पाण्डेय, पटना। Bihar Chunav 2025 में पराजय के कारणों की समीक्षा में भी राजद उसी अंतर्द्वंद्व में उलझा रहा, जिससे विधानसभा चुनाव में संभावनाएं धूल-धूसरित हुईं।

    वस्तुत: प्रत्याशियों व पार्टी-जनों के साथ हो रहे विचार-विमर्श में रणनीतिक चूक व समन्वय की कमी को करारी हार का मुख्य कारण माना जा रहा, जबकि तेजस्वी यादव इसे बिहार में लोकतंत्र की हार और मशीनरी की जीत बता रहे।

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    समीक्षा के आखिरी दिन मंगलवार को राजद के प्रदेश कार्यालय से अपने घर लौटते पार्टी-जनों की भुनभुनाहट से स्पष्ट हो गया कि शीर्ष नेतृत्व के साथ संवाद व तालमेल में हुई चूक अभी यथावत है।

    रणनीतिक चूक को पार्टी-जन बता रहे हार का कारण, तेजस्वी ढूंढ़ रहे मशीनरी में खोट 

    अब तक की समीक्षा में पार्टी-जन अति आत्मविश्वास, नकारात्मक अभियान, चतुर रणनीतिकारों के आचरण व प्रबुद्ध प्रवक्ताओं के बोलचाल के साथ कमजोर गठबंधन और भितरघात को पराजय के मूल कारण बता रहे।

    यह पराजय राजद के लिए सबक भी है कि सर्वाधिक वोट शेयर (23 प्रतिशत) के बावजूद सीटें कम मिलीं। इसके लिए धरातल पर मजबूत रणनीति और जन-सामान्य में व्यापक अपील अपेक्षित थी, जिसमें चूक गए।

    इससे पार्टी के खेवनहार की छवि भी धूमिल हुई है। भाजपा-जदयू ने कम सीटों पर वोट केंद्रित कर जीत प्राप्त की। राजद को प्रति सीट औसतन 80000 वोट मिले, जबकि भाजपा व जदयू को क्रमश: 99000 और 95000 वोट।

    राजद में चुनावी हार की समीक्षा का क्रम हुआ पूरा, अब अगला निर्णय लेगा शीर्ष नेतृत्व


    वस्तुत: यह अंतर्द्वंद्व ही था, जो चुनाव भर तेजस्वी नए बिहार का संकल्प तो जताते रहे, लेकिन राजद के पुराने इतिहास से पिंड नहीं छुड़ा पाए। मौका देख एनडीए ने जंगल-राज की वापसी की आशंका जता लंगड़ी मार दी। दशहरी उपहार (महिलाओं को 10000 रुपये) और ओवैसी फैक्टर को कम आंका गया।

    गठबंधन की दरारें समय रहते भरी नहीं गईं। कांग्रेस के साथ दोस्ताना संघर्ष और सीट बंटवारे के विवाद ने तगड़ा नुकसान पहुंचाया। आपत्तिजनक देसी गानों में बाहुबल, जातिवाद और हिंसा का प्रचार हुआ, जो गैर-यादव और महिलाओं में भय पैदा करने वाला सिद्ध हुआ। प्रवक्ताओं की जहरीली बातें भी भारी पड़ीं।

    हरे गमछे वाली रैलियां अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) को अलग-थलग कर गईं। जंगल-राज का स्मरण कर सवर्ण मतदाताओं का एनडीए की ओर झुकाव रहा। मुसलमानों के वोटों में एआइएमआइएम ने बंटवारा कर लिया, जबकि निषाद-मल्लाह समाज को विकासशील इंसान पार्टी आकृष्ट नहीं कर पाई।

    2020 में 144 सीटों पर लड़कर राजद ने 75 सीटें जीती थीं, जबकि इस बार 143 में से मात्र 25 प्रत्याशी सफल रहे। इनमें वे तीन सीटें (ढाका, जहानाबाद, बोधगया) भी हैं, जहां एक हजार से कम मतों के अंतर से जीत मिली है। वोटिंग पैटर्न में मामूली परिवर्तन से वहां भी हाथ मलना पड़ता। तब विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के हकदार भी नहीं रह जाते। 

    प्रदेश अध्यक्ष मंगनीलाल मंडल के नेतृत्व मेंं, 26 नवंबर से 9 दिसंबर तक, दो चरणों में, हुई समीक्षा की रिपोर्ट अब सुप्रीमो लालू प्रसाद और तेजस्वी को अग्रसारित होगी, जो यथोचित निर्णय लेंगे।

    कठोर निर्णयों की अपेक्षा जता रहे पार्टी-जन सार्वजनिक रूप से मुखर नहीं हो रहे, क्योंकि जिन पर उनकी अंगुलियां उठी हैं, वे सक्षम-समर्थ हैं। फिर भी चर्चा है कि राजद अब टिकट वितरण में पारदर्शिता, जमीनी नेताओं को मजबूत करने और बूथ प्रबंधन सुधारने की पहल करेगा।

    हार के प्रमुख पांच कारक 

    1. रणनीतिक चूक : फर्जी सर्वे के आधार पर पार्टी ने स्वयं को विजयी मान लिया, जिससे वास्तविकता की अनदेखी हुई। तेजस्वी यादव की लोकप्रियता पर अति-विश्वास ने अन्य मुद्दों को पीछे धकेल दिया।
    2. प्रत्याशी चयन : मजबूत दावेदारों को किनारे कर कमजोर प्रत्याशी उतारे गए। इससे जमीनी कार्यकर्ताओं में असंतोष फैला। टिकट से वंचित नेता शिथिल पड़ गए, जिससे वोट ट्रांसफर नहीं हुआ। 
    3. भितरघात-अंतर्कलह : 300 से अधिक भितरघातियों की सूची बनी है, जो वोट कटवाए, दल-बदल करवाए या विरोधियों की सहायता किए। तेजप्रताप यादव ने ''जयचंदों'' (आंतरिक गद्दारों) पर अंगुली उठाई। 
    4. कार्यकर्ताओं की उपेक्षा : बूथ-लेवल कार्यकर्ताओं की उपेक्षा और स्थानीय पदाधिकारियों की अनदेखी से आंतरिक असंतोष बढ़ा। नेतृत्व तक पहुंच नहीं होना और ''संतरी'' जैसी बाधाओं की शिकायतें आईं। 
    5. समीकरण व समन्वय : सीट बंटवारे पर देरी हुई और सामाजिक समीकरण बनाने में चूके। कांग्रेस और दूसरे सहयोगियों के साथ समन्वय में कमी रही। ओवैसी को नकारने से सीमांचल में मुसलमान बंटे।